गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर
वाराणसी: ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ने बिना नाम लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं, पर निशाना साधते हुए कहा, “जब सब लोग अधिग्रहण के लिए तत्पर हैं, तो गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर भी सरकार अधिग्रहित कर ले। यदि ऐसा हो जाए, तो कैसा लगेगा?” काशी में मनुस्मृति पर व्याख्यान दे रहे शंकराचार्य ने यह बात वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर के सरकारी अधिग्रहण के विरोध में कही।
शंकराचार्य ने बांके बिहारी मंदिर के अधिग्रहण का कड़ा प्रतिकार करते हुए कहा कि धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा धर्मस्थानों का अधिग्रहण अनुचित है और हिन्दुस्तान धर्मनिरपेक्ष हो गया है, लेकिन कम से कम मंदिर तो धार्मिक बना रहे, साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि गोरखनाथ मंदिर का अधिग्रहण हो जाए तो कैसा लगेगा? उन्होंने कहा कि बांके बिहारी मंदिर को ट्रस्ट बनाकर गोस्वामियों और महंतों को अलग करने की कोशिश हो रही है, तो गोरखनाथ मंदिर को भी ट्रस्ट बनाकर सरकारी नियंत्रण में लिया जाए और उसे जनता की सुविधा के लिए सार्वजनिक स्थान बनाया जाए। उन्होंने सभी से इस पर विचार करने को कहा।
शंकराचार्य ने वृन्दावन के धर्माचार्यों से बांके बिहारी मंदिर को सरकारी नियंत्रण में जाने से रोकने का आह्वान किया। वीडियो संदेश में उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के धर्माचार्य मंदिरों को सरकारी अधिग्रहण से मुक्त करने की मुहिम चला रहे हैं। इस मुहिम को देवकीनंदन ठाकुर सबसे अधिक आगे बढ़ा रहे हैं। सनातन धर्म बोर्ड बनाकर धर्माचार्यों द्वारा संचालन की मांग हो रही है। लेकिन वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर, जो गोस्वामियों और पुजारियों की परंपरा से चलता है, उसे सरकार दिन-दहाड़े ट्रस्ट बनाकर अधिग्रहित कर रही है। कोई कुछ नहीं बोल रहा। उन्होंने सवाल किया कि सरकारी अधिकारी मंदिर संचालित करेंगे, तो धर्म की स्थिति क्या होगी?
स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष सरकार को सनातन मंदिरों को अधिग्रहित करने का अधिकार नहीं है। बांके बिहारी मंदिर की परंपरा का पोषण करना चाहिए। यदि कोई कमी या गड़बड़ी है, तो उसे सुधारना चाहिए, न कि गड़बड़ी के नाम पर मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्मस्थान और धर्मनिरपेक्ष स्थान में अंतर है। हिन्दुस्तान धर्मनिरपेक्ष बनने के बाद धर्मनिरपेक्ष स्थान बन गया, लेकिन धर्मस्थानों को धर्मस्थान रहने देना चाहिए।
शंकराचार्य ने 1982 में काशी विश्वनाथ मंदिर के अधिग्रहण का उल्लेख किया, जब चोरी के नाम पर सरकार ने नियंत्रण लिया, लेकिन चोरी सुप्रीम कोर्ट में साबित नहीं हुई। अधिग्रहण के बाद वहां कई चोरियां हुईं, पर कोई मुद्दा नहीं उठा, क्योंकि मंदिर सरकारी नियंत्रण में है।
स्वामिश्री: के बयान ने काशी और वृन्दावन में सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच चर्चा छेड़ दी है। कई भक्तों ने उनके आह्वान का समर्थन करते हुए कहा कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना समय की मांग है। वृन्दावन में गोस्वामी समाज ने इस मुद्दे पर बैठक बुलाने की योजना बनाई है, ताकि बांके बिहारी मंदिर की परंपरा को संरक्षित रखने के लिए कदम उठाए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन धर्म की परंपराओं को जीवित रखने के लिए समाज को एकजुट होना होगा। मंदिरों का प्रबंधन धर्माचार्यों और पारंपरिक सेवायतों के हाथों में रहना चाहिए, न कि सरकारी अधिकारियों के। उन्होंने भक्तों से अपील की कि वे इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाएं और धर्मस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा के लिए आगे आएं।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
