भागलपुर में आज ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
– स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती*
भारत मे सनातनी राजनैतिक विचारधारा होना नितांत आवश्यक
भागलपुर: भागलपुर में गौमतदाता संकल्प सभा में आज एक धर्मादेश गूंजा, जिसमें बिहार सरकार को अविलंब गोचर भूमि मुक्त करने का आदेश दिया गया। गौशालाओं के भूमि अधिग्रहण का मुद्दा केवल कानूनी औपचारिकता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का प्रश्न है।
भागलपुर में गौमतदाता संकल्प सभा का केन्द्रबिंदु ना केवल आस्था बल्कि व्यवस्था की वास्तविक विडंबना भी था। सभा में उपस्थित संतवाणी ने सरकार को सीधा निर्देश दिया—“गोचर भूमि को तुरंत मुक्त कराओ।”
बिहार में गौशालाओं की दुर्दशा का मूल कारण भू-हदबंदी कानून है, जिसने गौभक्तों की श्रद्धा से दान की गई हजारों बीघा जमीन छीन ली। श्रीगौशाला भागलपुर की स्थापना प्रबुद्ध गौभक्तों ने की थी, जहाँ वर्षों से गायों का संरक्षण, संवर्धन और संपोषण होता रहा। गौभक्तों ने हजार बीघा से अधिक जमीन दान दी थी, लेकिन आपातकाल की आँधी में तत्कालीन सरकार ने भागलपुर गोशाला की 200 बीघा से अधिक जमीन अधिग्रहित कर ली। यह त्रासदी पूरे बिहार की अन्य गौशालाओं के साथ दोहराई गई। लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में, जो स्वयं को यदुवंशी और गौभक्त बताते थे, बची-खुची गोचर भूमि भी छीन ली गई।
यह सरकार द्वारा गौशाला हेतु दी गई कोई सरकारी भूमि नही थी जिसे सरकार ने वापस ले लिया।यह सनातनधर्मी गौभक्तों द्वारा मेहनत से अर्जित भूमि श्रद्धा से गौसेवा हेतु दान दी गई थी।और दान में दी गई भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार सरकार को भी नही है।अधिग्रहित जमीन आज भी वितरित नहीं हुई। वोट की राजनीति का स्वार्थ इस पुण्य कार्य में बाधा बना हुआ है।
श्रीगौशाला भागलपुर एवं बिहार की अन्य गौशालाएं अपनी गायों के संवर्धन व संपोषण हेतु अपनी जमीन वापस लेने हेतु संघर्षरत हैं। अगर सरकार चाहे तो एक कानून बनाकर उपरोक्त अधिग्रहण की गई समस्त जमीन को सम्बंधित गौशालाओं को वापस कर सकती है।पर वोट की राजनीति के स्वार्थ के कारण सरकार द्वारा अभी तक ऐसा निर्णय नही लिया जा सका है।और जिन गौशालाओं के पास थोड़ी बहुत जमीन बची है उसपर भी बाहुबलियों व असामाजिक तत्वों ने कब्जा कर लिया है।
बिहार की सभी गौशालाएँ सरकारी नियंत्रण में हैं, जहाँ अनुमंडल पदाधिकारी अध्यक्ष होते हैं। फिर भी इच्छाशक्ति की कमी ने न अधिग्रहित भूमि लौटाई, न अतिक्रमण हटाया। इक्षाशक्ति के अभाव में न तो अधिग्रहण की गई भूमि को वापस लिया जा सका है और न ही अतिक्रमित भूमि पर गौशालाओं को कब्जा दिलाने हेतु सरकार कोई ठोस कदम उठा रही है। संसाधनों और धनाभाव में अधिकतर गौशालाएँ बंद हो चुकी हैं, बाकी बंद होने की कगार पर खड़ी हैं। गौशालाओं का उद्देश्य वृद्ध, अशक्त, असहाय और दूध न देने वाली गौमाता की सेवा और कसाइयों से उनकी रक्षा है। यह पवित्र कार्य बिना आय स्रोत के असंभव है, और सरकार ने इस स्रोत को ही अवरुद्ध कर रखा है।
इस संकट की जड़ गौमाता के प्रति सामूहिक उदासीनता में है, जो सनातनियों को अपने धर्म के मूल से दूर कर रही है। गौमाता की रक्षा और उन्हें राष्ट्रमाता घोषित करना सनातन धर्म का प्राण है, जिसके बिना हमारी संस्कृति की आत्मा अधूरी है।
कटिहार में भी कल गौमतदाता संकल्प सभा में गौभक्तों ने पुष्पवर्षा और जयकारों से आकाश गुँजाया। रास्ते में सनातनी जनमानस स्वतःप्रेरित होकर सड़कों पर उमड़ पड़ा, मानो गौमाता की पुकार ने उनके हृदय को झकझोर दिया हो। गौमाता की रक्षा सर्वोपरि मुद्दा है, जिसे हर सनातनी को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना होगा।
गौमाता के संरक्षण का प्रश्न किसी एक क्षेत्र या वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे समाज की करुणा और आस्था का प्रतिनिधि है। जब इस विषय पर राजनीतिक दलों की चुप्पी गहरी होती है, तब धार्मिक नेतृत्व आगे बढ़कर अपने समुदाय को स्वयं संगठित करने का आह्वान करता है। सभी राजनीतिक दलों से मांग की गई, लेकिन कोई आगे नहीं आया इसलिए सनातनी मतदाताओं को गौमतदाता बनाकर गौभक्त प्रत्याशी को मतदान का संकल्प दिलाया जा रहा है। हर विधानसभा से गौभक्त प्रत्याशी खड़े किए जा रहे हैं, ताकि गौमाता के प्राणों की रक्षा के लिए वोट की ताकत जुटाई जाए।
कटिहार की सभा में यह संदेश बार-बार दुहराया गया कि अब चुनाव केवल संख्या का खेल नहीं रहना चाहिए, बल्कि मूल्यों का चुनाव होना चाहिए। कटिहार में सभा के अंत में एक ही आह्वान ने सभी को संकल्पबद्ध कर दिया—“आपका वोट आपका अस्त्र है। सत्ता किसी दल या नेता की नहीं, बल्कि उस भावना की होनी चाहिए जो गौमाता की रक्षा को राष्ट्रधर्म मानती है। गौहत्यारा हमारा भाई नहीं, बल्कि शत्रु है। सनातनी समाज अब अपनी आस्था और शक्ति का प्रयोग लोकतांत्रिक ढंग से करेगा।”
भारत में 100 करोड़ से अधिक हिन्दू हैं, उनकी भावना को स्वर देने का समय आ गया है। कैसा हिन्दू राजा जो गौहत्या करवाए? अनियंत्रित अधर्म की राजनीति को सनातनी मूल्यों के आधार पर नियंत्रित करना होगा। राजा जब भटक जाए, तो धर्मगुरु का दायित्व है उसे सद्मार्ग पर लाना। कोई भी दल, भारतीय जनता पार्टी सहित , हिन्दू पार्टी नहीं है, सनातनी जनता इस भ्रम में न रहे। हिन्दू के वोट से बनी सरकार यदि गाय को बोटी-बोटी काटकर डालर कमा रही है, तो यह सनातनियों की कमजोरी है।
नेता धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचते हैं, कहते हैं कि कई पंथ और मजहब हैं, इसलिए गौरक्षा कैसे करें? लोकतंत्र में बहुमत से सत्ता दी जाती है, फिर सनातनी बहुमत की आवाज क्यों दबाई जाती है? बहुसंख्यक समाज गौहत्या के खिलाफ है, लोकतंत्र की मूल भावना का संरक्षण सबका दायित्व है। हमारा कोई राजनैतिक एजेंडा नही है गौमाता के प्राणों की रक्षा हमारा एकमात्र उद्देश्य है, जो पार्टी इसके निमित्त सामने आएगी हम उसका साथ देंगे।
सबका साथ और विश्वास के चक्कर में गौहत्यारों और गौभक्तों को एक साथ लेने की कोशिश हो रही है, लेकिन गौहत्यारा भाई नहीं, शत्रु है। सनातनी, गौमाता हेतु वोट करने का दृढ़ संकल्प लें। लोकतंत्र में अराजकता से नहीं, वोट की ताकत से अपनी बात मनवाई जा सकती है। भारत में सनातनी राजनीतिक विचारधारा की आवश्यकता अब अनिवार्य हो गई है। सनातन धर्म की नींव गौमाता की रक्षा पर टिकी है, और यह संदेश बिहार के अन्य स्थानों जैसे फारबिसगंज, किशनगंज और पूर्णिया में भी गूंजा।
वेदों में गाय को अवध्या कहा गया, जिसे मारना महापाप है। पुराणों में कथाएँ हैं, जहाँ भगवान इंद्र ने गायों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा। तुलसीदास जी के शब्दों में, “संग भूमि बेचारी गो तन धारी,” गौमाता धरती माता का चल रूप हैं। सात लोकों के आधार पर धरती टिकी है, और गौमाता उसका पहला आधार हैं। पंचमहायज्ञ—देवयज्ञ, नृयज्ञ, भूतयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ और बलि वैश्वदेव—से अनिवार्य हिंसा का प्रायश्चित और गौरक्षा की प्रतिज्ञा ली जाती है।
आज डालर के लालच में यह सब भुला दिया गया। पुराणों में राजा दिलीप की कथा प्रेरित करती है, जिन्होंने गाय की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने का संकल्प लिया। छत्तीसगढ़ के गौभक्त वीर आदेश सोनी ने गौमाता के लिए अपनी अंगुली का बलिदान दिया, जिसकी भक्ति हर सनातनी के हृदय को प्रज्वलित करती है। फारबिसगंज में रोटी बैंक का उद्घाटन हुआ, जहाँ हिन्दू घरों से रोटियाँ एकत्र कर गौमाता को समर्पित की जाती हैं, जैसे पुराणों में गाय को माता मानकर सेवा की कथाएँ हैं।
सनातनी समाज में कोई भेदभाव नहीं; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र—सब विराट पुरुष के अंग हैं। पुराणों में वर्णित है कि उनके मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, उदर से वैश्य, पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई। जो शूद्र को नीचा कहते हैं, वे अपना पैर काटकर दिखाएँ। अधर्मी हमें आपस में लड़ाते हैं, लेकिन एकजुट होकर गौहत्या का कलंक मिटाना होगा। जो कहते हैं कि संतों को राजनीति में नहीं आना चाहिए, वे राजनीतिज्ञों से क्यों नहीं कहते कि वे धर्म में हस्तक्षेप न करें? रामायण में मंथरा के विचार ने कैकेयी को भड़काकर अधर्म करवाया; ऐसा विचार अनुकरणीय नहीं। गाय न बची, तो संसार भी न बचेगा। सनातनियों की ताकत वोट है, जो रामराज्य की स्थापना कर सकती है।
गौमतदाता संकल्प यात्रा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना की पुनर्प्रतिष्ठा है। गौसंरक्षण का विषय मात्र धार्मिक भावुकता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है। भूमि अधिग्रहण, गोशालाओं की दुर्दशा और राजनीतिक मौन—ये सब न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी हैं। यह संदेश स्पष्ट है कि आस्था को अनसुना करके राजनीति अपनी वैधता खो देती है। यदि लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो उसे बहुसंख्यक समाज की करुणा और सनातन मूल्यों को भी उतना ही महत्व देना होगा, जितना सत्ता की गणनाओं को।
गौमतदाता संकल्प यात्रा ने दिखा दिया है कि सनातन समाज अब अपनी भावनाओं को केवल मन में नहीं रखेगा, बल्कि लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में व्यक्त करेगा। अगर राजनीति को अपनी प्रामाणिकता बनाए रखनी है, तो उसे इस भाव को समझना ही होगा।
*यह लेख ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के उन भाषणों का संकलन है, जो उन्होंने अपनी गौमतदाता संकल्प यात्रा के दौरान भागलपुर और कटिहार की सभाओं में दिए।

