सिटीजेंस कॉर्नर: यह हाल है देश की सबसे अच्छी कही जाने वाली ट्रेन का
झांसी: मैं वंदे भारत ट्रेन से झांसी से दिल्ली जा रही थी। यात्रा में मेरे साथ मेरी 6 वर्षीया बेटी तोशानी शर्मा भी थी। मेरी सीट नंबर सी – 14, जबकि मेरी बेटी की सीट का नंबर सी – 13 था।
शाम का 6:10 हुआ होगा तभी रेलवे की कैंटीन का स्टाफ पहले स्नेक्स लेकर आया फिर खोलता हुआ पानी चाय के लिए एक कागज के कप में डालकर।
वंदे भारत ट्रेन चली तो धक्के से कब का खूब तेज गर्म पानी मेरे पेट और मेरी जांघों में गिर गया। थोड़ी देर में बहुत तेज जलन और दर्द के साथ मेरे शरीर में फफोले पड़ गए। मैं तत्काल टी सी और अन्य रेलवे स्टाफ को सूचना दी। लेकिन सभी सामने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए की वंदे भारत ट्रेन में फर्स्ट एड का कोई इंतजाम नहीं है।
मैंने अगले स्टेशन में प्लेटफॉर्म पर मैंने एक दुकानदार से थोड़ी सी बर्फ खरीद ली। जलन मे थोड़ी राहत मिली लेकिन शरीर मे कई जगह फफोले पड़ चुके थे।
देर रात जैसे ट्रेन दिल्लीदिल्ली पहुंची, मेरे पति मुझे लेकर फौरन अपोलो हॉस्पिटल गए जहां इमरजेंसी में मेरा उपचार शुरू हुआ अब पहले से मैं बहुत ठीक हूं।
मुझे केंद्र सरकार और रेलवे मंत्रालय से खास तौर से यह कहना है यह कहना है जिस वंदे भारत की प्रधानमंत्री से लेकर रेल मंत्री तक भारत और विदेश तक में चर्चा करते हैं उस ट्रेन में यात्रियों के लिए फर्स्ट एड बॉक्स तो होना ही चाहिए।
किसी भी यात्री महिला, पुरुष और बच्चे को अगर अचानक कोई समस्या होती है तो उसके उपचार के लिए कोई ना कोई व्यवस्था होनी चाहिए और कुछ ना हो तो कम से कम फर्स्ट एड बॉक्स तो होना ही चाहिए ट्रेन में।
यदि यह हाल है देश की सबसे अच्छी कहीं जाने वाली ट्रेन वंदे भारत का तो दूसरी ट्रेनों की बात ही छोड़ दें। ट्रेन यात्रियों के लिए सरकार को और रेलवे मंत्रालय को हर बोगी में फर्स्ट एक बॉक्स उपलब्ध कराना ही चाहिए।
कानून बनने बनाने से नहीं बल्कि उनके पालन से सुधार सुनिश्चित हो सकता है।