उटंगन नदी
– ज्ञानेन्द्र रावत*
उटंगन बांध: उपेक्षा का अंत?
आगरा की प्रमुख नदी और इस अंचल की जीवन रेखा उटंगन बरसों से अपने ताड़नहार की प्रतीक्षा में है कि कब कोई भगीरथ आकर उसकी सुध लेगा और इस समूचे अंचल को अपने जल से सिंचित कर यहां के लोगों की पानी की प्यास बुझायेगा।
दरअसल उटंगन नदी आगरा जनपद की यमुना और चम्बल नदी के बाद तीसरी सबसे बड़ी नदी है। पहले इस नदी में साल के सात-अठ महीने भरपूर पानी रहता था, लेकिन राजस्थान सरकार ने इसका पूरा पानी खनुआ जिसे खानवा के नाम से भी जानते हैं और जो भरतपुर के अपस्ट्रीम में स्थित पांचना बांध है, उस पर रोक लिया है। गौरतलब यह है कि इसके बावजूद भी इसमें पूरे मानसून काल में पानी भरपूर बना रहता है।
यहां इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजस्थान के सिंचाई विभाग ने बिना उ प्र सरकार और उसके सिंचाई विभाग की सहमति के अपनी सीमा में आगरा को आने वाला पानी रोक लिया है। जबकि यह एक अंतर्राज्यीय नदी है। यही नहीं इसका जलग्रहण क्षेत्र राजस्थान और उ प्र दोनों में ही है।
करौली, राजस्थान की पहाड़ियों से भरपूर जलराशि के साथ प्रवाहित होने वाली उटंगन नदी राजस्थान के ऐतिहासिक खनुआ यानी खानवा गांव से फतेहपुर सीकरी विकास खंड के सिरौली गांव से होकर आगरा जिले की सीमा में भरपूर जलराशि के साथ प्रवेश करती थी तथा लगभग फतेहपुर सीकरी, किरावली, जगनेर, खैरागढ़, सैंया, शमशाबाद तथा फतेहाबाद विकासखंड के गांवों में सौ किलोमीटर बहकर फतेहाबाद विकासखंड के रेहावली गांव में जाकर यमुना नदी में समाती है।
यह नदी अधीक्षण अभियंता सिंचाई विभाग के तृतीय वृत्त के निचले खंड आगरा नहर के प्रशासनिक प्रबंधन अधिकार में आती है। यमुना नदी के बाद उटंगन नदी ही जनपद की जल संचय और भूमिगत जलस्तर में सुधार को दृष्टिगत रखते हुए सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इसके बावजूद इस नदी की बरसों से या यूं कहें कि दशकों से भारी उपेक्षा होती रही है। जबकि यह इस समूचे अंचल की जीवनरेखा है।
यह सब जानते-समझते हुए भी शासन-प्रशासन इस ओर से सदैव उदासीन बना रहा। यह विडम्बना नहीं तो और क्या है। यहां तक इस ओर जनप्रतिनिधियों का मौन भी कई सवाल खड़े करता है कि इसका कारण क्या है, यह समझ से परे है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि उटंगन में जल आने का स्वाभाविक स्रोत करौली के विंध्य पहाड़ी क्षेत्र की जलधारायें ही हैं। इसके अलावा आगरा जिले की खेरागढ तहसील स्थित 35 बंधियों का बडा डिसचार्ज है जो इसके विस्तार में प्रभावी भूमिका निभाता है।
सबसे अहम बात यह कि इनमें से प्रत्येक के मानसून काल के पूर्व 15 जून को गेट गिरा दिये जाते हैं। मानसून काल में इनमें से प्रत्येक बंधी लोकल कैचमेंट एरिया से पोषित जलधाराओं से पानी से भरपूर होती है। रबी की फसलों के लिये 15 अक्टूबर को बंधियों के गेट उठाकर बुवाई के लिये डूब क्षेत्र की जमीन उपलब्ध करवा दी जाती है।
इसके अतिरिक्त फतेहपुर सीकरी के विंध्य पहाड़ी की निचली श्रंखला से बने रिज एरिया की जलधाराओं से पोषित खारी नदी, भरतपुर के चिकसाना नाला, वेस्टर्न डिप्रेशन ड्रेन राजस्थान के राजा खेडा विकास खंड से आने वाली पार्वती नदी आदि के डिसचार्ज भी उटंगन नदी को मानसून काल समाप्त होने के बाद अक्टूबर महीने तक पानी से भरपूर रखते हैं।
बंधियों के डिस्चार्ज सहित अपस्ट्रीम से आने वाला पानी उटंगन नदी में बहकर फतेहाबाद तहसील के रेहावली गांव होकर यमुना नदी में पहुंचता है। अक्टूबर महीने में डिस्चार्ज किए जाने वाले इस पानी को डैम बनाकर नदी में रेहावली गांव में संचित किया जा सकता है।
क्योंकि उटंगन नदी रिहावली और बाह तहसील के रीठे गांव के बीच यमुना में समा जाती है। जब भी आगरा में यमुना नदी लो फ्लड लेवल पर होती है, उटंगन नदी में 9 कि.मी. से 17 कि.मी. से अधिक बैक मारती है जिससे इसका पानी अरनौठा गांव में बने रेलवे के पुल तक पहुंच जाता है। यमुना नदी में जलस्तर घटने के साथ ही यह पानी पुन: नदी में समाने लगता है।
अब सवाल उठता है कि इस पानी का क्या किया जाये या इसे बर्बाद होने से कैसे बचाया जाये। वह यह कि यमुना नदी के उटंगन नदी में पहुंचने वाले पानी को उपयुक्त गेटिड स्ट्रक्चर या स्लूस गेट युक्त बांध बनाकर रोका जा सकता है। इसके अलावा इस बर्बाद होने वाले पानी को बचाने का और कोई तरीका नहीं है।
क्योंकि मानसून काल में यमुना नदी के उफान से उटंगन नदी में पहुंची इस जलराशि को सहजता के साथ पूरे वर्ष संचित रखा जा सकता है और इस तरह जहां कृषि को सिंचित करने में मदद मिलेगी, वहीं जहां भूजल स्तर में सुधार होगा, वहीं जल संकट से भी निजात मिलेगी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विपुल जलराशि जिले की बाह और फतेहाबाद तहसील के गांवों की भूजल रिचार्ज जलभृत व्यवस्था में सुधार करने के अलावा पंप से लिफ्ट कर फतेहाबाद और शमशाबाद कस्बे तक पाइप लाइन से पीने के पानी की सप्लाई में अहम भूमिका का निर्वहन करेगी। इससे इस क्षेत्र में पीने के मीठे पानी की समस्या का भी समाधान होगा।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि इस बाबत जिले की सिंचाई बंधु की 13 जून 2023 को हुई बैठक में उटंगन नदी पर डैम बनाये जाने की संभावना पर औपचारिक रूप से 12 दिसंबर 2023 को हुई मीटिंग में पुन: विचार किया गया। इस बैठक में नदी पर बांध बनाया जाना सामायिक जरूरत माना गया।
विभागीय आला अधिकारियों द्वारा इसका भौगोलिक परीक्षण-निरीक्षण भी किया गया। लेकिन दुख है कि इसके बावजूद इस कार्य में प्रगति शून्य रही और मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया।
लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती मंजू भदौरिया ने पिछले दिनों इसमें अपनी रुचि दिखाई और इस बाबत माननीय मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ से भी भेंटकर इस मसले का शीघ्र निराकरण करने की मांग की। इसपर मुख्य मंत्री महोदय ने शीघ्र कार्यवाही किये जाने का आश्वासन भी दिया।
विभाग की हीला-हवाली समझ से परे है जिसे लेकर जनपद वासियों का असंतोष मुखर है। वे जिले के आला अधिकारियों द्वारा इस मसले पर हीला-हवाली और टालमटोल वाला रवैय्या जिले की जनता के साथ खिलवाड मानते हैं। उनका मानना है कि इस समस्या का अंतिम समाधान यही है कि आगरा के गिरते जलस्तर, बढ़ते डार्क क्षेत्र को दृष्टिगत रखते हुये उटंगन नदी पर स्लूस गेट युक्त बांध बनाया जाये जिससे इस अंचल में कृषि के साथ-साथ पीने के पानी की दशकों पुरानी समस्या का भी स्थायी समाधान हो सके।
यदि ऐसा हुआ तभी इस अंचल की दशकों पुरानी समस्या से जनता राहत की सांस ले सकेगी। इसमें दो राय नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
