सिन्दूर कथा या धर्म का अपमान? काशी में विवाद
वाराणसी: काशी की पवित्र भूमि पर मोरारी बापू की सूतक में नौ दिवसीय ‘मानस सिन्दूर’ रामकथा ने धार्मिक परंपराओं को लेकर तीखा विवाद खड़ा कर दिया है। उनकी पत्नी नर्मदाबेन के 12 जून को निधन के महज तीन दिन बाद काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में रामकथा शुरू करने के फैसले ने सनातन धर्म के विद्वानों और समाज को दो खेमों में बांट दिया। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस कृत्य को शास्त्रविरुद्ध बताते हुए मोरारी बापू से कड़े सवाल पूछे हैं, जिससे यह मामला और गहरा गया है।
सूतक, हिंदू धर्म में मृत्यु या जन्म जैसी घटनाओं के बाद का वह समय है, जिसमें परिवार के सदस्य धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से दूर रहते हैं। यह अवधि, जो सामान्यतः दस से तेरह दिनों की होती है, शुद्धिकरण और शोक की प्रक्रिया का हिस्सा मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान मंदिर दर्शन, पूजा-पाठ या कथा जैसे धार्मिक आयोजन वर्जित हैं, क्योंकि यह आत्मा की शांति और परिवार की शुद्धता से जुड़ा होता है।
मोरारी बापू ने अपनी कथा के दौरान दावा किया कि वे निम्बार्क सम्प्रदाय के वैष्णव साधु हैं, और उनके सम्प्रदाय में मृत्यु पर सूतक का पालन नहीं होता, क्योंकि समाधि के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है। इस बयान पर शंकराचार्य ने तीखा प्रहार करते हुए पूछा कि निम्बार्क सम्प्रदाय के किस ग्रंथ में गृहस्थ व्यक्ति को सूतक से छूट का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि निम्बार्क सम्प्रदाय वैदिक परंपरा का हिस्सा है, तो यह कैसे अनैतिक कृत्य की अनुमति दे सकता है। हिंदू धर्मशास्त्रों में स्पष्ट है कि राजा, ब्रह्मचारी और यति को छोड़कर सभी के लिए सूतक का पालन अनिवार्य है। शंकराचार्य ने बापू से मांग की कि वे अपने दावे की पुष्टि के लिए शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत करें, क्योंकि बापू ने स्वयं कहा था कि उनके पास शास्त्र हैं और वे खुलासा कर सकते हैं।
विवाद तब और गहराया जब शंकराचार्य ने बापू की ‘मानस सिन्दूर’ कथा के नाम पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि मोरारी बापू की पत्नी आजीवन उनके लिए सिन्दूर लगाती रही, लेकिन उनके निधन के बाद दस दिन का सूतक न मानने वाले क्या सिन्दूर का सम्मान कर रहे हैं। यह बयान काशी के धार्मिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया का कारण बना। कई विद्वानों ने इसे सनातन परंपराओं का अपमान बताया। काशी के अस्सी क्षेत्र में कुछ लोगों ने बापू का पुतला फूंका और इसे धर्मविरुद्ध कृत्य करार दिया। अखिल भारतीय संत समिति के स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि यह कृत्य समाज में गलत संदेश देता है, जबकि काशी विद्वत परिषद के प्रो. विनय पांडेय ने इसे निंदनीय ठहराया।
मोरारी बापू ने बढ़ते विवाद के बीच रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में माफी मांगी। उन्होंने कहा कि यदि उनके कृत्य से किसी को ठेस पहुंची, तो वे क्षमा मांगते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी वैष्णव परंपरा का हवाला देते हुए कथा जारी रखने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने काशी विश्वनाथ में जलाभिषेक किया और अपनी परंपरा के अनुसार कथा शुरू की। हालांकि, उनकी माफी और कथा जारी रखने के फैसले ने विवाद को और हवा दी।
शंकराचार्य ने इस मामले को केवल एक व्यक्ति का प्रश्न नहीं माना। उन्होंने कहा कि जब कोई सामान्य व्यक्ति शास्त्रविरुद्ध आचरण करता है, तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन जब कोई प्रसिद्ध व्यक्ति ऐसा करता है, तो लोग उसका अनुकरण करने लगते हैं, जो समाज के लिए खतरनाक है। उन्होंने भगवान राम का उदाहरण देते हुए कहा कि राम का जीवन वेद और स्मृति पर आधारित था, और उनकी कथा करने वाले कैसे वेदविरुद्ध आचरण कर सकते हैं। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि यदि मंदिर का प्रबंधन धार्मिक लोगों के हाथ में होता, तो ऐसा अधर्म नहीं होता। मंदिर में दर्शन करने वालों को भी दोष लग रहा है, क्योंकि इस कृत्य के बाद मंदिर का शुद्धिकरण नहीं हुआ।
निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुयायियों पर भी शंकराचार्य ने जवाबदेही डाली। उन्होंने कहा कि बापू ने दावा किया कि उनके सम्प्रदाय में सूतक नहीं मानते, तो अब सम्प्रदाय के लोग यह स्पष्ट करें कि क्या उनके ग्रंथों में ऐसा कोई प्रावधान है। सोशल मीडिया पर यह विवाद तूल पकड़ चुका है। कुछ लोग बापू के कृत्य को ‘पाखंड’ बता रहे हैं, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि वैष्णव परंपरा में सूतक की मान्यता नहीं है।
शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि उनका मोरारी बापू से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, लेकिन शास्त्रों की अवहेलना होने पर सुधार के लिए सचेत करना उनका दायित्व है। यह विवाद काशी में धार्मिक परंपराओं और शास्त्रीय आचरण पर नई बहस को जन्म दे रहा है। क्या मोरारी बापू अपने दावों के लिए शास्त्रीय प्रमाण दे पाएंगे, या यह मामला सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच और तनाव पैदा करेगा, यह देखना बाकी है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
