व्यंग्य: कम आत्मा, सुखी परमात्मा!
– डॉ. गीता पुष्प शॉ*
परमात्मा भगवान ने समाचार पत्र देखा। हेड लाईंसः देवताओं का यान लूट लिया गया। भारी मार-काट। सारा समाचार पत्र सनसनीखेज खबरों से भरा पड़ा था। कहीं आत्माओं द्वारा घेराव, कहीं हाईजैक करके किसी देवता को घंटों परेशान किया गया। कहीं धरना, कहीं जुलूस। सर्वत्र अशांति।
परमात्मा ने चिंतित होकर पी.ए. को बुलाया। वे तो हाल में ही लंबे टूर से लौटे थे। इस समय उनके पास कोई खास काम नहीं था। स्लैक सीज़न। सोच रहे थे कि अगर किसी टूर का प्रोग्राम बना लिया जाए तो? लेटे-लेटे ही कार्यक्रम बना रहे थे कि आज देर से उठेंगे, ब्रेकफास्ट के बाद किसी नृत्य-समारोह का मॉर्निंग शो देखेंगे। फिर ‘अप्सरा रेस्तरां में लंच तभी भगवान का कॉल आ गया। बहुत झल्लाए। ये भी कोई सर्विस है। संडे को भी आराम नहीं। यहां मरने की भी फैसिलिटी नहीं है। पेंशन का सवाल ही नहीं उठता। कभी बूढ़े हों तब न। इससे तो बेहतर पृथ्वी की नौकरी है। अगर मालिक से नहीं बना, तो हड़ताल या घेराव। वहां तो मालिक को ही सीधा कर दिया जाता है। और यहां? खरबों जन्मों का हिसाब-किताब आज तक किया । कोई गड़बड़ी नहीं, कोई घोटाला नहीं, पर न कभी बोनस मिला, न महंगाई भत्ता । जी तो करता है, भगवान से साफ-साफ कह दूं कि पृथ्वी से कम्प्यूटर मंगवा लें। मुझसे अब ये हिसाब-किताब नहीं होगा।
परमात्मा भगवान अत्यधिक चिंतित बैठे थे। उनके बाल बिखरे थे। पी.ए. महोदय को देखकर बोले, “तुमने आज का पेपर देखा है?”
पी.ए. ने दरअसल अखबार नहीं देखा था। चुप होकर प्रतीक्षा करने लगे कि भगवान ही अपनी तरफ से पहल करें। हुआ भी ऐसा ही। भगवान ने कहा- “सर्वत्र उपद्रव व अशांति। देवताओं का विचरना कठिन हो गया है। उपद्रव का कारण है आत्माएं”।
“पहले तो कभी आत्माओं ने ऐसा नहीं किया। अब जहां देखो, वहीं घेराव | तुम सारा लेखा-जोखा तैयार करके कल एक अर्जेंट मीटिंग कॉल करो। और हां, आत्माओं के नेता को भी बुला लेना। नहीं तो वह मुंह फुला लेगा।”
दूसरे दिन सभा-भवन के आगे अपार भीड़ थी। आत्माएं चिल्ला रही थीं- ‘इंकलाब जिंदाबाद, भगवान मुर्दाबाद। न्याय दो, नहीं तो गद्दी त्याग दो।’ भगवान ने पी.ए. को देखा- “इतनी सारी आत्माएं स्वर्ग में क्यों? इनको अब तक अपाईंटमेंट लेटर क्यों नहीं दिया गया?” पी.ए. ने कहा- “इन्हें जहां अपाइंट करता हूं, वहां ये जाना नहीं चाहतीं। रोज़ कोई न कोई लंबा-चौड़ा पिटीशन आ जाता है।”
परमात्मा भगवान ने स्वयं फाइल खोली- “आत्मा नं. एक।” आत्मा नं. एक उपस्थित हो गयी। भगवान ने प्रश्न किया, “आपका क्या केस है?”
“भगवन्, पहले मैं एक मिल मालिक में विराजमान थी। अब ये पी.ए. साहब मेरा ट्रांसफर नत्थूमल दहीवाले के यहां करना चाहते थे। मुझे प्रॉपर चांस मिलना चाहिए। आप ही सोचिए, जो आत्मा रात-दिन ब्लैक मार्केटिंग और ब्लैकमनी के विषय में अब तक सोचती रही, भला वह सफ़ेद-सफ़ेद दूध और दही का क्या करेगी?”
“पी.ए., इन्हें किसी मिलवाले के यहां भेज क्यों नहीं देते?”
“भगवन् जिस परिवार में ये थी, उसका बड़ा बेटा कनाडा में है। एक अमरीकन युवती से उसने शादी कर ली है। वे लोग अभी माता-पिता नहीं बनना चाहते। छोटा बेटा मिल का मालिक है। उसकी पत्नी पी.एच.डी. कर रही है। जब तक थीसिस पूरी न हो जाए, वह भी मां नहीं बनना चाहती, सभी बड़े घरों में यही हाल है सर।”
“और आत्मा नं. 2 का क्या केस है?” परमात्मा भगवान ने पूछा।
“भगवन् , ये तो प्रोफेसर मुखर्जी की आत्मा है। इनके बेटे के पास पहले से दो बच्चे हैं। उनका कहना है कि हम दो, हमारे दो। वे तीसरी संतान नहीं चाहते। एक वैकेंसी सेठ कौड़ीमल के यहां है। कहिए तो …।”
तभी प्रोफेसर मुखर्जी की आत्मा चिल्लाई- “नानसेंस। मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रही। पूरे साठ वर्ष लेबोरेटरी में गुजार चुकी हूं। अब कौड़ीमल के यहां बही-खाता संभालने जाऊंगी? यह नाइंसाफी है। इंकलाब जिंदाबाद।”
बाहर से भी नारे लगने लगे। आत्मा नं. दो चिल्लाने लगी-“हम क्या कोई सरकारी डॉक्टर हैं, देहात के ब्लॉकों में हमें जबरन भेजा जाएगा। भगवन् आपका घेराव किया जाएगा। हमारी मांगे पूरी करो। हमें सही शरीर दो। हमें न्याय दो, नहीं तो कुर्सी त्याग दो। इंकलाब जिंदाबाद, परमात्मा भगवान मुर्दाबाद।”
परमात्मा भगवान ने आत्माओं को आश्वासन दिया कि उनके साथ न्याय होगा और जल्द से जल्द उनका प्रबंध किया जाएगा। धीरे-धीरे सारी आत्माएं चली गईं। बच गए केवल पी.ए. महाराज |
चिंतित स्वर में भगवान ने कहा- “पी.ए., तुमने सारी फाइलों को यूं ही छोड़ दिया?”
“नहीं भगवन्, असल में बात यह है कि पृथ्वी पर इन दिनों परिवार नियोजन चल रहा है। कोई समझदार आदमी अधिक संतान पैदा कर दुःखी नहीं होना चाहता। पहले उनका नारा था, ‘दो या तीन बच्चे बस।’ इसके बाद पति-पत्नी कहने लगे, हम दो, हमारे दो।’ अब लगता है पति-पत्नी जल्द ही कहेंगे ‘हम दोनों एक, हमारा एक। … अब तो पृथ्वी पर एड्स के डर से कन्डोम का इस्तेमाल किया जाने लगा है। नाजायज संतान भी पैदा नहीं होतीं। जन्म लेने की संख्या बुरी तरह घट रही हैं। बड़ी मुश्किल से जहां वैकेंसी निकलती है, वहां ये आत्माएं जाना नहीं चाहतीं। भगवन्, रोज़-रोज़ वांटेड कॉलम देखते-देखते मेरी आंखें कमजोर हो गयी हैं। मेरे लिए चश्मे का प्रबंध कर दीजिए।”
परमात्मा भगवान ने पी.ए. को देखा-“जब भी मैं किसी प्रॉब्लम पर बात करता हूं, तुम हमेशा अपनी ही कोई न कोई समस्या रख देते हो। पहले इन आत्माओं का प्रबंध आवश्यक है। आत्माओं की बेकारी बढ़ गयी है।”
“चिंतित न हों भगवन्, इनका उपाय मेरे पास है,” पी.ए. ने कहा और उत्तरीय के छोर में बंधी एक कागज़ की पुड़िया खोली। परमात्मा भगवान बिगड़े – “पुड़िया- वुड़िया से क्या होगा? ऐसा करो, जिन्होंने काफी बुरे कर्म किये हैं, उनके मोक्ष का प्रश्न ही नहीं और मनुष्य योनि देना भी जरूरी नहीं। उन्हें पशुओं की योनि में भेज दो।”
पी.ए. कुछ देर तक पृष्ठ उलटते रहे। फिर बोले, “सर, कोई गुंजाइश नहीं है। आजकल तो कुत्तों की भी पूछ नहीं। केवल अलसेशियन की नस्ल अच्छी रह गयी है। लेकिन पुलिस विभाग में जब से इनसे काम लिया जाने लगा है, मुझे तो उनकी नीयत पर भी शक होने लगा है और सर, अलसेशियन और कोई भी अच्छी नस्ल के कुत्ते के बच्चों को लोग ऊंचे दामों पर बेच देते हैं। कुतिया को गरम पानी में डालकर मरवा देते हैं, मगर अपने पड़ोसियों को नहीं देते। वे आत्माएं फिर वापस आ जाती हैं। कट्टरपंथियों के चिल्लाने के बावजूद गो-हत्याएं बंद नहीं हुईं। गौ-आत्माएं फिर यहीं आ जाती हैं। उन्हें वापस भेजना पड़ता है। सोचा था भली औरतों की आत्माओं को गौ की योनि दूंगा। बहुत पूजा-पाठ करती रही हैं। अब गौ माता के नाम पर उनकी पूजा होगी। किंतु सर, मैं परेशान हो गया हूं, वहां भी वैकेंसी नहीं है।”
परमात्मा भगवान टूटे स्वर में बोले, “तब मैं क्या करूं?” पी.ए. जी ने एक पुड़िया बढ़ाया – “भगवन्, आप इस पुड़िया की ताबीज़ बनवाकर गले में पहन लीजिए, बड़ा लाभ होगा।”
“यह क्या है पी.ए.?” टूटे स्वर में परमात्मा भगवान ने पूछा। पी.ए. ने पुड़िया को खोलकर भगवान की हथेली पर फैला दिया, –”यह लाल तिकोन है। परिवार नियोजन का चिह्न। मैं पृथ्वी पर गया था। परिवार नियोजन पखवारे के अंतर्गत चल रही एक प्रदर्शनी के सामने से ये कागज उठाकर लाया हूं। आप भी नियोजन कीजिए। जहां जितनी वैकेंसी हैं, आत्माओं को भेज दीजिए। पृथ्वी पर तो छात्र ग्रेस मार्क्स के साथ पास किये जाते हैं। आप भी जहां तक हो सके, आत्माओं को ग्रेस मार्क्स देकर मोक्ष दे दीजिए। आत्माओं से मुक्ति मिल जाएगी और आप इस लाल तिकोन की सलाह मानिए, आत्माएं कम पैदा कीजिए। कम आत्मा, सुखी परमात्मा।”
परमात्मा भगवान ने लाल तिकोन को माथे से लगाया और उसे पी.ए. को देकर कहा- “आज ही इसकी ताबीज़ बनवा कर ला दो। कल ही इसे धारण करूंगा। कल मंगलवार है। मेरा और मेरे स्वर्ग का संभवतः मंगल हो जाए।”
पी.ए. ने दबी आवाज़ में कहा- “तथास्तु।” … और चल दिए ताबीज़ बनवाने।
*डॉ. गीता पुष्प शॉ की रचनाओं का आकाशवाणी पटना, इलाहाबाद तथा बी.बी.सी. से प्रसारण, ‘हवा महल’ से अनेकों नाटिकाएं प्रसारित। गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज, जबलपुर में अध्यापन। सुप्रसिद्ध लेखक ‘राबिन शॉ पुष्प’ से विवाह के पश्चात् पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज में अध्यापन। मेट्रिक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पाठ्य पुस्तकों का लेखन। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। तीन बाल-उपन्यास एवं छह हास्य-व्यंग्य संकलन प्रकाशित। राबिन शॉ पुष्प रचनावली (छः खंड) का सम्पादन। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित एवं पुरस्कृत। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से शताब्दी सम्मान एवं साहित्य के लिए काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान प्राप्त।