
हस्तक्षेप: वंचित वर्ग के असली मुद्दों को अनदेखी किया जा रहा है
समाज में वंचित वर्ग को राजनीति में शामिल करने का नारा उठाते हुए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व की आड़ में असल में व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवर्चस्व की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को नुकसान पहुँच रहा है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि वंचितों को न केवल सीटें दी जाए, बल्कि उनके मुद्दों पर वास्तविक चर्चा और समाधान के लिए नीतिगत बदलाव किए जाएँ। युवा सामाजिक चिंतक शैलेन्द्र प्रताप याज्ञिक का मानना है कि जब तक वंचित वर्ग के प्रतिनिधित्व को केवल प्रतीकात्मक स्तर पर रखा जाएगा, तब तक उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के प्रयासों में ठोस बदलाव नहीं आ सकेगा।
वंचितों को केवल सीटों या पोस्टों तक सीमित रखने की रणनीति, उनके वास्तविक हितों और समस्याओं का समाधान करने के बजाय, एक सजावटी कदम बनकर रह जाती है। इससे उनकी आवाज राजनीति के वास्तविक मंच पर दब जाती है।
राजनीतिक दल अपने स्वार्थी हितों और व्यक्तिगत पहचान को प्राथमिकता देते हुए, वंचित वर्ग की समस्याओं के समाधान के बजाय, नेतृत्व में व्यक्तिगत लाभ के लिए संघर्षरत दिखते हैं। यह स्थिति समाज में व्यक्तिवाद को बढ़ावा देती है।
परिवारवाद और जातिवर्चस्व
राजनीतिक परिदृश्य में परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता देने और जातिगत आधार पर सीटें बाँटने की प्रथा ने असली लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की जगह पारिवारिक और जातीय वर्चस्व को बढ़ावा दिया है। इस तरह की राजनीति से समाज में असमानता और विभाजन की स्थिति गहराती जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब तक वंचित वर्ग के प्रतिनिधित्व को केवल प्रतीकात्मक स्तर पर रखा जाएगा, तब तक उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के प्रयासों में ठोस बदलाव नहीं आ सकेगा। विशेषज्ञों का सुझाव है कि वंचितों को न केवल सीटें दी जाएँ, बल्कि उनके मुद्दों पर वास्तविक चर्चा और समाधान के लिए नीतिगत बदलाव किए जाएँ। इस प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के चलन को तोड़ने के लिए जरूरी है कि: वंचित वर्ग की समस्याओं और आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाए; राजनीति में वास्तविक नेतृत्व को प्रोत्साहित करते हुए पारदर्शी और जिम्मेदार नीतियाँ अपनाई जाए; जातिवादी और पारिवारिक राजनीति के खिलाफ समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाई जाए।
इस तरह का दृष्टिकोण न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करेगा, बल्कि समाज में असली सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में भी एक ठोस कदम साबित होगा।
– वरिष्ठ पत्रकार। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।