भारतीय विद्या व संस्कृति को शिक्षा से ध्वस्त करने का काम थॉमस बैबिंगटन मैकाले ने किया था। भारत में 1850 में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे। हर गांव में एक गुरुकुल होता था। यह गुरुकुल हमारे ज्ञानतंत्र को प्रकृति और मानवता के बीच में गहरा संबंध बनाने वाली विद्या प्रदान करते थे।
मैकाले ने विद्या को ध्वस्त करना तय कर लिया था क्यों कि वह जानता था कि इनके गुरुकुल से दो जाने वाली विद्या इन्हे सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक गुलाम नहीं बनने देगी। इसलिए इनकी विद्या को नष्ट करके अंग्रेजियत वाली शिक्षा यहां लानी ही पड़ेगी। अंग्रेज इन्हे गुलाम नहीं बनाएंगे, इन्हें अंग्रेजियत ही गुलाम बनाएगी। इसलिए वो भारतीय विद्या को प्रदान करने वाले गुरु को नष्ट करके, ग़ुलाम बनाने वाली शिक्षा को लेकर आया।
वह यह भी जानता था कि भारत की संस्कृति, आत्मविश्वास, आत्म गौरव, स्वाभिमान अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा ही ध्वस्त हो सकती है। इस अंग्रेजियत दिमाग के अंग्रेज ने भारत में गुरुकुलों को नष्ट करके नई शिक्षा पद्धति हम सब सभी पर लाद दी थी। शिक्षा पद्धति ने हमारे सारे गुरुकूलों को ध्वस्त किया। यह गुरुकुल स्वावलंबी थे, इनको कोई राजा नहीं चलाता था बल्कि यह सामुदायिक स्वावलंबी और विकेंद्रित विद्या व्यवस्था थी।
इस विद्या व्यवस्था का अंग्रेज अधिकारी लूथर और थॉमस ने सर्वेक्षण किया। लूथर ने सर्वे किया तो उत्तर भारत में 97% ऐसे लोग थे, जो अपने वैदिक ज्ञानग्रंथों को सुनकर – पढ़कर समझ सकते थे। मुनरो ने दक्षिण का सर्वेक्षण किया , तो उसने लिखा कि, वहां सभी लोग पढ़ सकते थे और पढ़ कर भारतीय शास्त्रों को समझ सकते थे।
आज ऐसा लगता है कि, मुनरो और लूथर दोनों ने जो सर्वेक्षण करके लिखा है, वह भारतीय ज्ञानतंत्र और विद्या में बड़ा विश्वास पैदा करता है। लेकिन मैकाले ने बहुत ही होशियारी से गुरुकुल की विद्या को नष्ट करने वाली शिक्षा को बहुत ही पूर्व तैयारी के बाद लेकर लाए। ऐसी शिक्षा के प्रति लोगों के मन में उन्होंने वातावरण बनाया। जब यह वातावरण बन गया तो भारत के गुरुकुल को गैर कानूनी घोषित कर दिया।
समाज तो वैसा ही होता है जैसा राजा! जब राजा ने गुरुकुल को समाप्त किया तो प्रजा का विश्वास हट गया। गुरुकुलों में संस्कृत को भी गैर कानूनी घोषित कर दिया और गुरुकुल को घूम घूम कर ध्वस्त कर दिया। बहुत सारे गुरुकुलों और पुस्तकालयों में आग लगा दी। गुरुओं को बुरी तरह से सताया और जेल भेजा। उनके स्थान पर नए अंग्रेजियत के शिक्षकों को बढ़ा वेतन एवं सम्मान देना शुरू किया।
गुरुकुल की जगह पर कोलकाता का सबसे पहले कान्वेंट स्कूल खोला गया। उस समय उसे फ्री शिक्षा कहते थे। इस अंग्रेजियत शिक्षा को पाने वाले जल्दी नौकरी, पद प्रतिष्ठा व अधिकार पा जाते थे। इसी कानून के तहत भारत में कोलकाता विश्वविद्यालय बना, उसके बाद मुंबई और मद्रास विश्वविद्यालय बने। यह तीनों ही भारत को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक नई राजनीतिक गुलामी के रास्ता पर चलाने वाले विश्वविद्यालय थे। इन्हीं के कारण नई गुलामी जिसे हम आजादी कहते हैं वह तेज हुई।
भारतीय ज्ञानतंत्र भारतीयों के अनुभव की अनुभूति सृजित विद्या जो मन, आत्मा, हाथ के कर्म योग से एहसास करने का आभास सिखाती थी। उस विद्या को अंग्रेजी शिक्षा के स्कूलों, कॉलेज विश्वविद्यालय ने समाप्त कर दिया।
आज पूरे भारत में कहीं भी विद्या का दर्शन नहीं हो रहा है, चारों तरफ अंग्रेजों द्वारा प्रसारित शिक्षा ही है। शिक्षा शिक्षक बनाती है, जो खुद भी कमाते हैं और विद्यार्थियों को भी कमाना ही सिखाते हैं। विद्या गुरु बनाती है, गुरु कमाई के लिए नहीं जन्मते हैं। गुरु तो अपने व्यवहार और सदाचार से नए सृजन करते हैं। गुरुओं का सृजन था विद्या। उस विद्या में भारतीयों का आनंद, गौरव, स्वाभिमान और सम्मान सब कुछ था, जो अब नही बचा है।
विश्व गुरु बनाने वाले भी अब प्रदूषित मस्तिष्क के हो चुके हैं। इसलिए विश्वगुरु बनने के सपने और कल्पनाएं भी प्रदूषित हो गई है, इससे हम कभी विश्वगुरु नहीं बन सकते।
विश्वगुरु बनने के लिए सबसे पहले हमें लालची शिक्षा से मुक्ति पानी होगी। इसके लिए जैसे अंग्रेजो ने विद्या को समाप्त किया था, वैसे ही अंग्रेजों द्वारा प्रसारित इस शिक्षा को समाप्त करना होगा। जब शिक्षा समाप्त होगी, तब विश्व गुरु बनाने वाली विद्या आरंभ होगी।
विद्या जीवन साध्य हेतु साधना, साधन शुद्धि और समर्पण के कर्म योग से सिद्धि दिलाती है। त्याग, तपस्या, श्रम निष्ठा से उत्पादन करने वाली मानव जाति जब नया सृजन करके भारत का प्राकृतिक प्यार, सम्मान, विश्वास, श्रद्धा व इष्ट मानकर काम करने लगे तभी वह पद प्रतिष्ठा का हकदार होता है। भारतीय विद्या में जिम्मेदारी को पूर्ण रूप से निभाने वाले और जीवन की जिम्मेदारी पूरी करने वाले को ही हकदारी दी जाती है। साध्य को अपनी विद्या से सिद्धि प्राप्त करने वाले को ही पद प्रतिष्ठा मिलती थी, यही हमारी भारतीय विद्या थी, इस विद्या को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजियत शिक्षा को मिटाना होगा, तभी हम दोबारा दुनिया के गुरु बन सकते है।विश्व गुरु बनने हेतु शिक्षा का स्थान विद्या को देना ही होगा।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।