बदरीनाथ धाम, चमोली: भारी बर्फ़बारी के बीच विश्व विख्यात बदरीनाथ मंदिर के पट आज से श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। प्रातः सर्वोत्तम मुहूर्त में 7:10 बजे ‘गुरुपुष्य योग’ में विधि-विधान के साथ कपाल उद्घाटन सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती अपना ने सान्निध्य प्रदान किया।इसी के साथ उत्तराखंड में चार धाम की विधिवत यात्रा भी शुरू हो गयी।
बद्रीनाथ मंदिर के अंदर स्थित आद्य भगवत्पाद शंकराचार्य के विग्रह का आज प्रातः पूजन करते ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती।
बदरीनाथ के मंदिर को १५ टन से भी अधिक फूलों से सजाया गया था और वहां बर्फ़बारी के बावजूद रात्रि से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ थी। लोग इस अवसर पर वहां जयकारे लगा रहे थे और झूम रहे थे। सेना के बैंड की गूंज के बीच हेलीकाप्टर से वहां पुष्प वर्षा भी हुई।
बहूनि सन्ति तीर्थानि दिवि भूमौ रसातले ।
बदरीसदृशं तीर्थं न भूतो न भविष्यति ।।
भारत भूमि में करोड़ों तीर्थ है , पर इन सबमें अन्यतम तीर्थ हैं बदरीनाथ धाम। आज से आगामी 7 महीनों तक मनुष्य भगवान की पूजा, दर्शन यहाँ कर पाएंगे। ज्ञात हो कि सर्दियों में भगवान बदरीविशाल की पूजा जोशी मठ में होती है।
बदरी नाथ बदरी नाथ को दूसरा बैकुंठ भी कहते हैं। इस तीर्थ के बारे में मान्यता है कि शीत काल के ६ महीनों में यहां देवता पूजा करते हैं और फिर ग्रीष्म काल के ६ महीनों में यहां मनुष्य पूजा करते हैं। देवताओं की ओर से शीतकालीन पूजा का क्रम नारद जी ने सम्पन्न किया था अब मनुष्यों की ओर से भगवान बदरीविशाल जी के मुख्यपुजारी ईश्वरप्रसाद नम्बूदरी ने आज से भगवान की पूजा शुरु की। पहले उन्होंने स्त्री वेश धारण कर मां लक्ष्मी को गर्भगृह से बाहर लाकर लक्ष्मी मंदिर में विराजित किया और फिर उद्धव और कुबेर की मूर्तियों को गर्भगृह में स्थापित किया। फिर कपाट के शुभ मुहूर्त में खुलने से पहले पूजा अर्चना के बाद गाड़ू घड़े को मंदिर के अंदर ले जाया गया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो