भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का उत्साह अपने चरम पर होता है, लेकिन इनके साथ आने वाला अनियंत्रित शोर अब एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हमेशा की तरह इस वर्ष भी सावन में कांवर यात्रा और मोहर्रम के जुलूस जैसे आयोजनों में धार्मिक उत्साह के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण की शिकायतें भी बढ़ी हैं, जिसने सामाजिक सौहार्द और सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ आने वाला अनियंत्रित शोर अब एक गंभीर मुद्दा बन गया है।
डिस्क जॉकी (डीजे) और लाउडस्पीकर का बेलगाम उपयोग एक बार फिर से चर्चा का विषय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में कांवर यात्रा के दौरान ध्वनि प्रदूषण की शिकायतें सामने आई हैं। लखनऊ में निवासियों ने बताया कि कांवरियों के डीजे से रात 2 बजे तक तेज शोर हुआ, जिससे घरों में परेशानी हुई। मुरादाबाद, जो संयुक्त राष्ट्र की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व का दूसरा सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाला शहर है, वहां भी कांवर यात्रा के दौरान शोर की शिकायतें बढ़ी हैं।
मोहर्रम के जुलूस में देश के कई जिलों में पथराव और जुलूस में अनावश्यक शोर-शराबे के विरोध में मारपीट और तनाव की घटनायें देखने के बाद मैं यही सब सोच रहा था कि सड़क पर शक्ति प्रदर्शन और डी.जे. बम का तांडव बंद होना चाहिए और तभी श्री सलीम भाई का यह पोस्ट देखने को मिला।उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा “बहुत लोगों को मेरी बात बुरी लग सकती है, लेकिन धार्मिक कर्म काण्ड चार दीवारी में ही होनी चाहिए।” अपने ही धर्म के मोहर्रम के मौके पर ऐसी बात कहने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए!
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दिल्ली हाई कोर्ट के 2012 के आदेश, जिसमें धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का मुंह अंदर की ओर और ऊंचाई जमीन से 8 फीट तक सीमित करने का निर्देश दिया गया था, ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पूर्ण शांति का आदेश दिया है। फिर भी, सावन में दिल्ली में भी, मोहर्रम और कांवर यात्रा के दौरान 100 डेसीबल से अधिक के डीजे की शिकायतें पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक पहुंची हैं, लेकिन कार्रवाई सीमित रही।
ध्वनि प्रदूषण (विनियमन व नियंत्रण) नियम-2000, जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत लागू हैं, कहते हैं कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित है। केवल साउंडप्रूफ सभागारों में ही इस दौरान सीमित ध्वनि की अनुमति है। दिन में भी, लाउडस्पीकर की आवाज 1 मीटर की दूरी पर 70 डेसीबल से अधिक नहीं होनी चाहिए, जो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना जाता है। फिर भी, सावन की कांवर यात्रा और मोहर्रम के जुलूसों में डीजे का उपयोग इन नियमों की खुली अवहेलना दर्शाता है।
हालाँकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस साल सावन से पहले कुछ कदम उठाए हैं। हरदोई के एसपी नीरज जादौन ने घोषणा की कि कांवर यात्रा में डीजे की ऊंचाई 10 फीट तक सीमित रहेगी। फिर भी, कई क्षेत्रों में नियमों का पालन नहीं हो रहा। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि डीजे की अनियंत्रित ध्वनि, जो कभी-कभी 120 डेसीबल तक पहुंच जाती है, न केवल इंसानों, बल्कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 70 डेसीबल से अधिक की ध्वनि लंबे समय तक सुनने से श्रवण हानि, तनाव और हृदय रोगों का खतरा बढ़ सकता है।
कानून सख्त हैं—पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत नियम तोड़ने पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या 5 साल की जेल, या दोनों हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में नागरिक 112 नंबर पर कॉल करके या यूपीकॉप (UPCOP) ऐप के जरिए ध्वनि प्रदूषण की शिकायत दर्ज कर सकते हैं। फिर भी, प्रशासन की ढिलाई और जागरूकता की कमी के कारण डीजे का दुरुपयोग रुक नहीं रहा। कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने दिल्ली में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए अभियान शुरू किए हैं, जो धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में ध्वनि को परिसर तक सीमित रखने की मांग कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर कांवर यात्रा और अन्य आयोजनों में डीजे के दुरुपयोग की आलोचना बढ़ रही है। एक यूजर ने लिखा कि डीजे ने धार्मिक आयोजनों के आध्यात्मिक महत्व को कम कर दिया है, और यह अब भक्ति कम, शोर का प्रदर्शन ज्यादा लगता है। नागरिकों का एक बड़ा वर्ग अब मांग कर रहा है कि सभी धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में डीजे पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और लाउडस्पीकर का उपयोग केवल प्रशासन की लिखित अनुमति के बाद, निर्धारित डेसीबल सीमा में हो।
यह मुद्दा न केवल कानून-व्यवस्था से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक सौहार्द, पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य का भी सवाल है। क्या दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश अब देश भर में शांति की गूंज बन पाएंगे, या यह केवल कागजों तक सीमित रहेगा? यह सवाल हर उस नागरिक के मन में है, जो शोर से मुक्ति चाहता है।
*चेतन उपाध्याय वाराणसी स्थित ‘सत्या फाउण्डेशन’ के संस्थापक सचिव हैं। इण्डियन सोसायटी एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत ‘सत्या फाउंडेशन’ द्वारा ध्वनि प्रदूषण के विविध आयामों और कानूनी रोकथाम को लेकर वर्ष 2008 से लगातार अभियान चला रहा है और हिन्दू और मुस्लिम – दोनों ही प्रमुख धर्मों के शोर के खिलाफ ढेरों मुकदमे दर्ज कराये हैं।

