बालिका शिक्षा और अधिकारों के लिए हाड़ौती में व्यापक अभियान
हाड़ौती: राजस्थान के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में दलित और आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों की स्थिति आज भी गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। सामाजिक भेदभाव, संसाधनों की कमी, बाल विवाह, लैंगिक हिंसा और आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियाँ इन बालिकाओं के जीवन, शिक्षा और आत्मनिर्भरता की राह में लगातार बाधाएँ खड़ी कर रही हैं। विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये असमानताएँ न केवल उनके व्यक्तिगत विकास को रोकती हैं, बल्कि उनके समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी रोड़ा बनती हैं।
इन मुद्दों को लेकर हाड़ौती जनजाति विकास समिति, जो हाड़ौती और आसपास के जनजातीय इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकार के कार्यक्रम संचालित करती है, ने हाल ही में “उजास: नई राह, नई उड़ान” नामक अभियान शुरू किया है। समिति की कार्यक्रम अधिकारी सुमन देवठिया ने बताया कि अभियान का उद्देश्य बालिकाओं के अधिकारों और शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना, उन्हें कौशल और नेतृत्व की ट्रेनिंग देना, और समुदाय और प्रशासन के बीच संवेदनशीलता पैदा करना है। उन्होंने कहा कि सरकार को इन बालिकाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
समिति के सचिव कौशल मीणा के अनुसार, अभियान की शुरुआत राजस्थान के उन जिलों में होगी, जहाँ दलित और आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के प्रयास न्यूनतम रहे हैं। इनमें बांसवाड़ा, डूंगरपुर, करौली, बारां, प्रतापगढ़ और टोंक शामिल हैं। अभियान में बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं। इसके तहत ‘उजास केंद्र’ स्थापित किए जाएंगे, जहाँ बालिकाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्तियों और डिजिटल एवं व्यावसायिक कौशल के विषय में जानकारी दी जाएगी।
इसके अलावा, नेतृत्व और सशक्तिकरण के लिए बालिका नेतृत्व शिविर आयोजित किए जाएंगे, ताकि बालिकाओं में आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता विकसित हो। विद्यालयों, पंचायतों और अभिभावकों के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिससे समुदाय में बालिकाओं के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता बढ़े और सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव आए। अभियान की एक और प्रमुख गतिविधि “उजास रथ यात्रा” है, जिसमें टीम गाँव-गाँव जाकर बालिकाओं और उनके परिवारों को उनके अधिकारों और उपलब्ध अवसरों के बारे में जानकारी देगी।
समिति ने यह भी बताया कि बालिकाओं की संघर्ष और सफलता की कहानियों को दस्तावेजीकृत कर प्रेरक उदाहरण के रूप में साझा किया जाएगा। इसके अलावा सोशल मीडिया, रेडियो और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से जनभागीदारी और जागरूकता बढ़ाने की योजना भी बनाई गई है। समिति का कहना है कि अभियान में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, स्थानीय प्रशासन, महिला समूह और युवा स्वयंसेवक सहयोगी की भूमिका निभाएँगे।
हालांकि राज्य सरकार की ओर से बालिकाओं की शिक्षा और अधिकारों को लेकर विभिन्न योजनाएँ और छात्रावास मौजूद हैं, लेकिन सामाजिक और भौगोलिक बाधाओं के कारण इनका लाभ हर बालिका तक नहीं पहुँच पा रहा है। बालिकाओं की शिक्षा पर निगरानी रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सामाजिक दृष्टिकोण और संसाधनों में सुधार नहीं होगा, तब तक लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा की स्थिति में पर्याप्त बदलाव नहीं आएगा।
हाड़ौती जनजाति विकास समिति ने यह अभियान विशेष रूप से उन बालिकाओं के लिए शुरू किया है जो सामाजिक भेदभाव और संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। समिति का कहना है कि यह पहल केवल बालिकाओं को अधिकारों और शिक्षा की जानकारी देने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि समुदाय और स्थानीय प्रशासन में जवाबदेही बढ़ाने का प्रयास भी करेगी। समिति ने बताया कि अभियान के माध्यम से वे बालिकाओं को प्रशिक्षित करेंगे, नेतृत्व क्षमता विकसित करेंगे, और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देंगे।
समिति के अध्यक्ष प्रताप लाल मीणा ने कहा कि हाल ही में मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में आदिवासी और वनवासियों के अधिकारों से जुड़े पट्टों को रद्द करने पर केंद्र सरकार के जनजाति कार्य मंत्रालय को ज्ञापन दिया गया था। इसका जवाब मिल जाने के बाद समिति ने राज्यभर में अभियान को और व्यापक बनाने की योजना बनाई है।
कौशल मीणा ने इस पहल को “सिर्फ़ एक अभियान नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन” बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य दलित और आदिवासी बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें शिक्षा तथा कौशल के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना है।
*वरिष्ठ पत्रकार
