– अनिल शर्मा*
जालौन/गरौठा/भोगनीपुर: पहले हिमाचल प्रदेश फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थिंक टैंक में उथल पुथल मचा दी है। आगामी वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीसरी जीत को सुनिश्चित करने के लिए पार्टी नेतृत्व ने रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। पार्टी नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश चुनाव में वर्ष 2019 में भाजपा और उनके सहयोगी को मिली 64 लोकसभा सीटों के मुकाबले इस बार 80 में से 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है इसके लिए जो भाजपा और संघ ने जो अहम रण नीति बनाई है। उसके तहत जिन जिन सांसदों की सर्वे में जीतने की स्थित नहीं होगी उन सभी के टिकट काट दिए जाएंगे।
उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके सहयोगी संगठनों को 125 विधानसभा सीटें जीतने का मौका मिला था उसे कम करने के लिए भाजपा ने दलित और ओबीसी समाज को लोकसभा चुनाव में अधिक प्रतिनिधित्व देने की रणनीति बनाई है। उधर स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को जिस तरह से मुस्लिम समाज के लोगों को बड़ी संख्या में वोट दिया उससे समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगी जिसके कारण सपा को वह अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाया पाई इस को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने तय किया है जिस तरह से भी हो हिंदू समाज की सभी जातियों को भाजपा के पाले में लाने के लिए प्रयत्न करे।
समाजवादी पार्टी से एक कदम आगे बढ़कर भाजपा और संघ हिंदू समाज की प्रत्येक जाति को संघ और भाजपा के माध्यम से संगठन और सत्ता में शामिल करने की रणनीति बना चुकी है और प्रत्याशियों के उत्तर प्रदेश में चयन के लिए अलग-अलग दल भेजे जा रहे हैं।
ऐसा ही एक दल भाजपा द्वारा बुंदेलखंड में भी सर्वे के लिए भेजा जा रहा है।सपा के मुस्लिम वोट बैंक में तथा यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने अलग-अलग गोपनीय रणनीति बनाई है। गरीब और मध्यम वर्ग के अल्पसंख्यक पसमांदा को भाजपा अपनी ओर खींचने के लिए जुटी हुई है। इसी तरह ज्यादातर यादव बिरादरी की एक टीम को उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में यादव जाति के लोगों को भाजपा को अपने पाले में लाने के लिए राष्ट्रवाद और हिंदू मुस्लिम का पाठ पढ़ा कर सपा से तोड़ने की रणनीति बनाई गई है।
भाजपा की असली समस्या जो कर्नाटक में थी वही उत्तर प्रदेश में भी है। एक धारणा बनी है कि तमाम जनप्रतिनिधि पैसा कमाने में जुटे हुए हैं जबकि भाजपा शासित राज्यों में बढ़ते विभागीय भ्रष्टाचार के मद्देनजर, इसका डेमेज कन्द्रोल करने की रणनीति बनाई जा रही है । इसलिए भाजपा जो तीन स्तरीय प्रत्याशियों के सर्वे करा रही है इसमें इतना तय है कि भाजपा के उत्तर प्रदेश के 80 में से बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काटे जायेंगे । संघ और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसलिए लोकसभा के टिकिट वितरण को लेकर त्रि- स्तरीय गोपनीय सर्वे करवा रहा है , ताकि ऐसे प्रत्याशियों का चयन हो जिनकी न केवल समाज में साफ सुथरी छवि हो बल्कि उनके सामाजिक कार्य करने की सर्वस्पर्शी नीति हो।
प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में जालौन- गरौठा -भोगनीपुर सुरक्षित सीट की बात की जाय तो इस सीट पर भाजपा के चार नेता प्रमुख रूप से टिकट के दावेदार बताये जा रहे हैं । इनमें पहला नाम केन्द्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा का है जिनका राजनीतिक सफ़र अपने गृह नगर कोंच से नगर पालिका के सभासद के रूप में हुआ । उसके बाद वह कोंच विधानसभा सुरक्षित सीट से विधायक रहे और वर्ष 1996 से 1998 , 1998 से 1999 तदुपरांत 2004 से 2009 और फिर 2014 से 2019 तक 5 बार इस सुरक्षित क्षेत्र से सांसद चुने गये हैं । मोदी के दूसरे कार्यकाल में वर्ष 2021 में वह केन्द्रीय मंत्री बनाये गये हैं । एक राष्ट्रीय पत्रिका ने अपने सर्वे में इन्हें ईमानदार सांसदों की सूची में शुमार किया था । लेकिन इनके बारे में यह चर्चा आम है कि वह किसी के खिलाफ शिकायत तो नही करते हैं लेकिन तमाम लोगों के जायज प्रार्थनापत्र भी याद नही रख पाते हैं । पूछने पर वे अक्सर कहते हैं कि आपका प्रार्थना पत्र कम्प्यूटर में है और काम होगा । लेकिन महीनों तक कम्प्यूटर से प्रार्थना पत्र निकल नहीं पाता है।
टिकट के दूसरे प्रबल दावेदार हैं घनश्याम अनुरागी , जो भाजपा के वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। उन्होंने हाल ही में अपने आवास में गरीबों के लिए अपनी रसोई शुरू की है जिसमे गरीबो और जरूरत मंदों को 5 रुपये में भर पेट भोजन कराया जाता है । अनुरागी वर्ष 2009 में समाजवादी पार्टी से सांसद चुने गए थे और उन्होंने तत्कालीन सांसद भानुप्रताप सिंह वर्मा और बसपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व सांसद ब्रजलाल खाबरी को हराया था। खाबरी वर्तमान में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं।अनुरागी वर्ष 2009 से 2014 तक सपा के सासंद रहे पर कुछ नेताओं से मतभेद होने के कारण बसपा में आ गये। लेकिन जब बसपा से 2019 में उन्हें लोकसभा का टिकिट नही दिया तो वह बसपा छोड़कर भाजपा में आ गये और वर्ष 2021 में भाजपा से जिला पंचायत अधक्ष बन गये। उनके पास कम्प्यूटर ऑपरेटर्स की टीम है जो प्रार्थना पत्र मिलते ही सम्बंधित विभाग में पैरवी के लिए जुट जाती है। उनके बारे में दूसरी विशेष बात यह है वह लोगों के पैर छूने और शादी- मृत्यु और त्रियोदशी समारोह में जाने में जिले के नेताओं में सबसे आगे हैं । पर अक्सर वह विवादों में घिरे रहते हैं। उन पर परिवार से लेकर राजनैतिक क्षेत्र तक कोई न कोई आरोप लगता है और वह अपने स्तर से उसका प्रतिवाद भी करते हैं । विवादों से उनका चोली दामन का साथ रहा है।
टिकट के तीसरे प्रबल दावेदार भाजपा के सदर विधायक गौरीशकर वर्मा हैं जिन्होंने भाजपा शासन में डबल इंजिन की सरकार में आये प्रचुर बजट के कारण ज्यादा से ज्यादा विकास कार्यों को कराने का श्रेय भी उनके हिस्से में हैं । लेकिन पिछले दिनों उरई नगर पालिका के चुनाव में भाजपा से अध्यक्ष पद की प्रत्याशी रेखा रानी वर्मा की बुरी हार ने भाजपा नेतृत्व को बुरी तरह से झकझोर दिया है । इसकी शिकायत भाजपा नेतृत्व के पास पहुँच चुकी है कि भाजपा के जनपद के कुछ प्रमुख नेताओं ने भितरघात करके रेखा रानी वर्मा को हरवाया है । सूत्रों के अनुसार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और संघ इसकी गोपनीय स्तर पर जांच भी करवा रहा है।
इस सीट के चौथे प्रबल दाबेदार सेवानिवृत आईआरएस व पूर्व कमिश्नर शम्भू दयाल हैं जो अपने मई 2012 में रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल हुए और बुन्देलखण्ड -विकास- बोर्ड , उत्तर प्रदेश के सदस्य हैं। उनकी गणना जनपद में समाजसेवियों में होती हैं । शम्भू दयाल , अहिरवार जाति से है जो इस संसदीय क्षेत्र में दलितों की चौधरी समाज के अहिरवार ,जाटव , और दोहरे वर्ग के बड़े वोट बैंक से आते हैं । इस सुरक्षित संसदीय क्षेत्र में अहिरवार ,जाटव , और दोहरे की मतदाता संख्या लगभग साढ़े तीन लाख हैं जो कि दलित जातियों में सर्वाधिक है । लेकिन विडंबना ये है कि जनसंघ के जमाने से भाजपा तक का नेतृत्व इस तीनों जातियों को अपना वोट बैंक नहीं मानता रहा है और वह दलितों में केवल कोरी समाज को ही अपना वोट बैंक मनाता आ रहा है । लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दुसरे कार्यकाल में चौधरी समाज की भाजपा में बढ़ती हुई भागीदारी के कारण अब यह बदलाव आया है कि बेबी रानी मौर्य जो जाटव बिरादरी से हैं, प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल में महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं जबकि दोहरे समाज के पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण को प्रदेश में समाज कल्याण विभाग का स्वतंत्र प्रभार देकर मंत्री बनाया गया है । संघ और भाजपा नेतृत्व आगे भी ये चाहता है कि हिन्दू समाज की सभी जातियों का संगठन और शासन -सत्ता के स्तर पर भागीदारी बढ़े।
– वरिष्ठ पत्रकार