– डॉ राजेंद्र सिंह*
अरावली संरक्षण और भारत का न्यायिक निर्णय
अरावली संरक्षण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने 20 नवंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया, जिसमें पर्यावरण क्षरण को “राष्ट्रीय प्राथमिकता का प्रश्न” बताया गया। अदालत ने कहा कि वर्तमान तंत्र बिखरा हुआ है और विभिन्न राज्यों में नीतिगत असमानताएँ अरावली के संरक्षण को कमजोर कर देती हैं। इसी संदर्भ में पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया: “20 नवंबर 2025 को अपने आदेश में, हम पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालयको निर्देश देते हैं कि वह भारतीय वन प्रबंधन एवं अनुसंधान परिषद के माध्यम से संपूर्ण अरावली क्षेत्र — जिसे गुजरात से दिल्ली तक फैली सतत भूवैज्ञानिक पर्वतमाला के रूप में समझा जाता है — के लिए सरंडा की तर्ज पर एक मास्टर प्लान फॉर सस्टेनेबल मैनेजमेंट (MPSM) तैयार करे।” अदालत ने इस मास्टर प्लान को समयबद्ध रूप से लागू करने और सभी राज्यों के बीच समन्वित ढाँचा विकसित करने को अनिवार्य बताया, ताकि अरावली के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए एकीकृत नीति सुनिश्चित की जा सके।उच्चतम न्यायालय ने भारत सरकार को निर्देश दिया है। अरावरी संपूर्ण रूप में गुजरात से दिल्ली तक एक पर्वत माला है। यह सम्पूर्ण संरक्षित एक ही पर्वतमाला है। इसे समग्रता में देखना है।
पूरी दुनिया और उच्चतम न्यायालय का मानना है कि पर्वतमालाएं धरती के गर्भ से निकलती हैं। इनकी सम्पूर्ण पर्वतमाला की पारिस्थितिकी एकसमान रूप में बचानी होती है। संपूर्ण भूभाग, चाहे धरती के भीतर हो या बाहर, एक जैसा संरक्षण मांगता है। इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने अरावली के हर हिस्से को उसकी सीमाओं में खनन नहीं करने के लिए व्यवस्था बनाने का 6 माह का समय दिया है। अरावली को खनन-मुक्त रखना ही भारत की विरासत बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। अरावली में कई अच्छे और महत्वपूर्ण खनिज हैं; जिन खनिजों की देश को राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यकता है। ऐटमिक राष्ट्रीय स ुरक्षा महत्व हेतु खनन की उनको सुप्रीम कोर्ट ने छूट दी है लेकिन सामान्य खनिजों के लिए अरावली को काटना, जंगल नष्ट करना और पर्वतमाला में नए घाव बनाना किसी भी रूप में उचित नहीं है। कोप30 बेलेम, ब्राजील ने भी वर्षा वन के संरक्षण एवं वनवासियों के निर्णय में भागीदार बनाने की व्यवस्था आज के ही दिन बनाई है।
20 नवंबर 2025 को ब्राजील में कोप 30 आयोजित हुआ, जिसमें दुनिया के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भविष्य की चिंता में एकत्र हुए। इस बार ब्राजील के राष्ट्रपति ने स्वयं कहा कि उनके देश के अमेजोन वर्षा वन का बड़ा नुकसान खनन से हुआ है। इस नुकसान के प्रमाण दुनिया को दिखाने के लिए कोप को अमेजन फॉरेस्ट के केंद्र बेलम में आयोजित किया गया है। इस बार का कोप एक बहुत बड़ा प्रुफ है।
कोप 30 ने निर्णय लिया कि सारा पैसा सीधे आदिवासी संगठनों को दिया जाएगा, कोई सरकार बीच में नहीं रहेगी। आदिवासी स्वयं जंगल बचाने के निर्णय करेंगे। जर्मनी ने ब्राजील के नए वैश्विक वर्षावन कोष में दस वर्षों में एक अरब यूरो देने का वादा किया है। यह कोष उपग्रह निगरानी के आधार पर वनों को बचाने वालों को पुरस्कार और अधिक कटाई करने वालों पर दंड का प्रावधान करता है। जर्मनी के मंत्रियों ने इसे धरती के “फेफड़ों” उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की रक्षा का सवाल बताया है।
ब्राजील का अनुमान है कि यह कोष आगे चलकर 125 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। वर्षावन, जिन्हें धरती के “हरे फेफड़े” कहा जाता है, खेती और खनन के दबाव से संकट में हैं। नॉर्वे तीन अरब डॉलर और ब्राजील व इंडोनेशिया एक-एक अरब डॉलर देने का वादा कर चुके हैं। इस पहल में कई वर्षावन देश शामिल हैं और इसकी देखरेख एक संयुक्त समिति करेगी। लगभग सत्तर देशों को इससे लाभ मिल सकता है, बशर्ते कम से कम 20 प्रतिशत धन आदिवासी और पारंपरिक समुदायों तक पहुंचे। अब तक 53 देश इसका समर्थन कर चुके हैं, और ब्राजील को उम्मीद है कि समृद्ध देश 25 अरब डॉलर की शुरुआती सहायता देंगे। फोजिल-फयूल शब्द विवाद को लेकर कोप का समय बढ़ गया है।
पर्यावरण और भविष्य की चिंता करने वाले मित्रों ने उच्चतम न्यायालय और विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों में अरावली को बचाने की आवाजें उठाईं। इन याचिकाओं के परिणामस्वरूप चारों राज्यों की अरावली का एक समग्र दर्शन सामने आया, जिससे हम बहुत आनंदित थे। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अब आगे कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। यह बेहद सम्माननीय फैसले है। जिनसे अरावली के कुछ आंसू पोंछने की कोशिश हुई। लेकिन अब नई परिभाषा से भारत सरकार अरावली के आंसू के पोछनें की शुरुआत करेगी।यह अरावली के आंसू सदैव के लिए रोकेंगे ऐसा विश्वास है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सौ मीटर ऊंची अरावली में खनन नहीं होगा और सौ मीटर से नीचे की अरावली पर भारत सरकार विचार कर सकती हैं। यह फैसला 1990 की याद दिलाता है, जब अरावली में वैध और अवैध 28 हजार से अधिक खदानें चलती थीं। इन खदानों को बंद कराने के लिए तरुण भारत संघ की पहल और उसके आधार पर जारी नोटिफिकेशन को लागू करवाने के लिए मैने 2 अक्टूबर 1993 को हिम्मतनगर गुजरात से दिल्ली तक पदयात्रा की थी। भारत सरकार ने इस आवाज को गंभीरता से सुना, खदानें बंद हुईं और अरावली पुनर्जीवित होने लगी। लेकिन वर्ष 2015 आते-आते बहुत सी जगहों पर अवैध खदानें फिर चालू हो गईं। जहां खदानें चलीं, वहां अरावली नष्ट होने लगी, जल संकट और जलवायु संकट गहराने लगे, भूजल भंडार खाली होते गए। फरीदाबाद, नूहं, गुरुग्राम इसके उदाहरण हैं। अलग-अलग समय पर वैध-अवैध सभी तरह की खदानें धीरे-धीरे फिर चलने लगीं और संकट खड़ा करती रहीं। राजस्थान में अनिल मेहता तथा अन्य लोगों ने याचिका दायर करके रूकवाने की लड़ाई जारी कर दी। हरियाणा-दिल्ली में नीलम अहुवालिया ने लड़ाई खड़ी करी है, जो अब भी जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, एटमिक मिनरल्स जैसे अत्यावश्यक खनिज अरावली में मिलेंगे तो निकाले जा सकते हैं, और यह स्वागत योग्य बात है। लेकिन सामान्य खनिजों के लिए माइनिंग करके अरावली को नंगा करना, जंगल काटना और उसमें गैप बनाना बिल्कुल उचित नहीं है। अरावली की परिभाषा अब समग्र है। कहना कि सौ मीटर ऊंची ही अरावली होती है, गलत है। पर्वतमाला एक ही होती है। मां के गर्भ से निकले पर्वत को गर्भ से लेकर चोटी तक उसके पूरे चरित्र सहित बचाना जरूरी है, उसके पेड़-पौधे, जीव-जंतु और उसके आदिवासी ,जंगलवासी समुदाय। सबसे पुराने आदिवासी समुदाय अरावली की चोटियों पर ही मिलते हैं। इनको बचाने के लिए कोप 30 से सीख लेना चाहिए।
तरुण भारत संघ ने अरावली को बचाने की आवाज सबसे पहले 1988 में उठाई थी। 1991 में अरावली में हो रहे खनन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उस जमाने में उच्चतम न्यायालय में इस केस की सुनवाई पूर्व न्यायमूर्ति श्री वेंकट चलैया, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय भारत, ने बहुत ही गंभीरता से ली थी। उन्होंने सरिस्का की 478 खदानों को बंद करने का आदेश दिया था। पूरी अरावली पर्वतमाला, जो भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमाला और दुनिया की दूसरी सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में मानी जाती है, जैसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक विरासत को बचाने के लिए भारत सरकार ने अरावली की आवाज सुनी और उसके आंसू पोंछने की शुरुआत 7 मई 1992 को हुई।
धीरे-धीरे यह मांग अरावली के चारों राज्यों, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैल गई। 2 अक्टूबर 1993 को हिम्मतनगर, गुजरात से अरावली का सिंहनाद करते हुए यह यात्रा 22 नवम्बर को दिल्ली संसद पहुंची थी। उस समय के संसद अध्यक्ष शिवराज पाटिल को अरावली को बचाने के लिए ज्ञापन दिया गया और बताया गया कि भारत सरकार ने अरावली के लिए नोटिफिकेशन तो किया है, लेकिन अभी भी अवैध खदानें चल रही हैं। इन अवैध खदानों को बंद कराया जाना जरूरी है। पाटिल साहब ने कहा कि सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग सरकारें होने से कुछ सरकारें खान मालिकों को संरक्षण दे रही हैं, जिससे मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। फिर भी, खदानों को बंद कराकर दुनिया की प्राचीनतम पर्वतमाला अरावली को बचाने का प्रयास अवश्य किया जाएगा। उस समय अरावली ने अपने सिंहनाद से अपने को बचाने की एक प्रक्रिया शुरू करवाई थी। संसद सड़क दोनों स्थानों पर यह काम माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में किया गया था।
20 नवंबर 2025 को सम्माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की संपूर्ण पीठ ने जो निर्णय दिया है, उससे अरावली के आंसू दोबारा पोछनें का काम सम्मानीय उच्चतम न्यायालय ने भारत सरकार को दे दिया है। इन आंसुओं को रोकने का काम भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को करना है। हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार का जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण मंत्रालय अरावली की पुकार सुनेगा और उसके आंसू पोंछेगा।
अरावली के बारे में चारों राज्यों में अलग-अलग परिभाषाएं दी जा रही थीं। इस चिंता को देखते हुए ही उच्चतम न्यायालय ने एक समग्र पर्वतमाला की एकीकृत परिभाषा बनाने की कोशिश की है। उन्होंने प्रयास किया कि अरावली को राज्यों की सीमाओं में बंटाकर नहीं देखे। इस प्रयास से यह अच्छी बात हुई कि अरावली को एक पर्वतमाला मानकर उसके लिए एक समान परिभाषा का विचार आगे बढ़ा।
बड़े-छोटे का अंतर 100 मीटर उंचाई में खनन नहीं, नीची पहाडियों में विचार किया जा सकता है। इस गली से खनन उद्योगपति माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय को तोड़-मरोड़कर उपयोग नही कर सके इस हेतु भारत सरकार चारों राज्य सरकारें और अरावली के समाज को खड़ा होना जरूरी है। खासकर भारत का जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण मंत्रालय अपनी भूमिका उच्चतम न्यायालय के प्रकाश में लागू करायेगा।
अरावली विखंडित नहीं है। अरावली धरती मां के गर्भ से निकली एक समग्र पर्वतमाला है। मां के गर्भ से निकली इकाई एक होती है; उसे बड़ा-छोटा कहकर अलग-अलग परिभाषित नहीं किया जा सकता। एक इकाई के सभी अंगों का समान रूप से पोषण एवं व्यवहार होता है। जैसा उच्चतम न्यायालय ने कहा वैसा ही सरकार और खनन उद्योग में लगे उद्योगपति इस समझकर दुनिया की प्राचीनतम् अरावली पर्वतमाला को सभी मिलकर बचायेंगे।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।

आपके जल जंगल के लिए किए प्रयासों से सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है l
सभी को जागरूक रहना होगा l
भ्रष्ट तंत्र 200 मीटर पहाड़ी को 100 मीटर कर सकता है l
निर्देश देते रहें, अन्य लोग जागरूक होगें l
ब्राजील सम्मेलन निर्णय विश्व हित में रहेगें l