– रमेश चंद शर्मा*
आइये आज यमुना नदी के बारे में विमर्श करें, जिसे हम जमना, जमुना, जुमना, कालिंदी वसुधारा, सप्तधारा, सहस्रधारा, गुप्तधारा, गिरिजा के नाम से भी जानते हैं। इसका पानी नीला, श्यामल है जो काला दिखता है। इसलिए भी इसे कालिंदी कहते है। कालिंद पहाड़, यमुनोत्री से निकलने वाली, तेजस्वी सूर्य भगवान एवं विश्वकर्मा की पुत्री संजना की बेटी। मौत के देवता यम की बहन। भैया दूज की जनक। यमुनोत्री से पहले हिम खंडों में सोई। बालकृष्ण, गोपालों की लीला भूमि। प्रयागराज में गंगा में समा जाने वाली।
इस प्राचीन नदी की यात्रा बूंद से शुरू होकर पहाड़, जंगल, मैदान, गांव देहात, शहर नगर होती हुई, गंगा से मिलकर सागर, समुद्र तक जाती है, और वहां भी जाकर रुकती नहीं है। फिर से भांप, गैस, बादल, वर्षा की बूंदें बनकर अनन्त यात्रा पर निकल पड़ती है। रास्ते में अनेक धाराओं को समेटते हुए आगे बढ़ती है। गरुड़ गंगा, ऋषि गंगा, हनुमान गंगा, बदियर, कमलाद, बदरी, अस्लौर, टोंस जिसे सुप्पीन भी कहते है, असान, आशानदी, गिरी, सिरमौर, मस्करी, कंठ, हिंडन, कृष्णी, काली, सबी, करतब, गंभीर, सिर, छोटी सिंध, बेतवा, केन, चंबल आदि नदियां इसमें मिलती है। इन सबको साथ लेकर यमुना खुद अपना अस्तित्व गंगा में समा देती है। आज भी गंगा-यमुना का व्यापक, विशाल क्षेत्र है।
ऋग्वेद, अथर्वेद, ब्राह्ममणस, अत्रेय ब्राह्ममण, शतपथ ब्राह्ममण में भी यमुना की चर्चा मिलती है। सिकन्दर के साथी सेल्यूकस, ग्रीक यात्री मेगस्थनीज के लेखन में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है। तुगलक ने नहरे-बहिस्त यानी नहरए-बहइस्त (स्वर्ग की नहर) यमुना से निकाली, मुगलों ने इसकी मरम्मत की और इसे बनवास से शाहजहांनाबाद तक बढ़ाया।
हथिनी कुंड, ताजेवाला में यमुना का पानी रोका गया है। जहां से पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहर निकाली गई। पश्चिमी यमुना नहर हरियाणा के उत्तरी जिलों को जल प्रदान करती है। यमुनानगर, करनाल, पानीपत होते हुए हैदरपुर ट्रीटमेंट प्लांट पहुंचतीं है। यहां से दिल्ली को जल की पूर्ति की जाती है। दिल्ली, हांसी, सिरसा इसकी मुख्य शाखाएं हैं।
पूर्वी यमुना नहर सहारनपुर जिले में फैजाबाद से यमुना के बाएं किनारे से निकलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को जल प्रदान करती हुई दिल्ली के निकट फिर से यमुना में आ मिलती है। आगरा नहर दिल्ली के ओखला बैराज से निकलकर आगरा के पास फिर यमुना नदी में मिल जाती है।
यमुना नदी घाटी में यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना घाटी का क्षेत्र भी विशाल है। विभिन्न काल खंड की दृष्टि से मशहूर शहर कुरुक्षेत्र, इन्द्रप्रस्थ, मथुरा, वृंदावन (महाभारत), चित्रकूट (रामायण), उदयपुर, जयपुर, बूंदी, चित्तौरगढ़ (राजपुताना), झांसी, ओरछा, मोहबा, काल्पी (बुंदेलखंड), इंदौर, ग्वालियर (मराठा), आगरा, भोपाल,पानीपत (मुगल) और भारत का राजनैतिक दिल दिल्ली भी इस नदी की घाटी में आते है। यमुना के किनारे दिल्ली जैसे महानगर के साथ-साथ बागपत, नोयडा, मथुरा, आगरा, इटावा, काल्पी, हमीरपुर, इलाहाबाद आदि शहर बसे हैं।
यमुना 1376 किलोमीटर की दूरी तय करके प्रयागराज में गंगा से जा मिलती है। इस तरह दोनों जुड़वां बहनें एक दूसरे में समा जाती हैं और यहां के बाद गंगा नाम से आगे बढ़ती हुई गंगा सागर में मिल जाती है। यमुनोत्री उत्तराखंड से प्रारंभ होकर प्रयागराज इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में यमुना गंगा का संगम हो जाता है।
यमुना की मिट्टी, खनिज, भू-जल की उपलब्धता, तापमान, वाष्पीकरण, भूतल, वर्षा, सिंचाई, यमुना से पानी का निष्कासन, भूमि का उपयोग, फसलें, जलग्रहण क्षेत्र, पानी का उपयोग, घरेलू प्रदूषण, कृषि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, नदी से संबंधित सरकारी, गैर-सरकारी एजेन्सियां, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और यमुना, सतलुज यमुना नहर, दिल्ली में यमुना, नदी खादर और बाढ़ क्षेत्र पर कब्जा, बाढ़ और सुखाड़ का खतरा, भूकंप का प्रकोप, सौंदर्यीकरण का खेल, कमाई का जरिया, भावनाओं से खिलवाड़, राजनीति का झमेला, यमुना का पुराना स्वरूप, यमुना जीवन धारा, यमुना का महत्व एवं आवश्यकता जैसे अनेक विषय हैं जिन पर व्यापक चर्चा, चिंतन-मनन, लेखन की जरूरत है। कभी समय निकालकर इन पर गहराई से विचार कर लिखने का मन रहता है।
आज सबसे पहले जरूरी है कि इस नदी के बहाव, अविरल, निर्मल प्रवाह के लिए उसका खुद का जल उपलब्ध हो। आज दिल्ली में यह नदी खुद अपनी प्यास नहीं बुझा सकती, ऐसी स्थिति बना दी गई है। यमुना प्यासी भी है, उदास भी है। इस के नाम से करोड़ों रुपए खर्च किए गए है, किए जा रहे है। यमुना को बाजार में खड़ा कर दिया गया है। यमुना माई, यमुना मां, यमुना की अविरलता, निर्मलता, पवित्रता के नाम पर धोखा किया जा रहा है।
चुनाव के आसपास यमुना खासतौर पर याद आती है। कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। कुछ आवाजें उठाई जाती है। वोट और नोट के चक्कर में यमुना को मकड़जाल में फंसाकर रखा है।
कुछ ऐसे कदम है जिन्हें उठाकर हम यमुना को फिर यमुना बना सकते है। इस नदी सहित सभी नदियों के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम उसमें उसके खुद के पानी का प्रवाह हो। दिल्ली में वजीराबाद के बाद लगभग 22 कि. मी. तक अपने जल की एक भी शुद्ध बूंद यमुना में नहीं है। इस नदी से संबंधित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों का 10% जल छोड़ने के समझौते को तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए। सालों से यह समझौता ठन्डे बस्ते में पड़ा है। खासकर दिल्ली में 22 कि.मी. 22 नाले नजफगढ़ नाले से लेकर ओखला नाले तक इस नदी में डलने वाली गंदगी को रोका जाए। आजकल जो आरती, पूजा पाठ, सौंदर्यीकरण के नाम पर जो ध्यान भटकाया जा रहा है, पैसे की बर्बादी, धंधा किया जा रहा है, उसे तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। इस नदी में गिरने वाले नालों को बरसाती नाला घोषित किया जाए। अभी रिकार्ड में, बोलचाल में गंदा नाला ही प्रयोग किया जा रहा है। सीवर और रीवर को अलग-अलग रखा जाए। सौंदर्यीकरण के साथ-साथ या पहले गंदगी को साफ सुथरा करने पर ध्यान दिया जाए। इस पौराणिक नदी की छाती पर अधिग्रहण, कब्जे बंद हो। जो हो चुके हैं उन्हें यथासंभव हटाया जाए।
आओ मिलकर सोचें और मां यमुना में आने वाली पीढ़ियों को भी खेलने कूदने, तैरने, नहाने, सीधे पानी पीने का अवसर प्रदान करने के लिए आवाज बुलंद करें।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
इस पर गहन विचार कर तुरत कार्य करने की आवश्यकता है।।