कपाट-मंगलम पर शंकराचार्य ने किए दर्शन और पूजन
अगले छह माह पूजा ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर में
बदरीनाथ धाम: उत्तराखण्ड के ऊँचे हिमालयी क्षेत्र में स्थित बदरीनाथ धाम में आज वर्ष 2025 की ग्रीष्मकालीन यात्रा औपचारिक रूप से पूर्ण हो गई। अलकनंदा के तट पर बसे इस विश्वविख्यात तीर्थ में दोपहर 2:56 बजे मुख्य मंदिर के कपाट परम्परागत विधान से बंद किए गए। यह क्षण स्थानीय जनजीवन के लिए केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मौसम के बदलते अध्यायों के साथ जुड़ा एक दीर्घकालीन अनुभव है, जिसे पहाड़ पीढ़ियों से निभाता आया है।
कपाट-समापन की तैयारियाँ कई दिन पहले से ही आरंभ हो जाती हैं, और इस बार भी मंदिर परिसर में क्रमबद्ध अनुष्ठानों की चार-दिवसीय श्रृंखला सम्पन्न की गई। 21 नवम्बर से प्रारम्भ हुए विधान क्रम में गणेश पूजा, सहायक मंदिरों के कपाट बंद होने और अंतिम शैय्या-पूजा के बाद आज अंतिम संस्कारिक प्रक्रिया सम्पन्न हुई। समारोह के दौरान परिसर को लगभग 12 क्विंटल पुष्पों से सजाया गया, जिनकी सुगंध वातावरण में गंभीरता और गरिमा के साथ घुलती रही। गढ़वाल स्काउट्स बैंड द्वारा प्रस्तुत भक्ति-धुनें पर्वतों की प्रतिध्वनि के साथ गूँजती रहीं — यह आयोजन की औपचारिकता नहीं, बल्कि परम्परा के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति थी।

जैसा कि वर्षों से चलता आया है, आज भी कपाट बंद होने से पूर्व उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य बदरीनाथ धाम पहुंचे और भगवान बदरीविशाल के दर्शन-पूजन में सम्मिलित हुए। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती के दर्शन के लिए देश के विभिन्न भागों से आए भक्तों की उत्सुकता स्पष्ट थी। सभाओं और औपचारिकताओं से दूर, श्रद्धालु अपने मन के भावों के साथ पंक्तिबद्ध खड़े रहे — कपाट बंद होने से पहले एक बार और नज़दीक से दर्शन मिल जाएँ, बस यही एक प्रार्थना।
कपाट बंद होना किसी यात्रा के रुकने का संकेत नहीं, बल्कि यथासमय पूजा-पद्धति के स्थानांतरण का समय है। परम्परा के अनुसार कपाट बंद होने के साथ ही आज से भगवान की पूजा देवऋषि नारद जी के नाम से मानी जाएगी। कल शुभ मुहूर्त में भगवान बदरीविशाल की डोली पाण्डुकेश्वर ले जाई जाएगी, जहाँ रात्रि-विश्राम के बाद मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी से ज्योतिर्मठ स्थित नृसिंह मंदिर में शीतकालीन पूजा आधिकारिक रूप से प्रारम्भ होगी। वहां पूरे शीतकाल वही विधि-विधान और श्रद्धा के साथ पूजा चलेगी, मानो बदरीनाथ धाम सर्दियों के लिए थमा नहीं बल्कि स्थानांतरित हो गया हो।
कपाट-समापन समारोह में बदरीनाथ–केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी भी उपस्थित रहे। उन्होंने शंकराचार्य से मिलकर आगामी शीतकालीन चारधाम यात्रा की दिशा और व्यवस्था से संबंधित मार्गदर्शन प्राप्त किया। साथ ही स्वामी प्रत्यक्चैतन्य मुकुन्दानन्द गिरि, समिति के मुख्य कार्याधिकारी विजय थपलियाल, केन्द्रीय धार्मिक डिमरी पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी सहित कई संत-महात्मा एवं स्थानीय गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। पर्वतीय समाज में ऐसे अवसर केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समुदाय को आपस में जोड़ने वाली अनुभूति भी होते हैं।
इस यात्रा वर्ष के समापन के साथ आँकड़े भी उल्लेखनीय रहे — बदरीनाथ धाम में इस वर्ष 16.5 लाख से अधिक तीर्थयात्री पहुँचे। हिमालय के कठिन भूगोल और सीमित यात्रा अवधि के बावजूद यह संख्या श्रद्धा की निरंतरता को दर्शाती है। स्थानीय व्यापारियों, होटल व्यवसायियों और सेवा प्रदाताओं के लिए यह अवधि जीवनयापन का प्रमुख आधार है, और अब शीतकाल के छह महीनों में धाम शांत और हिमाच्छादित रहेगा।
शाम होते-होते स्टेशन रोड और बाज़ारों में भीड़ कम होने लगी, पर किसी उदासी के साथ नहीं। इन पहाड़ों में कपाट-समापन को विदाई की तरह नहीं देखा जाता — यह चक्र हर वर्ष पुनः आरम्भ होता है। श्रद्धालु लौटते समय यही विश्वास मन में संजोए रहते हैं कि वसंत की ताप-रश्मियाँ आते ही जब कपाट पुनः खुलेंगे, बदरीविशाल के प्रथम दर्शन के लिए वे फिर लौटेंगे। तीर्थ, ऋतु और आस्था — तीनों यहाँ मिलकर एक लय बनाते हैं, जो कैलेंडर बदलने के बाद भी नहीं टूटती।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
