ट्रैक्टर पर कार जैसे नियम न हों: किसान यूनियन
चरणबद्ध ढंग से लागू हों नए मानक: किसानों का सुझाव

नई दिल्ली: भारत सरकार ने ट्रैक्टरों पर यूरो-पाँच (ट्रेम-पाँच) उत्सर्जन मानक लागू करने से पहले उनके प्रदूषण स्तर का तुलनात्मक अध्ययन कराने का निर्णय लिया है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई बैठक में किसानों, ट्रैक्टर उद्योग और मंत्रालय के अधिकारियों ने अपने विचार रखे। बैठक में एक रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई जिसमें इस विषय पर कुछ सिफ़ारिशें की गई थीं।
बैठक के दौरान मंत्री ने कहा कि किसानों के ट्रैक्टरों की तुलना व्यावसायिक वाहनों से नहीं की जा सकती। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले ट्रैक्टर और अन्य वाहनों से होने वाले प्रदूषण का वैज्ञानिक आकलन किया जाएगा, उसके बाद ही मंत्रालय इस विषय पर अपनी राय देगा।

भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) की ओर से राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने किसानों की ओर से सुझाव प्रस्तुत करते हुए कहा कि देश के मेहनतकश किसान पर्यावरण और स्वच्छ ऊर्जा अभियान के समर्थक हैं, परंतु नीति बनाते समय खेत-खलिहान की वास्तविकता को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ट्रैक्टरों पर ट्रेम-चार और ट्रेम-पाँच उत्सर्जन मानक लागू होने से किसानों पर भारी आर्थिक बोझ बढ़ेगा और ग्रामीण स्तर पर अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी।
मलिक ने कहा कि छोटे किसानों पर नया ट्रैक्टर खरीदने का दबाव बढ़ेगा क्योंकि नई तकनीक वाले ट्रैक्टरों की कीमत दो से तीन लाख रुपये तक बढ़ गई है। इससे किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा, जबकि इसका प्रत्यक्ष लाभ उद्योग क्षेत्र को मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस नीति से किसानों की जेब पर मार पड़ेगी और छोटे किसान नए ट्रैक्टर लेने में असमर्थ हो सकते हैं।
उन्होंने तकनीकी दृष्टि से यह भी बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में ईएफ़आई (इलेक्ट्रॉनिक फ़्यूल इंजेक्शन) और डीपीएफ़ (डीज़ल पार्टिकुलेट फ़िल्टर) जैसी नई तकनीकों की जानकारी और मरम्मत सुविधा नहीं है। ग्रामीण मिस्त्री और छोटे गैराज इन मशीनों की मरम्मत नहीं कर सकेंगे, जिससे किसानों को कंपनियों की सर्विस पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप ट्रैक्टरों का रखरखाव जटिल और महँगा हो जाएगा। उन्होंने चेताया कि पुराने ट्रैक्टरों पर रोक लगने की स्थिति में ग्रामीण मैकेनिक वर्ग बेरोज़गार हो सकता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
यूनियन ने यह भी कहा कि सत्तर हॉर्सपावर से अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टरों पर कड़े उत्सर्जन मानक लागू किए जा सकते हैं, क्योंकि उनका उपयोग प्रायः गैर-कृषि या औद्योगिक कार्यों में होता है। लेकिन सत्तर एचपी से नीचे के ट्रैक्टर मुख्य रूप से खेती के कार्यों में प्रयुक्त होते हैं, इसलिए उन्हें इन नियमों से मुक्त रखा जाना चाहिए।
संगठन ने चेताया कि यदि सत्तर एचपी से कम ट्रैक्टरों पर भी यही नियम लागू किए गए, तो छोटे किसान नया ट्रैक्टर नहीं खरीद पाएंगे और मजबूरी में पावर-वीडर या छोटे कृषि उपकरणों का सहारा लेंगे। इसका सीधा नुकसान ट्रैक्टर उद्योग को होगा और नीति उलटी दिशा में किसानों और उद्योग दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
किसान संगठन ने अपने सुझावों में स्पष्ट कहा कि ट्रैक्टर पर कार या ट्रक जैसे नियम लागू न किए जाएँ, ट्रैक्टरों के लिए इंजन की स्थिति पर आधारित प्रदूषण जाँच (पी.यू.सी.) व्यवस्था जारी रखी जाए, ट्रैक्टरों की जीवन-सीमा तय न की जाए और सत्तर हॉर्सपावर से नीचे के ट्रैक्टरों को इन मानकों से बाहर रखा जाए। संगठन का कहना है कि यह कदम किसानों, ग्रामीण रोजगार और कृषि अर्थव्यवस्था — तीनों के हित में होगा।
मलिक ने कहा कि प्रदूषण की वास्तविकता यह है कि इंजन खराब होने पर ही प्रदूषण बढ़ता है। खेती के कार्यों में ट्रैक्टर हमेशा लोड पर चलता है, इसलिए कमजोर इंजन से काम हो ही नहीं सकता। किसान स्वाभाविक रूप से इंजन की मरम्मत करवाता है, ताकि खेत में काम निर्बाध रूप से हो सके। इसीलिए प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली इंजन की स्थिति और शक्ति पर आधारित होनी चाहिए, न कि ट्रैक्टर की उम्र पर।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत में अधिकतर किसानों की भूमि छोटी है और ऐसे में पंद्रह से बीस वर्ष पुराने ट्रैक्टर भी पूरी तरह उपयोगी रहते हैं। एक औसत किसान जिसके पास बीस एकड़ भूमि है, वह वर्ष भर में लगभग दो सौ से ढाई सौ घंटे ही ट्रैक्टर चलाता है — यानी प्रतिदिन औसतन पच्चीस मिनट। इस सीमित उपयोग से ट्रैक्टर से उतना प्रदूषण नहीं होता जितना कई घरों में गैस चूल्हों या जेनरेटरों से होता है।
यूनियन ने कहा कि नीति बनाते समय यह ध्यान में रखा जाए कि ट्रैक्टर केवल खेती का उपकरण नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार का भी आधार है। एक ट्रैक्टर के साथ मैकेनिक, चालक और उपकरण सेवा से जुड़ा पूरा वर्ग अपनी रोज़ी कमाता है। यदि नए नियमों से यह व्यवस्था प्रभावित हुई, तो इसका असर न केवल खेती पर बल्कि ग्रामीण आय पर भी पड़ेगा।
किसानों ने मंत्रालय से आग्रह किया कि ट्रेम-चार और ट्रेम-पाँच मानकों को चरणबद्ध ढंग से लागू किया जाए ताकि किसानों पर कोई अतिरिक्त आर्थिक दबाव न पड़े। उन्होंने दोहराया कि किसान देश के विकास में सहभागी हैं, परंतु नियमों को उनकी आर्थिक स्थिति और व्यवहारिक क्षमता के अनुरूप ही बनाया जाना चाहिए।
बैठक का परिणाम यह रहा कि कृषि मंत्रालय पहले चरण में ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों से होने वाले उत्सर्जन की तुलनात्मक समीक्षा करेगा और उसके बाद ही किसी भी नए मानक पर निर्णय लेगा। मंत्रालय का कहना है कि नीति बनाते समय पर्यावरण संरक्षण, किसानों की आर्थिक स्थिति और कृषि अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाए रखना प्राथमिकता होगी।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
