विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष
– ज्ञानेन्द्र रावत*
2 अक्टूबर 2008 से सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। शुरू शुरू में तो इस पाबंदी का कुछ असर दिखाई भी दिया लेकिन उसके बाद यह बेमानी हो गयी। यही हाल तम्बाकू नियंत्रण एवं उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी अंतर्राष्ट्रीय संधि ’’फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबेको कण्ट्रोल का है। यह दुनिया में पहली संधि है जो जन स्वास्थ्य व उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी है। विडम्बना यह कि सिगरेट निर्माता कंपनियां उपोक्ताओं को ही केन्द्र बिन्दु नहीं बना रहीं बल्कि सरकारी माध्यमों का भी अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं।
अब सवाल यह उठता है कि प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण एवं उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संधि होने के बावजूद आखिर इन कंपनियों पर प्रभावकारी नियंत्रण क्यों नहीं लग पा रहा है। कारण इनका वैश्विक स्तर पर इतना जबरदस्त जाल फैला है जिसके चलते केवल संधियों से तम्बाकू नियंत्रण की आशा बेमानी है। सबसे बड़ी बात यह कि तम्बाकू से होने वाली हर मौत को रोका जा सकता है यदि तम्बाकू सेवन पर अंकुश लगे।
तम्बाकू के सेवन से देश में हर साल एक मिलियन यानी दस लाख लोगों की मौत हो जाती है। तम्बाकू एक ऐसा जहर है जो पच्चीस रोगों और चालीस तरह के कैंसर को जन्म देता है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो तम्बाकू के सेवन से इंसान जिन रोगों का शिकार होता है उनमें कैंसर, ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, फेफड़े और श्वांस सम्बंधी रोग प्रमुख हैं । कैंसर में खास तौर से मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि का कैंसर, पेट का कैंसर और ब्रेन ट्यूमर आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं । तम्बाकू सेवन के मामले में बांग्लादेश 43.3 फीसदी के साथ पहले, रूस 39.3 फीसदी के साथ दूसरे, 34.6 फीसदी के साथ भारत तीसरे नम्बर पर है। चीन 28.1 फीसदी के साथ चौथे स्थान पर है।
गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति वर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू रहित दिवस के रूप में मनाता है। वह बरसों से तम्बाकू रहित विकास का नारा दे रहा है । उसके अनुसार सभी सरकारों का दायित्व है कि वे धूम्रपान के बढ़ते प्रचलन को खासकर बच्चों व नौजवानों पर विशेष ध्यान दें और इन्हें हमेशा के लिए इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करें। उस दशा में ही हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुखी और स्वस्थ रखने में कामयाब हो सकेंगे।
गौरतलब है कि धूम्रपान की लत जितनी जल्दी शुरू होती है, उसका दुष्परिणाम उतना ही गंभीर होता है। वयस्क व्यक्ति के नियमित धूम्रपान करने के कारण 50 फीसदी अधिक मृत्यु की संभावना रहती है । इनमें आधे से अधिक तो अधेड़ अवस्था में ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं । ऐसे लोगों की उम्र 22 साल कम हो जाती है। दुनिया में धूम्रपान करने वालों की तादाद एक बिलियन है। इनमें 19 फीसदी वयस्क जिसमें 33 फीसदी पुरुष और 6 फीसदी महिलाएं हैं । 80 फीसदी मध्य एवं निम्न आय वर्ग के हैं।
13 से 15 साल के धूम्रपान करने वाले युवाओं की तादाद 24 मिलियन है जिनमें 13 मिलियन तम्बाकू उत्पाद का प्रयोग करते हैं । तम्बाकू के सेवन से दुनिया में 7 मिलियन लोगों की हर साल मौत होती है। 20 वीं सदी में धूम्रपान से 100 मिलियन लोगों की मौत हुई जबकि आशंका कि 21वीं सदी में तक़रीबन एक बिलियन लोग इसके शिकार होंगे । अमेरिका में 40 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं । इनमें 4.7 मिलियन र्हाइ स्कूल में पढ़ने वाले छात्र हैं।
वहां धूम्रपान से हर साल तकरीबन 5 लाख की मौत होती है । हमारे यहाँ प्रति वर्ष 120 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं । हमारे देश में धूम्रपान करने वालों की तादाद दुनिया की 12 फीसदी है । यह जानते-समझते हुए कि तम्बाकू में कैंसर के 70 रसायन पाये जाते हैं। एक सिगरेट में लगभग 400 रसायन तथा 20 कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं । धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा हृदयरोग तथा कैंसर की संभावना 25 से 30 फीसदी अधिक होती है । इसके बावजूद 1998 से लेकर देश में तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों की तादाद में 36 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। यह जानने के बाद कि तम्बाकू के पौधे से कृषि, मानव स्वास्थ्य और पर्या वरण को काफी नुकसान होता है ।
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल 130 करोड़ की आबादी में से 28.6 फीसदी लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं । 18.4 फीसदी युवा न सिर्फ तम्बाकू, बल्कि बीड़ी, खैनी , गुटका और अफीम का भी सेवन करते हैं। देश में तकरीब 15 करोड़ पुरुष और 15 साल से अधिक की 7.8 करोड़ से अधिक महिलाएं नियमित रूप से धूम्रपान की लत की शिकार हैं। 40 लाख के करीब 15 साल से कम उम्र के बालक इसके शिकार हैं । देश में मिजोरम ऐसा राज्य है जहां 34.4 फीसदी लोग धूम्रपान करते हैं जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है । आजकल नवयुवतियों -कालेज छात्राओं और महिलाओं में धूम्रपान एक फैशन और नौजवान पीढ़ी की पहली पसंद हुक्का बन गया है। यह खतरनाक संकेत है। हमारे यहां हर साल 85,000 पुरुषों में और 34,000 महिलाओं में कैंसर के नए मामले सामने आते हैं जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में तम्बाकू का प्रयोग होता है। धूम्रपान के कारण महिलाओं में कैंसर के मामलों के अलावा मासिक धर्म के कम होने, दर्द होने, विटामिन सी की कमी, शरीर पर बाल अधिक होने, चेहरे पर झुर्रियां होने और
उनके दूध में निकोटिन की मात्रा बढ़ने की शिकायतें आम होती हैं । गर्भवती महिला के धूम्रपान करने से बच्चे के मंदबुद्धि होने, वजन कम होने और स्वांस नली में विकार होने की आशंका बनी रहती है।
तम्बाकू 41 फीसदी कैंसर से होने वाली मौतों के लिए तो जिम्मेवार है ही, वह न सिर्फ इसका सेवन करने वालों को बीमार कर रहा है बल्कि आसपास रहने वाले लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं । एम्स के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एस वी एस देव का कहना है कि एम्स में पिछले कई सालों से ऐसे रोगी आ रहे हैं जिनको ये बीमारी उनके आसपड़ोस, घर में रहने वाले लोगों से हुई । एम्स के ही एक अन्य प्रोफेसर डा. आलोक ठक्कर कहते हैं कि अब तो ऐसे बच्चों के केस आ रहे हैं जो घरवालों के धूम्रपान करने के कारण अस्थमा और कान की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यही नहीं घरवालों के धूम्रपान या तम्बाकू सेवन के कारण महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका खुलासा करते हुए एमजीएम मेडीकल कालेज, जमशेदपुर की गायनिक विभाग की प्रोफेसर डा. बनीता सहाय का कहना है कि तम्बाकू के सेवन से पुरुषों के वीर्य में एचपी वायरस फ़ैल जाता है । एचपी वायरस को सर्विक्स यानी बच्चेदानी के मुख के कैंसर का प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। उनके अनुसार पहले महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर के मामले अधिक पाये जाते थे लेकिन अब बीते बरसों से बच्चेदानी के मुख के कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। देश में ऐसे मामले दुसरे देशों की तुलना में अधिक सामने आ रहे हैं। ऐसे मामलों में देश में हर आठ मिनट में एक महिला की मौत हो रही है । एम्स की प्रोफेसर डा. नीरजा बटाला का कहना है कि यदि 45 साल तक की महिलाओं को एचपीवी का टीका लग जाय तो बच्चेदानी के मुख के कैंसर से 80 फीसदी तक बचा जा सकता है
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद्