कोर्ट ने मांगा जनता का मत
नई दिल्ली/जयपुर: राजस्थान में सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमाओं को घटाने का राज्य सरकार के प्रयास को जोर दार झटका लगा है। टाइगर रिजर्व की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने का राज्य सरकार का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के 8 सितंबर 2025 के आदेश के बाद ड्राइंग बोर्ड पर वापस चला गया है। कोर्ट ने युक्तिकरण प्रक्रिया में खामियों को रेखांकित करते हुए निर्देश दिया कि राजस्थान सरकार को मसौदा अधिसूचना जारी कर जनता से टिप्पणियां और आपत्तियां मांगनी होंगी। यह आदेश 11 दिसंबर 2024 के कोर्ट के निर्देश के अनुरूप है, जिसमें कहा गया था कि सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य के युक्तिकरण से पहले जनता की आपत्तियों पर विधिवत विचार किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई दिसंबर 2025 में होगी।
6 सितंबर 2025 को, पीपुल्स फॉर अरावली और अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन (आईए 185511/2025) दायर कर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 11 अगस्त 2025 के हलफनामे का जवाब दिया। पीपुल्स फॉर अरावली की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने कहा, “माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2024 के अपने आदेश के तहत निर्देश दिया था कि सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य के युक्तिकरण के समय, पहले एक मसौदा अधिसूचना जारी की जानी चाहिए और राजस्थान सरकार द्वारा जनता की आपत्तियों पर विधिवत विचार किया जाना चाहिए।”
उन्होंने बताया कि उनकी संस्था, जो उत्तर-पश्चिम भारत के चार राज्यों में फैली अरावली श्रृंखला की रक्षा के लिए काम करती है, ने अपने आवेदन में कई गंभीर मुद्दों को उजागर किया। अहलूवालिया ने कहा, “हमने गंभीर पारिस्थितिक और राष्ट्रीय महत्व के मामले में जिस जल्दबाजी के साथ मंजूरी दी गई थी, गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डाला, कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में कानूनी कमजोरियों को बाद के हलफनामों द्वारा सुधार नहीं किया जा सकता है, ‘विस्तृत विचार-विमर्श और चर्चा’ का दावा रिकॉर्ड द्वारा कैसे झुठलाया गया है, कि सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमा का युक्तिकरण 26 जून 2025 को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के मूल एजेंडे में नहीं था, कि युक्तिसंगत योजना को मंजूरी देते समय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 38 वी के तहत उल्लिखित प्रक्रिया पर कोई विचार नहीं किया गया था, कि सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का कानूनी रूप से अस्थिर तर्क जिसमें कहा गया था कि टिप्पणियां/आपत्तियां/सुझाव सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाद आमंत्रित किए जाएंगे, न्यायालय के 11 दिसंबर 2024 के आदेश के विपरीत है।”
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और सह-याचिकाकर्ता अदिति मेहता ने कहा, “घटनाओं के अनुक्रम से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि संबंधित अधिकारियों को सबसे अच्छी तरह से ज्ञात कारणों से, युक्तिकरण का प्रस्ताव राज्य वन्यजीव बोर्ड (एसबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति से राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति के पास तीव्र गति से चला गया, दोनों प्रावधानों के अनुपालन की अनदेखी करते हुए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और साथ ही वन अधिकार अधिनियम।”
उन्होंने बताया कि 24 जून 2025 को राजस्थान राज्य वन्यजीव बोर्ड की सिफारिश अपलोड की गई, और अगले ही दिन, 25 जून 2025 को, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने प्रस्ताव पर विचार कर उसी दिन कार्यालय ज्ञापन जारी किया, जिसे पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। मेहता ने कहा, “एनटीसीए ने अपनी सिफारिश में कहा कि ‘सीमाओं में परिवर्तन के कार्यान्वयन के संबंध में माननीय न्यायालय के 11 दिसंबर 2024 के आदेश के निर्देशों का पालन किया जाएगा।’ यह स्पष्ट नहीं है कि एनटीसीए सभी बाघ अभ्यारण्यों के प्रबंधन के लिए सर्वोच्च वैधानिक निकाय होने के नाते खुद को संतुष्ट क्यों नहीं कर सका कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन किया गया या नहीं।”
जैसलमेर के ‘ओरण बचाओ अभियान’ के संस्थापक और सह-याचिकाकर्ता सुमेर सिंह भाटी सांवता ने कहा, “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की 38V की व्याख्या के संदर्भ में, मुख्य क्षेत्रों को बाघ संरक्षण के उद्देश्य से अछूता रखा जाना है, जबकि बफर क्षेत्रों में स्थानीय लोगों की आजीविका, विकासात्मक और सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की मान्यता के साथ निवास स्थान संरक्षण की कम डिग्री शामिल है। यह पूर्ण उल्लंघन है।” उन्होंने बताया कि एनटीसीए ने स्वीकार किया कि युक्तिकरण वाले क्षेत्र में बाघों की उपस्थिति पुष्ट है, फिर भी इसे कोर से बफर क्षेत्र में बदलने की सिफारिश की गई, जो पारिस्थितिक महत्व को कम करता है।
उत्तरी राजस्थान में अवैध खनन के खिलाफ संघर्षरत याचिकाकर्ता कैलाश मीना ने कहा, “पर्यावरण और वन मंत्रालय एनटीसीए के साथ-साथ एनबीडब्ल्यूएल की ओर से नहीं बोल सकता, जो स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण हैं। इसके अलावा, एमओईएफसीसी एक हलफनामे में यह नहीं बता सकता कि एनटीसीए या एनबीडब्ल्यूएल मिनटों में क्या चर्चा नहीं की गई है – जिससे पूर्वव्यापी रूप से उनमें कानूनी कमजोरियों को भरने की कोशिश की जा रही है।” उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय के 11 अगस्त 2025 के हलफनामे पर सवाल उठाया, जिसमें दावा किया गया कि युक्तिकरण को दिसंबर 2025 तक इको-सेंसिटिव जोन की समयसीमा के कारण मंजूरी दी गई। मीना ने कहा कि छह महीने की समयसीमा बाकी होने के बावजूद जल्दबाजी में निर्णय लिया गया, जिससे पारिस्थितिक प्रभावों को नजरअंदाज किया गया।
पीपुल्स फॉर अरावली के साथ काम करने वाले वकील विश्वास तंवर ने कहा, “यह भी स्पष्ट नहीं है कि किसी क्षेत्र को कोर या बफर के रूप में नामित करने के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत विचार की जाने वाली प्रक्रिया पर एनटीसीए द्वारा विचार किया गया था या नहीं।” उन्होंने बताया कि न तो राज्य वन्यजीव बोर्ड के कार्यवृत्त में, न ही एनटीसीए के ज्ञापन में ग्राम सभाओं या वनवासी समुदायों के साथ परामर्श का उल्लेख है। तंवर ने जोर दिया, “वन क्षेत्र न केवल जंगली वनस्पतियों और जीवों का घर हैं, बल्कि बड़ी संख्या में वन निवासी समुदायों का भी घर हैं, जो या तो वन क्षेत्रों में रहते हैं या अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं।” उन्होंने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में कोर या बफर क्षेत्रों की घोषणा के लिए वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ मानदंडों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों और ग्राम सभाओं की सहमति अनिवार्य है।
पर्यावरण मंत्रालय के हलफनामे में दावा किया गया कि युक्तिकरण की प्रक्रिया में “विस्तृत विचार-विमर्श और चर्चा” हुई, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इसे रिकॉर्ड द्वारा झुठलाया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, राजस्थान सरकार को अब मसौदा अधिसूचना जारी कर जनता से सुझाव और आपत्तियां लेनी होंगी। इसके बाद ही प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जा सकेगा।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्
