व्यंग्य: टाइम नहीं है
मुझे उनसे मिलना था और मेरे पास तो समय ही समय था, पर उनके पास टाइम नहीं था। वे बहुत बिज़ी थे। हर बड़ा आदमी बिज़ी रहता है। घर में बिज़ी, ऑफिस में बिज़ी, रोड में बिज़ी। कभी मीटिंग-ईटिंग में बिज़ी। वैसे मीटिंग, प्रायः ईटिंग के लिए ही अरेंज की जाती है। कई लोग हर मीटिंग इसलिए अटेंड करते हैं, क्योंकि उसमें टी-ब्रेक होता है, फिर लंच ब्रेक, कॉफी-ब्रेक आदि होते हैं। भई, हमें इससे क्या? हम तो बस ज़रा मिलना चाहते थे। भगवान से मिलना आसान है, पर जिससे आप मिलना चाहते हैं, वही मुश्किल है।
मंत्री से मिलने का समय
पता नहीं ऐसा क्यों होता है कि लोग मंत्री-विधायक बनते ही या बड़ा पोस्ट पाते ही बाथरूम में चले जाते हैं। कहीं उनका हाजमा तो नहीं खराब हो जाता? या फिर वे घंटों पूजा पर बैठते हैं। ये कौन-सी पूजा है? क्यों की जाती है? पहले वोट मांगना रहता था तो जनता की पूजा करते थे। कहीं होने वाले घोटालों और पापों की आशंका से पहले से ही वे पाप धोने के लिए पूजा तो नहीं करते? एक व्यक्ति को अपने क्षेत्र से ताज़ा-ताज़ा बने एक युवा-मंत्री जी से मिलना था। फोन करने पर संयोग से मंत्रीजी मिल गए। बोले- “वैसे तो मेरे पास टाइम नहीं है। हाँ, सुबह मैं जब एक्सरसाइज करता हूँ उस समय आप आकर मिल सकते हैं। ” अब लीजिए, मंत्रीजी स्किपिंग कर रहे हैं यानी रस्सी कूद रहे हैं या वेट लिफ्टिंग कर रहे हैं, ऐसे में आप क्या खाक बात करेंगे? यह समझने वाली बात है कि आप ऐसे में उनसे कितनी बातें करेंगे और वे कितनी बातें सुनेंगे?
साहब से मिलने का समय
साहब से मिलने के लिए टाईम मांगने पर वे प्रायः कहते हैं – “भाई बहुत बिज़ी टाइम चल रहा है। ऐसा है कि मैं सुबह-शाम जब अपने कुत्ते को टहलाता हूँ तब आकर मिलिए।”
साहब के बारे में सुना है, वे लोगों से ऐसे ही मिलते हैं- कुत्ता टहलाते समय। जब उनका कुत्ता नित्य कर्म से निवृत्त हो जाता है, तभी वे आपसे बातें करते हैं, नहीं तो वे भी कुत्ते के साथ बेचैनी से टहलते रहते हैं और आपको भी उनके साथ-साथ बेचैनी से टहलना पड़ता है।
पी.एच.डी. गाइड से मिलने का समय
कई शोध-छात्राओं को अपनी पी.एच.डी. गाइड मैडम से मिलना था। मैडम समय ही नहीं दे रही थीं। आखिर उन्होंने पांचों शोध-छात्राओं को गर्मी की दोपहर में संडे के दिन बुलाया। जब वे पहुँचीं तो देखा मैडम के आंगन में गांव से आए गेहूं के कई बोरे पड़े थे। एक दाई बैठी गेहूं फटक रही थी। मैडम ने सभी शोध-छात्राओं को गेहूं बीनने में लगा दिया। बीच-बीच में शोध पर चर्चा चलती रही। छात्राओं को मैडम से मिलने से कितना फायदा हुआ यह तो पता नहीं, पर मैडम के गेहूं निपट गए।
डॉक्टर से मिलने का समय
डॉक्टर सुषमा सुरभि घर बैठी बोर हो रही थीं। पति से बोली- “क्या करूं बहुत बोर हो रही हूँ ।” पति ने कहा- “घर पर क्लिनिक खोल लो। समय आसानी से कट जाएगा।” पति ने बोर्ड भी लगवा दिया डॉक्टर पत्नी के नाम का। रोज़ शाम अपना क्लिनिक खोल कर बैठतीं। डाक्टरनी ने देखा, सामने के पड़ोसी का बड़ा लड़का अपनी खिड़की पर बैठा उन्हें घंटों निहारता रहता है। डॉक्टर सुषमा सुरभि ने परेशान होकर अपने पति से शिकायत की। पति ने उस लड़के को बुलाकर डांटा- “क्यों जी, अपनी खिड़की में बैठे-बैठे हर शाम मेरी पत्नी को क्यों घूरते रहते हो?” फिर उसकी जमकर ठुकाई की। लड़का रोते-रोते बोला- “मुझे क्यों मारते हैं? अपनी बीवी को कुछ नहीं कहते?” पति ने कहा- “क्या गलती है मेरी बीवी की?” लड़का बोला- “उनका बोर्ड तो ज़रा पढ़िए। बोर्ड पर लिखा है-डॉक्टर सुषमा सुरभि, एम.बी.बी.एस., देखने का समयः शाम पांच से सात बजे तक। इसीलिए मैं उन्हें देखता रहता हूँ । इसमें मेरी गलती कहां है?”
पति ने तुरंत ‘देखने का समय‘ काटकर उसे ‘मिलने का समय‘ कर दिया। वह युवक फिर बोर्ड पढ़ कर मुस्कुरा रहा था। मगर वह यह नहीं जानता था कि डॉक्टर शुरू-शुरू में आसानी से मिल जाते हैं, पर प्रैक्टिस चल जाने पर उनके यहां लंबी लाइन लग जाती है। कम्पाउंडर को पैसे देकर एडवांस बुकिंग करानी पड़ती है। बिज़ी डॉक्टर तब सुपर हिट फिल्म की तरह हो जाते हैं। लंबी लाइन …
बात शुरू हुई थी मंत्री जी से मिलने का टाइम मांगने से। वास्तव में आज के दौर में हर आदमी बहुत व्यस्त है। लोगों के पास बाथरूम जाने तक का समय नहीं रहता। बाथरूम भी जाते हैं तो अखबार और मोबाइल फोन साथ लेकर। वहीं बैठे-बैठे एक पंथ दो काज हो जाते हैं। समय नहीं है लोगों के पास इसीलिए एक पंथ में दो काज कर रहे हैं। इंग्लैंड के एक प्रेमी युगल ने मैराथन में दौड़ते हुए अपना ब्याह रचाया था। साथ में उनके मां-बाप भी दौड़ रहे थे।
अपना भारत महान बनने की दिशा में तेज़ी से दौड़ रहा है। अपने यहां भी लोग खासे बिज़ी होने लगे हैं। हो सकता है, एक दिन वह भी आए जब मंत्रियों के पास, पी.एच.डी. गाइडों के पास, डॉक्टरों के पास, इंजीनियरों के पास, उनके बाल-बच्चों के पास एक मिनट की भी फुर्सत न हो। तब दुल्हा-दुल्हन हाथों में माला लेकर दौड़ते हुए शादी करेंगे। पंडित भी दौड़ रहा होगा। बाराती भी दूल्हे के पीछे भाग रहे होंगे। बैंडवाले बैंड बजाते हुए दौड़ रहे होंगे। बत्तीवाले भी सिरों पर बत्तियां रखकर दौड़ रहे होंगे। शादी की शादी, दौड़ की दौड़ उर्फ एक पंथ दो काज। इस तरह विवाह संपन्न हो जाएगा। लेकिन मैं चितिंत हूँ कि ऐसी भागती हुई जोड़ियों को मिलने का समय कब मिलेगा…
*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।