वाराणसी: राजा और संन्यासी दोनों सबके रिश्तेदार कहे जाते हैं पर राजा और संन्यासी में अन्तर बस इतना है कि राजा केवल अपनी सीमा का ही हित करता हैं परन्तु संन्यासी के लिए पूरा संसार की उसका अपना होता है इसीलिए वह सभी के कल्याण की चिन्ता करता है और वह दूसरे किसी का भी दुःख देखकर उसे दूर किए बिना आगे नहीं बढ पाता। जब हम में इस प्रकार के परोपकार की भावना आए तब समझना चाहिए कि हममें भी सन्तत्व आने लगा।
उक्त उद्गार ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने आज काशी के केदार क्षेत्र के शङ्कराचार्य घाट पर स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित कोरोना काल में मृत देश विदेश के सभी लोगों की मुक्ति के लिए कथा करते हुए कही।
लोग मृत्यु से बचने का उपाय करते देखे जाते हैं परन्तु हमें यह समझना चाहिए कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित रूप से होती ही है। इसलिए मृत्यु से कोई व्यक्ति नहीं बच सकता। हमें मृत्यु को सँवारने का प्रयास करना चाहिए। यदि मृत्यु को सँवार लेंगे तो मुक्ति प्राप्त हो जाएगी।
शङ्कराचार्य ने कहा कि जिस प्रकार किसी तरल पदार्थ को रखने के लिए बर्तन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीव भी किसी न किसी शरीर में रहता है। पानी बर्तन के अनुसार आकार धारण कर लेती है इसी प्रकार जीव भी जिस शरीर में जाता है उस अनुसार आकार धारण कर लेता है। शरीर को सांचे की तरह और मन को तरल पदार्थ की तरह से समझना चाहिए।
जब जन्म समाप्त होगा तो मृत्यु भी समाप्त हो जाएगी। हमें अपने जन्म को समाप्त करने की आवश्यकता है। जन्म समाप्त करने का उपाय है ज्ञान। ज्ञान की अग्नि से सभी प्रकार के कर्म नष्ट हो जाते हैं और जब कर्म नष्ट हो जाते हैं तो प्रारब्ध फल नहीं बनता। जब फल भोग नहीं रहता तो फिर जन्म भी नहीं होता।
आगे कहा कि हम अलग हैं और हमसे हमारा शरीर अलग है इसे ठीक से जान लेना चाहिए। हम कभी नहीं जीते और मरते अपितु हमारा शरीर ही जीता और मरता रहता है।
उन्होंने कहा कि काशी को मुक्ति का जन्म स्थान कहा जाता है और ज्ञान की खान अर्थात् ज्ञान का भी जन्म स्थान कहा जाता है। इसीलिए इसी स्थान पर पितृपक्ष के अवसर पर यह कथा रखी गयी है। वैसे भी संन्यासी प्रतिदिन दण्ड तर्पण के समय सभी का तर्पण कर देते हैं। दण्ड के अग्र भाग से देवताओ का, मूल भाग से पितरों का, गाॅठ से गनधर्वों का और मध्य भाग से मानवों का तर्पण होता है।
जगद्गुरु शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने मुक्ति का वर्णन करते हुए कहा कि भक्तों को 5 प्रकार की मुक्ति मिलती है – सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य, सारूप्य और सार्ष्टि, पर जो ज्ञानी होता है उसे कैवल्य मुक्ति प्राप्त होती है।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती कहा कि काशी में एक और काशी है जिसे सर्व प्रकाशिका कहा जाता है। इसे जिसने जान लिया उसके लिए हर स्थान काशी के समान हो जाता है। वह सर्व प्रकाशिका आत्मा ही है जिसे जान लेने पर और कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो