बिहार चुनाव से पहले गौभक्तों का आह्वान
सुपौल/फारबिसगंज: ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बिहार में जारी गौमाता संकल्प यात्रा के दौरान सुपौल में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि गोत्र ही हिंदुओं की मूल पहचान है, जिसे लोग धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। उन्होंने सनातन धर्म के अनुयायियों से अपील की कि अपने गोत्र और उसके महत्व को हमेशा याद रखना हर व्यक्ति का प्रमुख दायित्व है। यह यात्रा गौमाता की रक्षा और उसे राष्ट्रमाता घोषित करने के उद्देश्य से चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी धार्मिक आंदोलन का हिस्सा है, जो बिहार विधानसभा चुनावों के नजदीक आते हुए धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों को राजनीतिक बहस में प्रमुखता दे रही है, जहां गौरक्षा जैसे विषय मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण का माध्यम बन सकते हैं।
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सोमवार को सुपौल पहुंचे, जहां बड़ी संख्या में गौभक्त और स्थानीय निवासी उनके प्रवास स्थल पर एकत्र हुए। उन्होंने शंकराचार्य को पालकी में बिठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया। वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने गौमाता के महत्व पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि गौमाता ३३ करोड़ देवी-देवताओं की निवास स्थली है, और इसका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि जीवन में गुरु और ईश्वर का स्थान कितना ऊंचा है, लेकिन घर में भोजन बनाते समय पहली रोटी गौमाता के लिए निकाली जाती है। उन्होंने आगे कहा कि गौमाता की रक्षा के लिए भगवान नारायण हर युग में अवतार लेते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि गोविंद की इस भारत भूमि पर अब किसी भी हालत में गौमाता का रक्त नहीं बहने दिया जाएगा।
शंकराचार्य ने पिछले ७८ वर्षों के राजनीतिक अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि लोग नेताओं पर भरोसा करके बैठे रहे, लेकिन नेता गौहत्या को रोकने के बजाय अपने निजी स्वार्थों के कारण इसे बढ़ावा देते रहे हैं। अब समय आ गया है कि गौमाता की प्राण रक्षा के लिए मतदान किया जाए, ताकि गौहत्या के पाप से बचा जा सके। सभा में मौजूद गौभक्तों से उन्होंने दाहिना हाथ उठाकर गौमाता की रक्षा के लिए मतदान करने का संकल्प दिलवाया। यह संकल्प बिहार चुनावों के संदर्भ में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि राज्य में गौरक्षा और धार्मिक पहचान जैसे मुद्दे अक्सर चुनावी अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, और विभिन्न राजनीतिक दल इन पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हैं।
सभा के बाद शंकराचार्य फारबिसगंज की ओर रवाना हुए। रास्ते में कई स्थानों पर भक्तों ने पुष्प वर्षा की और जयकारों के साथ उनका स्वागत किया। कुछ जगहों पर लोगों ने शंकराचार्य के चरण पादुका की पूजा की और खुद को धन्य माना। वे सोमवार रात फारबिसगंज में ही विश्राम करेंगे। यह यात्रा बिहार के विभिन्न जिलों में जारी है, जो चुनावी माहौल में धार्मिक भावनाओं को उभारते हुए मतदाताओं को प्रभावित करने की क्षमता रखती है, हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनाव पूर्व की रणनीति के रूप में भी देखते हैं।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो


