
– स्वामीश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती*
प्रयागराज: भारतीय गणना के अनुसार हमारा पिछला बारहवाँ कुम्भ १८८३ ई. में सम्पन्न हुआ था, क्योंकि हमारी गणना में बृहस्पति के अतिचारी होने पर कुम्भ कभी ११ या १३ वर्ष बाद भी हुआ है। परन्तु भारतीय तिथियों अमावस्या माघ महीने में मनाए जाने वाले कुम्भ पर्व के साथ हमारा संवत्सर २०८१ विक्रम नहीं, अपितु २०२५ ई. जोड़ लिया है और प्रचार कर रहे हैं। तब १२ कुम्भ पीछे जाने के लिए १४४ वर्ष पीछे जाकर १८८१ के कुम्भ को जोड़ रहे हैं।
A journalist friend who covered the 2001 Kumbh for PTI told me he reported then that Mahakumbh 2001 occurred after 144 years. AI suggests 2013. Can anyone throw light on which #Mahakumbh actually happened after 144 years?
I pose this qn before #Shankaracharyas. Hope they reply. pic.twitter.com/h4jCp0Ucvq— Deepak Parvatiyar (@dparvatiyar) January 31, 2025
हमने अङ्ग्रेज़ी तारीखों को अपने व्रत-पर्वादि में भी सम्मिलित कर उनकी सटीकता को प्रभावित कर लिया है। अतः अपनी तिथियों से ही हमें वस्तुस्थिति को पकड़कर रखने में सफलता मिल सकती है। इसके विरुद्ध साङ्कर्य से तथ्यगत हानि होती है। यह स्पष्ट है।
यही परिस्थिति भाषा, भाव, भूषा आदि में भी परिलक्षित है। भाषा-भूषा-भावादि में शुद्धता/पवित्रता अथवा परिष्कार से हमारे जीवन को ऊर्जा प्राप्त होती है, मन को शान्ति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, स्वास्थ्य सुधर जाता है और हमारे सामाजिक सम्बन्धों में घनत्व आता है। इसके विपरीत इनमें साङ्कर्य होने से तन-मन और वातावरण पर दुष्प्रभाव आता है और यदि वह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता चला जाए तो हमें पूरी तरह हमारी पहचान से दूर कर देता है।
परमधर्मसंसद् 1008 इस धर्मादेश द्वारा समस्त हिन्दुओं को निर्देश प्रदान करती है कि वे अपने भाषा-भूषा-भावादि की शुद्धता-पवित्रता बनाए रखने के लिए अपनी तिथियों, अपने नामों, अपनी भाषा और भूषा आदि के प्रयोग का आग्रह आरम्भ करें।
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भारत का नाम केवल भारत स्वीकार करें। उसका अनुवाद भारत ही हो। भारत की तिथि विक्रम संवत् अथवा शक् संवत्सर की गणना से ही हो। जन्मदिन मनाएं, बर्थडे नहीं। अपनी वेशभूषा धोती-दुपट्टा अपनायें। नव संवत्सर मनाएं, न्यू ईयर नहीं। भारतीय पर्व भारत की तिथियों से मनाए जाने जैसे उपक्रमों का आग्रह आरम्भ करें ताकि भारत और भारतीय संस्कृति साङ्कर्य दोषरूपी बादलों से निकलकर स्वच्छ आभा के साथ आकाशमण्डल में देदीप्यमान हो सके।
*उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य