– ज्ञानेन्द्र रावत*
हमारी होड़ ने आसमान को कूड़ाघर बना दिया
रात की अँधेरी चादर के पार, जब पृथ्वी धीरे-धीरे घूमती है और उसके नीले किनारों पर सूर्य की पहली सुनहरी आभा छनकर आती है, तो मानवता का यह ग्रह ऊपर से किसी शांत, संतुलित और शाश्वत दुनिया की तरह दिखाई देता है—मानो सब कुछ पूर्ण सामंजस्य में हो। लेकिन जैसे ही यह दृश्य बदलकर अंतरिक्ष में तैरती धातु, जलते रॉकेट, घूमते मलबे और कक्षाओं में भरी अव्यवस्था की झिलमिलाहट में बदलता है, समझ में आता है कि यह सुंदरता सिर्फ एक दूर से देखा गया भ्रम है। धरती की तरह अंतरिक्ष भी अब मानव की बेचैनी, उसकी गति और उसकी प्रतीक्षित ‘प्रगति’ की अंधी दौड़ का शिकार हो चुका है।
दुनिया में प्रगति का अब कोई न तो मापदंड रहा है और न ही कोई मानदंड। यह वाक्य किसी थके हुए दार्शनिक का निष्कर्ष नहीं, बल्कि उस बेचैन रफ्तार का चित्रण है जिसने मानव सभ्यता को एक अनवरत दौड़ में बदल दिया है। इसका अहम कारण होड़ है—एक ऐसी होड़, जो थमने का नाम नहीं ले रही। प्रगति और विभिन्न क्षेत्रों में सबसे पहले कामयाबी हासिल कर उन्नति के शिखर पर पहुंचने की इस अंधाधुंध दौड़ ने ही खोज—कहें या अनुसंधान की महती महत्वाकांक्षा—को जन्म दिया, जिसने इंसान को रॉकेटों और सैटेलाइटों को अंतरिक्ष तक भेजने हेतु प्रोत्साहित किया।
अब तो अंतरिक्ष ही क्या—चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रह भी इंसान की इस महत्वाकांक्षा के आगे मानो नतमस्तक हैं। उन पर भी पहुंच बनाने में उसने कामयाबी पा ली है। वह बात दीगर है कि उसके इन अभियानों से लाभ कितना होता है और हानि कितनी—इसकी चिंता किसी को नहीं है। इंसान की यही कारगुजारी एक ऐसे दुष्परिणाम में बदल गई है कि उसने अपने ग्रह को तो प्रदूषित किया ही है, अब अंतरिक्ष को भी प्रदूषित कर डाला है। अंतरिक्ष में प्रदूषण इसका जीता-जागता सबूत है।
इंसान, वायु, जल, धरती, नदी, मृदा, खान-पान की वस्तुएं—कहां तक गिनाएँ?—प्रदूषण की मार से कोई बचा नहीं है। यहां तक कि अंतरिक्ष भी प्रदूषण से अछूता नहीं रहा है। वैज्ञानिकों के हालिया अध्ययन इसके जीते-जागते सबूत हैं। लंदन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा किया है। उनके अनुसार, अंतरिक्ष का यह प्रदूषण धरती के ऊपर वायुमंडल में 500 गुणा अधिक नकारात्मक असर छोड़ रहा है। इसमें धरती से छोड़े गये रॉकेटों और सैटेलाइट की अहम भूमिका है। भले ही यह उत्सर्जन दूसरे उद्योगों से कम क्यों न हो, लेकिन वायुमंडल में पहले से ज्यादा प्रदूषण फैल रहा है। यह काफी चिंताजनक है।
लंदन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वैज्ञानिकों का कहना है कि रॉकेट और सैटेलाइट से पहले कभी इतना प्रदूषण वायुमंडल की ऊपरी परत में नहीं छोड़ा गया। यह परत लंबे समय तक प्रदूषण को रोककर रखती है। गौरतलब यह है कि इंसानों ने इससे पहले कभी भी वायुमंडंड की ऊपरी परतों में इतना प्रदूषण नहीं फैलाया जितना अभी फैल रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो पृथ्वी के वायुमंडल में इसके गंभीर परिणाम होंगे। अध्ययन में यह स्पष्ट हो गया है कि स्पेसएक्स के स्टारलिंक, वनवेब जैसे बड़े सैटेलाइटों ने प्रदूषण को तीन गुणा बढ़ाने में अहम योगदान दिया है। इसका जीपीएस, संचार और मौसम के पूर्वानुमान सहित अंतरिक्ष आधारित तकनीकों पर निर्भर उद्योगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
अंतरिक्ष में भेजे रॉकेटों-सैटेलाइटों से समूची दुनिया को टेलिविजन प्रसारण, डायरेक्ट टू होम, एटीएम, मोबाइल व संचार, दूर शिक्षा, दूर चिकित्सा और मौसम, कीट संक्रमण, कृषि-मौसम विज्ञान, मत्स्य पालन आदि क्षेत्रों में सलाह मिलती है। यही नहीं, उपग्रह डेटा का इस्तेमाल फसल उत्पादन व अनुमान, फसल की गहनता, सूखा आकलन, बंजर भूमि सूची, भूजल संभावित क्षेत्रों की पहचान, अंतर्देशीय जलीय चक्र और कृषि की उपयुक्तता, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, महासागरीय स्थिति की सूचना के साथ भूजल पुनर्भरण संभाव्यता आदि के लिए भी किया जाता है। लेकिन इसके लाभ के साथ-साथ खतरे भी अनेक हैं। सबसे बड़ा खतरा तो इनके द्वारा छोड़े गये अनुपयुक्त या समय सीमा समाप्ति के बाद कबाड़ सामानों से अंतरिक्ष में हो रहे प्रदूषण का है, जिसने समूची दुनिया के वैज्ञानिकों और पर्यावरणवेत्ताओं की चिंता को और बढ़ा दिया है।
असलियत में दुनिया के देशों द्वारा प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों, रॉकेटों, बूस्टर और हथियार परीक्षणों के मलबे के हजारों टुकड़े कक्षा में फंस गये हैं, जो न केवल पृथ्वी की निगरानी के लिए जरूरी सक्रिय उपग्रहों से टकरा सकते हैं, बल्कि पुन: प्रवेश करते समय जलने पर हानिकारक रसायन भी वायुमंडल में छोड़ सकते हैं। इससे ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। साथ ही आगामी बरसों में प्रक्षेपास्त्र और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
गौरतलब है कि 2021 के नवंबर महीने में रूस ने एक एंटी-सैटेलाइट प्रक्षेपास्त्र के जरिए अपने एक पुराने उपग्रह को उड़ा दिया था। परिणामस्वरूप उसके मलबे के हजारों टुकड़े फैल गये थे, जिससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से टकराने का खतरा पैदा हो गया था। सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन की मानें तो आज तक कम से कम 16 मलबा पैदा करने वाले ए-सैट हथियार परीक्षण किए गये हैं, जिनमें सबसे ज्यादा हानिकारक 2007 में चीन द्वारा किया गया था, जिससे 3000 के करीब मलबे के टुकड़े बने थे। तब से अभी तक तीन मलबा बनाने वाले परीक्षण किये गये हैं और आने वाले बरसों में कई अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनी है।
इस समय अंतरिक्ष में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जापान, भारत, फ्रांस, जर्मनी, इटली और कनाडा—इन दस देशों के सर्वाधिक सैटेलाइट हैं। इन तकरीबन 12,952 सैटेलाइटों में से सबसे ज्यादा 8,530 अमेरिका के हैं। उसके बाद रूस के 1,559, चीन के 906, ब्रिटेन के 763, जापान के 203, भारत के 136, फ्रांस के 100, जर्मनी के 82, इटली के 66 और सबसे कम 64 कनाडा के हैं। मौजूदा दौर में 2,200 से ज्यादा उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। ये पृथ्वी की सतह से लगभग 30,000 किलोमीटर ऊपर भूस्थिर कक्षा में हैं, जो अधिकांशत: संचार और मौसम की जानकारी से संबंधित उपग्रह हैं।
जहां तक भारत का सवाल है, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, भारत ने इसरो के द्वारा अब तक 1975 से भारतीय मूल के 129 के अलावा 36 देशों के 342 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। राज्यसभा में दी जानकारी के मुताबिक, भारत के अंतरिक्ष में कुल 53 परिचालन उपग्रह हैं, जो राष्ट्र को विभिन्न सेवाएं दे रहे हैं—21 संचार, 8 नेविगेशन, 21 पृथ्वी अवलोकन और 3 विज्ञान उपग्रह। भारत ने बीती 2 नवंबर को 4,410 किलो वजन वाला देश का सबसे भारी संचार उपग्रह जीसैट–7आर बाहुबली रॉकेट एलवीएम–3–एम5 के जरिए छोड़ा है। कहा जा रहा है इससे नौसेना की कनेक्टिविटी—युद्धपोतों, विमानों और पनडुब्बियों सहित समुद्री संचालन केंद्रों—में निर्बाध और सुरक्षित संचार संपर्क कई गुणा बढ़ जाएगा।
सबसे अहम सवाल तो अंतरिक्ष में दिनोंदिन बढ़ रहे कचरे का है। वह बात दीगर है कि अंतरिक्ष की कक्षा में मौजूद कचरे की मात्रा पृथ्वी के वायुमंडल से ठीक ऊपर, उसकी सतह से 2,000 किलोमीटर ऊपर तक फैले क्षेत्र में मौजूद उपग्रहों और मलबे की तुलना में नगण्य है। उसको पृथ्वी की निम्न कक्षा या लियो कहते हैं। अक्सर उच्चतर कक्षाओं, चंद्रमा या अन्य ग्रहों तक पहुंचने के लिए अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निम्न कक्षा से ही गुजरना पड़ता है। यहां मलबा सबसे ज्यादा और सघन मात्रा में होता है। यहां कक्षीय वेग सबसे ज्यादा होता है। यही वह अहम कारण है कि अंतरिक्ष का यह कचरा—या जिसे मलबा कहें—लियो में मौजूद अंतरिक्ष यान के लिए ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष यात्रा के सभी रूपों के लिए बड़ा खतरा है। अंतरिक्ष का कचरा परिचालन अंतरिक्ष यान पर प्रभाव डाल सकता है। इससे सभी आकारों का और भी अधिक मलबा पैदा हो सकता है जिससे जोखिम का असर और बढ़ सकता है, जिसे केप्लर सिंड्रोम कहते हैं।
यहां सबसे बड़ी चिंता निष्क्रिय उपग्रहों और रॉकेटों के मलबे को लेकर है, जो इस क्षेत्र में फैले हुए हैं और अंतरिक्ष में अव्यवस्था फैला रहे हैं। 1957 में जब सबसे पहले स्पुतनिक अंतरिक्ष में पहुंचा, तभी से मलबा जमा होना शुरू हुआ। 2020 तक, 2,200 सक्रिय उपग्रहों के साथ लगभग 34,000 दस सेंटीमीटर या उससे अधिक व्यास के मलबे के टुकड़े, एक से दस सेंटीमीटर तक की 9,00,000 वस्तुएं और एक सेंटीमीटर से छोटे 1,28,00,000 टुकड़े अंतरिक्ष में मौजूद थे, जिनका कुल वजन लगभग 70 लाख किलोग्राम था।
रॉकेट प्रक्षेपण से बूस्टर, फेयरिंग, इंटरस्टेज और अन्य मलबा लियो में रह जाता है। रॉकेटों के विस्फोट से भी यही होता है। इसके अलावा इंसान की मौजूदगी से भी कैमरा, प्लायर्स, अंतरिक्ष यात्रियों के दस्ताने, रिंच, स्पैचुला—यहां तक कि अंतरिक्ष भ्रमण के दौरान खोए उपकरण और बैग भी वहां रह जाते हैं। कुछ मलबा प्राकृतिक तौर पर भी सूक्ष्म उल्कापात के प्रभाव से पैदा होता है। उपग्रहों के संचालन, ईंधन समाप्त होने, बैटरियों के पैनल खराब होने से एकपक्षीय मलबे का प्रतिक्रिया चक्र बनता है। सबसे छोटे कण—धूल जैसे—भीषण खतरा पैदा करते हैं।
अब लियो में ज्यादा सैटेलाइटों और रॉकेटों के चलते भीड़-भाड़ बढ़ रही है। अंतरिक्ष यान और मौजूदा कबाड़ के बीच नजदीकी चूक पहले से ज्यादा हो रही है—यह भयावह संकेत है। ऐसी स्थिति में अंतरिक्ष यान और कक्षीय मलबा एक ऐसे घनत्व तक पहुंचते हैं, जहां हर टक्कर और मलबा पैदा करती है, जो दूसरी वस्तुओं से टकराने की संभावना बढ़ा देती है। नतीजतन, लियो का उपयोग दशकों तक असंभव हो सकता है—यह भी भयावह चेतावनी है।
अंतरिक्ष में प्रदूषण के लिए विभिन्न देशों की सरकारें, अंतरिक्ष एजेंसियां और निजी कंपनियां—तीनों जिम्मेदार हैं। यह प्रदूषण मुख्यतः उपग्रहों व रॉकेटों के हिस्सों और प्रक्षेपणों के दौरान पैदा हुए मलबे के रूप में होता है। स्पेसएक्स, एरियनस्पेस और लॉकहीड मार्टिन जैसी कंपनियों का योगदान इसमें कम नहीं है। अनुसंधानकर्ता प्रोफेसर एलायस मौरिस कहते हैं कि हम एक ऐसी जगह पर आ पहुंचे हैं, जहां हम पहले कभी नहीं थे। अंतरिक्ष यान और रॉकेटों का प्रक्षेपण दिनोंदिन तेजी से बढ़ रहा है—अकेले 2024 में 259 और 2023 में 223 रॉकेट लॉन्च किए गए। इनमें कुल मिलाकर 4,53,000 मीट्रिक टन से ज्यादा ईंधन खर्च हुआ।
कुछ दिनों से केन्या सहित दूसरी जगहों से अंतरिक्ष से मलबा गिरने की खबरें आ रही हैं। स्वाभाविक है कि अंतरिक्ष में भी मलबा जमा होने की सीमा है। दुनिया में अनुसंधान, मौसमी गतिविधियों, संचार के विभिन्न आयामों की पहचान और ग्रहों की खोज हेतु सैटेलाइट और रॉकेट भेजने की होड़ लगी है; ऐसे में यह होना स्वाभाविक है। आज केन्या में मलबा गिरा है, कल कहीं और गिरेगा। यह सिलसिला जारी रहेगा—और खतरा भी बढ़ता जाएगा—जब तक यह होड़ जारी है।
भविष्य में अमेजन का कुईपर प्रोजेक्ट यूरोपीय स्पेस एजेंसी के ठोस रॉकेट ईंधन का उपयोग करेगा। इससे क्लोरीन यौगिक निकलेंगे, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। दुनिया के विशेषज्ञ सहमत हैं कि इस संकट के हल के लिए तकनीकी नवाचार और सख्त नियम—दोनों की बेहद जरूरत है। यह भी कि अंतरिक्ष के मलबे की समस्या का शीघ्र निपटारा किया जाए।
कारण बोइंग और स्पेसएक्स जैसी कंपनियां पृथ्वी की निचली कक्षा में लगभग 65,000 अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण की तैयारी में हैं—जिससे भविष्य में अंतरिक्ष में और भी अधिक मलबा पैदा होगा। जाहिर है इससे अंतरिक्ष में मलबे की समस्या और भयावह रूप अख्तियार करेगी। इसमें दो राय नहीं।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
