– स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती*
गौमाता सनातन धर्म का हृदय है, जिसके बिना धरती का अस्तित्व संकट में है। वेदों में गाय को अवध्या कहा गया है, जिसे मारना निषिद्ध है। पुराणों की कथाएँ हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों ने गाय की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है, “संग भूमि बेचारी गो तन धारी,” अर्थात् जब धरती माता असुरों से पीड़ित होती हैं, तो वे गाय का रूप धारण कर भगवान की शरण में जाती हैं। गौमाता धरती माता का चल स्वरूप हैं, जैसे भगवान विष्णु का विग्रह अचल और सन्यासी चल स्वरूप हैं। गाय के घी से हवन करने पर भगवान प्रसन्न होकर धर्म की रक्षा करते हैं, लेकिन आज अधर्मी और विधर्मी सुविचारित ढंग से गौहत्या कर रहे हैं। हमें योजनाबद्ध तरीके से, बिना विलंब, गौमाता की रक्षा के लिए कृतसंकल्पित होना होगा।
पुराणों में एक कथा है, जहाँ राजा दिलीप ने गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने का संकल्प लिया था। एक अन्य कथा में, भगवान इंद्र ने गाय की रक्षा के लिए युद्ध किया, क्योंकि गाय सनातन धर्म का आधार है। आज हमें उसी भावना को पुनर्जनन करना होगा। गौहत्या का पाप हमारे माथे पर कलंक बनकर चढ़ा है, जिसके कारण हम सनातनी अपने ही देश में अपमानित हो रहे हैं। सनातन परंपरा में हम पंचमहायज्ञ—देवयज्ञ, नृयज्ञ, भूतयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ और बलि वैश्वदेव—के माध्यम से अनिवार्य हिंसा का प्रायश्चित करते हैं और गौरक्षा की प्रतिज्ञा लेते हैं। लेकिन आज डालर के लालच में गाय को काटकर बेचा जा रहा है। यह पाप हमें और उन नेताओं को, जिन्हें हम वोट देते हैं, गौहत्या का भागीदार बना रहा है। मैं सनातनियों से आह्वान करता हूँ कि अपने घर के सामने लिख दें: यह हिन्दू घर है, जो गौहत्या को बढ़ावा दे, उसे हमारा वोट नहीं मिलेगा। केवल वही प्रत्याशी हमारा समर्थन पाए, जो शपथपूर्वक गौसेवा और गोकशी रोकने का वचन दे। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे बच्चे भी गौमांस खाने लगेंगे।
सनातन धर्म सदा रहने वाला धर्म है, जो भूत, वर्तमान और भविष्य में भी रहेगा। जो परमात्मा से जुड़ गया, वही सनातनी है। हिन्दू वह है जो हिंसा से दुखी होता है। गुरु होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं अपनी सनातनी प्रजा के माथे से गौहत्या का कलंक हटाऊँ। हमारी ताकत हमारा वोट है, जो उन नेताओं की कमजोर नस है, जो गौमाता को कटवाकर सत्ता सुख भोगते हैं। मैंने भक्तों को एक कथा सुनाई, जिसमें एक गौभक्त ने अपनी जान देकर गाय को बचाया, और उसी तरह आज छत्तीसगढ़ के गौभक्त वीर आदेश सोनी ने गौमाता के लिए अपनी अंगुली का बलिदान दिया। उनकी भक्ति हमें प्रेरित करती है। एक अवसर पर, मैंने रोटी बैंक का उद्घाटन किया, जहाँ हिन्दू घरों से एकत्र रोटियाँ गौमाता को समर्पित की जाएँगी। यह कार्य गौमाता के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाता है, जैसे पुराणों में गाय को माता मानकर उसकी सेवा करने की कथाएँ हैं।
सनातन धर्म के प्रतीकों में गौमाता सर्वोपरि है। भारत माता का कोई चित्र नहीं; वह गौमाता के रूप में हमारे सामने हैं। पुराण कहते हैं कि सात लोकों के आधार पर धरती टिकी है, और गौमाता उसका पहला आधार है। एक कथा में, जब असुरों ने गायों पर हमला किया, तो स्वयं भगवान ने उनकी रक्षा की, क्योंकि गाय के बिना धर्म और धरती दोनों अधूरे हैं। सनातन समाज में कोई भेदभाव नहीं। पुराणों में वर्णित है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र—सब विराट पुरुष के अंग हैं। उनके मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, पेट से वैश्य और पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई। जो शूद्र को नीचा कहते हैं, वे अपना पैर काटकर दिखाएँ। अधर्मी हमें आपस में लड़ाने की साजिश रच रहे हैं, लेकिन हमें एकजुट होकर सनातन धर्म और गौमाता की रक्षा करनी होगी। जो कहते हैं कि संतों को राजनीति में नहीं आना चाहिए, वे राजनीतिज्ञों से क्यों नहीं कहते कि वे धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें? मंथरा विचार हमें गर्त में ले जा रहा है, जैसा कि रामायण में मंथरा ने कैकेयी को भड़काकर धर्म के खिलाफ कार्य करवाया। यह विचार अनुकरणीय नहीं। यदि गाय नहीं बची, तो यह संसार भी नहीं बचेगा। सनातनियों, अपनी ताकत पहचानो और गौमाता की रक्षा के लिए अपने वोट का उपयोग करो, क्योंकि यही वह शक्ति है जो रामराज्य स्थापित कर सकती है।
*यह लेख ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य के उन भाषणों का संकलन है, जो उन्होंने अपनी गौमतदाता संकल्प यात्रा के दौरान फारबिसगंज (अररिया), किशनगंज और पूर्णिया, बिहार में दिए।

