श्री राम जंगलवासियों को संगठित करके, शिक्षा के सबसे बडे पंडित लोभी, लालची, अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषणकारी राक्षस रावण से लड़कर, गरीब जंगलवासियों को विजयी बनाते हैं। इस दौरान राम जंगली जानवर जटायू, गिलहरी, जंगली मानव ‘वानरों’ को संगठित कर देते हैं। रावण खनन करके सोने के महल बनाता है, जबकि श्री राम का भगवान तो पंचमहाभूतों से निर्मित प्रकृति ही है। इनके विपरीत काम करने वाले को प्रकृति का शत्रु मानकर उनका वध करते हैं।
यो नो द्वेषत् पृथिवि यः पृतन्याद् भिदासान्ममनसा यो वधेन।
त नो भूमे रन्धय पूर्वकृत्वरि।। (अथर्ववेदः का. 12 सू.1, म.14)
अथर्ववेद कहता है कि हे पृथ्वी आपसे जो भी आपसे द्वेष करे, आप उसका वध कर दें। वैदिक काल में जब कोई पृथ्वी से पत्थर या स्वर्ण धातु निकालकर, अपने भोग के लिए कुछ भी करे, तब ऐसा करने वाले को आप नष्ट कर दें। जो भी पृथ्वी को मानसिक आघात पहुंचाए, मिटा दें।
श्री राम के जीवन का यही दर्शन हमारे वेदों में स्पष्ट रूप से मिलता है। श्री राम का पूरा जीवन दर्शन ऐसे ही दुष्ट राक्षसों को नष्ट करके, प्रकृति प्रेमियों को विजय प्राप्त कराने वाला है। वे सम्पूर्ण प्रकृति जल, जंगल, जमीन को मानकर अत्यंत स्नेह से सहेजते हैं तथा प्रकृति को कष्ट देने वाले रावण राक्षस को रौंधते हुए ही आगे बढ़ते हैं।
श्री राम सरल, सहज, शक्तिशाली प्रकृति (सीता) प्रेमी थे। श्री राम प्रकृति आश्रित वन मानवों सुग्रीव, हनुमान तथा गिलहरी, जटायु जैसे जंगली जानवरों को जोड़कर, उन्हें शक्तिशाली प्राकृतिक सेवक बनाते हैं। इनको शोषण, अतिक्रमण, अन्याय, अत्याचार करके दबाकर रखने वालों से संघर्ष करने की ऊर्जा का अहसास करा देते हैं। रावण एवम् उसके समर्थकों का प्रकृति से प्यार और सम्मान करने वालों के खिलाफ जब अत्याचार बढ़ता जाता है, तब श्रीराम बाली को मारकर सुग्रीव को सामने लाते हैं। ऐसे अत्याचारियों के अत्याचार को मिटाने वाले श्री राम, अपने प्रकृति प्रेमियों को भयमुक्त बनाकर, अनुशासित होकर सरलता, सहजता और सादगी का बल देते हैं। ये ही सब राम की सेना बनकर, रावणीय शोषणकारी, अत्याचारी सभ्यता को नष्ट कर देते हैं।
बिगड़ी बुद्धि को ठीक करने वाले विनम्र रामभक्त जंगलवासियों का सरल स्वभाव है, इसलिए इन्हें जप, तप और यज्ञ की जरूरत नहीं है। जटिलताओं, धोखा देने, झूठ बोलने वाले को ही पूजा पाठ, यज्ञ, तप, जप करना होता है। जो सरल हैं, कण कण में राम को भगवान मानते हैं, वह बिना पूजा पाठ के ही अन्याय के विरुद्ध खड़े होकर जीत सकते हैं।
कुटिलता, जटिलता रहित इंसान को तो जितना मिलता है, उसी में संतोष करके आनंद से जीता है। वह न दूसरों को डराता है, न लूटता है और ना ही झूठ बोलता है। ऐसे भक्त स्वर्ग से मोक्ष की मुक्ति तक, भक्ति को कुछ नहीं मानते हैं। वे लोग दूसरों के मत खंडन की भी मूर्खता नही करते, वे तो अपनी भक्ति से कुतर्कों को दूर छोड़ देते हैं और दूसरों के दुख से दुखी होकर उनकी सेवा में लग जाते हैं।
‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’
सिय राममय सब जग जानी; करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।
रामचरितमानस में विधि व ज्ञान-अर्जन के अनुकूल वातावरण था। व्यक्ति भोग विलास से दूर चिंतन – मनन में समय लगाते थे। दंभ रहित, धर्म परायण, धूर्तहीन, कृतज्ञ, उदार और परोपकारी होकर अपना काम करते रहते थे, कभी किसी को निरर्थक दंडित नहीं करते। राम अपने राजा भरत को कहते हैं कि, आपके मंत्री किसी निरपराध व्यक्ति को कभी दण्डित नहीं करे, तभी आप अच्छे राजा होंगे। रामायण अन्याय-अत्याचारों के विरुद्ध, शक्तिविहिन कमजोरों को संगठित करके, न्याय दिलाने वाले सत्य की गाथा है।
हनुमान को भयभीत डरपोक लोग स्मरण करके, भयमुक्त हो जाते हैं। आज उन्हीं के नाम से डर पैदा किया जा रहा है। जबकि हनुमान जी तो गरीबों के संकट और कष्टों को हर कर, भय दूर करके निर्भय बनाते है। अन्याय-अत्याचार के शिकार इंसान भी हनुमान से शक्ति पाकर, दृढ़निश्चय से लड़ते और जीत जाते हैं।
आज श्री राम की सेना और सच्चे भक्त वही हैं, जो अन्यायी, अत्याचारी झूठ बोलने, डराने और धोखा देने वाले राक्षसों से लड़कर, प्रकृति की रक्षा के काम में लगे हैं। इनका स्वयं का जीवन भी प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण के खिलाफ जूझ रह है, ऐसे ही लोग राम भक्त, राम के सच्चे सिपाही हैं।
मुझे श्री राम जी का प्रसाद 1985 में मिल गया था। उन्हीं के आशीर्वाद से प्रकृति के पोषण का काम करने लगा था। शोषण, प्रदूषण, अतिक्रमण करने वाले दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात पूरी अरावली में 28 हजार, मार्बल, डोलामाइट, सेंड स्टोन, लाइम स्टोन, कॉपर आदि खदानों को बंद करा के, आज जिंदा हूँ। राम कृपा के बिना जिंदा रहना संभव नहीं था। श्रीराम की कृपा उन सभी पर रहती है, जो राम के जीवन से सीख कर, उनके जीवन में किए हुए कामों को करते हैं। मैं, अपने आपको श्री राम का सेवक और सिपाही मानता हूँ। हमारे जैसे सभी लोग श्री राम के सच्चे सिपाही हैं, जो आज भी प्रदूषण, शोषण करने वालों से संघर्ष करके जंगल, जंगली जानवरों, जंगलवासियों को बचाने में जुटे हैं और प्रदूषण, शोषण, अतिक्रमण के विरूद्ध संघर्षरत हैं।
आज लोकतंत्र में जो भी बिना डराये, दबे शोषितों व दलितों को न्याय दिलाने का काम करेगा, वही सच्चा राम भक्त होगा। जो झूठ बोलकर, धोखा देकर निर्दोष को दंडित करेगा, वह रावण की श्रेणी में आयेगा। राम अपने भाई भरत को भी स्पष्ट अच्छे राज्य की नीति बताते हुए बोलते हैं कि, आपके मंत्री न्यायालय में यदि निर्दोष को दंडित करते हैं, तो आप अच्छे राजा नहीं हो सकते हैं। अच्छे राजा की न्याय व्यवस्था में निर्दोष दंडित नहीं होता, उसे न्याय मिलता है। न्याय तो सभी के लिए समता का व्यवहार करता है।
हमारे वे सभी साथी सच्चे राम भक्त हैं जो डरे हुए, दबे हुए गरीब, शोषित होकर भी आज के प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्षरत रहकर, अनुशासित, निर्भय, जीवन जीने के लिए प्राकृतिक पोषण करते हैं। यही भारतीय लोकतंत्र के रक्षक संविधान के सिद्धांतों की सच्ची पालना है। श्री राम ने भीलनी के जूठे बेर खाकर, सुग्रीव-हनुमान को प्यार और संस्कार देकर, समता सिखायी है। आओ लोकतंत्र के सच्चे नेताओं को हम प्यार, सम्मान, विश्वास देकर, श्री राम की भक्ति से मोक्ष्, मुक्ति की चिंता किए बिना सहजता, सादगी, समता से श्रीराम की तर्ज़ पर प्रकृति रक्षण हेतु संघर्षरत हो।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ