वाराणसी: आज प्रबोधिनी एकादशी व तुलसी विवाह के अवसर पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य ने सविधि तुलसी पूजन किया।प्रबोधिनी एकादशी व तुलसी विवाह का सनातनधर्मियों में विशेष महत्व है।आज के दिन सनातनधर्मी गंगा स्नान,दान व व्रत अनुष्ठान करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम पत्थर के रूप में स्थित भगवान नारायण से कराया जाता है और जो मनुष्य यह करता है उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होता है।
यहाँ श्रीविद्यामठ पहुँचने पर सर्वप्रथम मातृशक्ति द्वारा सर पर धारण किये गए मंगल कलश को स्पर्श करने के बाद शंकराचार्य ने श्रीविद्यामठ के प्रांगण में स्थापित तुलसी माता का मंत्रोच्चार के साथ सविधि आरती व पूजन किया।
इसके अनन्तर भक्तों ने श्रीविद्यामठ पुष्प माला द्वारा व जयकारे द्वारा स्वागत करते हुए कहा कि आज प्रबोधनी एकादशी के दिन साक्षात सचल नारायण के दर्शन व आशीष से हमलोगों के एकादशी व्रत अनुष्ठान का अनंत गुना फल प्राप्त हो गया है।
मान्यता है कि जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से शिव का ही रूप धर कर कैलाश पर्वत पर गया परंतु पार्वती ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया और क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था। जालंधर बन भगवान वृंदा के पास गए जिसने उनके साथ पतिव्रता का व्यवहार किया, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर शिव के साथ हो रहे युद्ध में हार गया। इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया और भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर बन गये जिससे ब्रह्माण्ड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे। वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा।
अपने सतीत्व के कारण वृंदा भगवान विष्णु को लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गयीं। और भगवान ने कहा कि अब तुलसी के रूप में वह सदा उनके साथ रहेगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी संजय पांडेय के अनुसार आज प्रबोधिनी एकादशी व तुलसी विवाह के पावन अवसर पर सनातनधर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य के काशी आगमन से भक्तों में हर्ष उल्लास व्याप्त हो गया। पांडेय ने बताया कि शंकराचार्य के काशीवास के दौरान विभिन्न धर्मानुष्ठान व मांगलिक कार्यक्रम आयोजित होंगे।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो