टमेरा (पुर्तगाल): टमेरा के समर (ग्रीष्म) विश्वविद्यालय में सभी महाद्वीपों से पुरातन आदि ज्ञान तंत्र, प्रकृति से प्यार करने, समझने और प्रेरित करने वाले लोग 4 से 8 जुलाई, 2025, तक एकत्रित हुए। हम सबने जल को सबसे बड़ा तीर्थ माना है। दुनिया के सभी प्राकृतिक ज्ञान में विश्वास रखने वाले लोग पूरी दुनिया के इंसानों और जीव जगत को एक मानते हैं। भारत जिसे वसुधैव कुटुंबकम कहता है, वह वसुधैव कुटुंबकम भारतीय ज्ञान तंत्र के व्यवहार और सदाचार में समाहित है। भारतीय ज्ञानतंत्र में सभी जीवों का सम्मान है। भारत अपनी लंबी गुलामी के बाद आज उसी तरह अडिग भाव से खड़ा है। इसका मूल रास्ता है ‘सत्य और अहिंसा’ है। भारत ने अपना इतिहास खुद नहीं लिखा, यहां राज करने वालों ने लिखा है; फिर भी भारत को अपने ज्ञानतंत्र, व्यवहार, प्रकृति के सदाचार के कारण दुनिया में गुरु माना गया। इसलिए हम प्रकृति को केवल वसुधैव कुटुंबकम कहकर सम्मान नहीं करते बल्कि वह हमारे ज्ञान तंत्र में निहित है।
आज की तेज गति वाली दुनिया में सुख, समृद्धि और शांति से जीना है तो प्रकृति की गति को समझकर, इसी गति के अनुसार हमें अपनी गति बनानी पड़ेगी और वह गति केवल भारतीय ज्ञानतंत्र से ही संभव है। यह बात अलग है कि आज आधुनिक शिक्षा के कारण भारत भी अपने उस प्राकृतिक गति को भूल रहा है लेकिन भारत की आत्मा उस गति के अनुरूप ही चलती है।
परंपरागत आदिज्ञानतंत्र से कम्युनिटी टमेरा ने जल संरक्षण कार्यो के लिए यहां इकोलॉजिकल रिजूवनेशन के लिए मोनोकल्चर, यूकेलिप्टस को हटाया और जल संरचनाओं का निर्माण करके, जमीन के पेट को भरकर अपने क्षेत्र को हराभरा सुखाड़-बाढ़ मुक्त बना लिया है। अब कम्युनिटी टमेरा के पास खेती के लायक जमीन, पेयजल, बागवानी के लिए सिंचाई जल मौजूद है। अब यह कम्युनिटी सभी तरह की अनिवार्य चीजों में स्वाबलंबी बन सकती है। इस कम्युनिटी के स्वावलंबन के लिए प्रकृति के साथ यहां के आदि ज्ञान के रिश्तों को बनाने की जरूरत है। यदि यह आधुनिक तकनीक और भौतिकी से टूटेंगे नहीं तो यह जमीन पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने में सक्षम है। यहां की छोटी-छोटी स्ट्रीम पर ज्यादा जल संरचनाओं का निर्माण इसलिए किया गया है कि, यदि अतिवृष्टि हो जाती है तो नीचे तरफ जिस जगह कम्युनिटी बसी हुई है, उस पर संकट ना आए। यह प्रबंधन बहुत ही उपयुक्त है। इस कम्युनिटी को डैम 1 की अपरा बड़ा देनी चाहिए और ओवर फ्लो भी 1 मीटर तक ऊंचा करना जरूरी है क्योंकि पीछे पानी फैलने की बहुत गुंजाइश है। ऐसा करने से यह कम्युनिटी अपने आप सुखाड़ और बाढ़ मुक्त बनी रहेगी।
परंपरागत ज्ञान से हुए जल संरक्षण कार्यो पर तरुण भारत संघ ने जो अपने 50 सालों में जो काम किए हैं, उन कामों में मुख्य थे परंपरागत ज्ञान, भारतीय देशज पद्धति से प्रकृति का रक्षण-संरक्षण, नदी पुनर्जीवन और भारतीय आस्था-पर्यावरण रक्षा के संबंध। टमेरा में इन सब विषयों पर अपनी बात रखी। तरुण भारत संघ के 50 सालों के कामों के अनुभव पर लिखी हुई किताबों का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया। यह एक अद्भुत पल था, जब तरुण भारत संघ को पूरी दुनिया के लोगों से परिचित करावाया। इस में कई देशों के लोग उपस्थित थे। पेलिस्तीन से आईदा सिबली, बोलिविया में निजीकरण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली नायक, अफ्रीका के बेनिन देश के सलीम डारा आदि मौजूद रहे।
इस अवसर पर मैंने अपने पुराने अनुभवों को लोगों से सीख कर, कैसे पानी का काम किया, प्रकृति के रक्षण संरक्षण का कैसे काम किया, इसका प्रस्तुतीकरण किया। तरुण भारत संघ की अंतरराष्ट्रीय सम्मान के निर्णायक मंडल की बैठक में तरुण भारत संघ के 50 सालों पर दुनिया के 17 अंतर्राष्ट्रीय सम्मान देने की घोषणा की गई। यह सम्मान समारोह 10 जुलाई को पुर्तगाल के ओवा हाल में शाम 4 बजे शुरू हुआ।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक

