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झाँसी: सरकार की विकेन्द्रित प्लानिंग और जल समुदायों, समाज सेवी संस्थाओं की भागीदारी की वजह से बुंदेलखंड के प्राचीन सूखे तालाबों का पुनर्जीवित होना और उनमें फिर से पानी का आना एक अच्छी शुरुआत है। बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संकट एक पुरानी समस्या है। यहाँ की पथरीली ज़मीन और वर्षा की कमी के कारण पानी की भारी कमी रहती है। ऐसे में चंदेल काल के तालाबों का क्षेत्रीय किसानों के लिए अत्यधिक महत्व रहा है।
ऐतिहासिक रूप से चंदेल और बुंदेला शासकों ने बुंदेलखंड में बड़े तालाबों का निर्माण किया था, जो सिंचाई और जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बने। आजादी के बाद, इन प्राचीन तालाबों का रखरखाव सिंचाई विभाग ने किया, लेकिन गाद जमा होने और जल संग्रहण क्षमता में कमी के कारण यह तालाब सूखने की कगार पर आ गए थे।
ऐसा ही 82 एकड़ का लगभग 1000 वर्ष पुराना चंदेल कालीन तालाब एक महत्वपूर्ण जल स्रोत था, जिसे समय की धारा ने क्षतिग्रस्त कर दिया था। झाँसी जिले के लहर ठकुरपुरा गाँव में स्थित इस चंदेल कालीन तालाब में समय के साथ कई समस्याएँ उभरने लगी थीं, जैसे तालाब के आउटलेट का टूटना, जलकुम्भी का जमाव और मछलियों की मृत स्थिति, जिससे जल की गुणवत्ता में गिरावट आई थी और गांववासियों के लिए पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई थी।
अप्रैल 2022 में झाँसी जिला प्रशासन ने तालाब के पुनर्जीवन की जिम्मेदारी ली और इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। तालाब के पुनर्जीवित होने में स्थानीय समुदाय का योगदान अविस्मरणीय रहा। ग्राम पंचायत और जल सहेलियों के सहयोग से जल संरक्षण पर कार्यशालाएँ आयोजित की गईं, जिसमें स्थानीय लोग सक्रिय रूप से शामिल हुए। श्रमदान कार्यों में 33 महिला और पुरुषों ने भाग लिया, जिससे तालाब के पुनर्जीवित होने का काम तेजी से संपन्न हुआ।
तालाब के पुनरुद्धार के इस काम में स्थानीय परमार्थ समाज सेवी संस्था के सहयोग से 100 दिन श्रमदान महाभियान” के अंतर्गत तालाब की सफाई, जलकुम्भी की सफाई, और घाटों की मरम्मत का कार्य किया गया।
स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी की वजह से यह तालाब अब पुनर्जीवित हो चुका है, जो न केवल क्षेत्र के जल संकट को कम करने में सहायक साबित हुआ है, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी जल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर रहा है। इसके पुनर्जीवित होने के बाद क्षेत्र में सिंचाई, पीने के पानी और मछली पालन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जलकुम्भी को पाइपकल्वर्ट के माध्यम से बाहर निकालने से तालाब का जल प्रवाह फिर से साफ हो गया और मछलियों को नया जीवन मिला। इस प्रक्रिया ने भूजल स्तर में सुधार और मछली पालन के अवसरों में वृद्धि की है।
इस सामूहिक प्रयास ने ग्राम लहर और आसपास के गाँवों में जल सुरक्षा सुनिश्चित की है। इस ऐतिहासिक जल स्रोत में अब सुकवां, रसीना, गणेशपुरा, लहार, ठकुरपुरा, और सिमिरिया, इन छह गाँवों से बरसात का पानी ढलान होने के चलते इस तालाब में आता है और इसके जल से आस-पास के छह गाँवों के 350 से अधिक किसान अपनी खेती की सिंचाई कर रहे हैं। तालाब के पुनर्जीवित होने से किसानों को सिंचाई के लिए जल की पर्याप्त आपूर्ति मिल रही है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
जलकुम्भी की सफाई और तालाब के पानी को साफ करने से न केवल खेतों में फसलें बेहतर हुईं, बल्कि आस-पास के गाँवों के जानवरों को भी पीने का साफ पानी मिल गया है। इसके अलावा, तालाब में घाटों के निर्माण से गाँववाले अब कपड़े धोने और स्नान करने के लिए तालाब का उपयोग कर रहे हैं। जिला प्रशासन ने तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए भी पहल की है, ताकि इसे जल पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।
हालांकि, खुशहाली के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन का यह प्रयास एक शुरुआत भर है। बुंदेलखंड के लिए अभी और अधिक कार्य की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध जंगलों की कटाई के कारण यह क्षेत्र सूखा की ओर बढ़ रहा है। परमार्थ से जुड़े हंसारी, झाँसी के निवासी गौरव पाण्डेय ने ग्लोबल बिहारी को बताया कि ऐसे में यदि आने वाली पीढ़ी के लिए शुद्ध जल और हवा सुनिश्चित करनी है, तो पारंपरिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार ही सबसे प्रभावी समाधान है। उन्होंने बताया कि इसके लिए स्थानीय वालंटियर के सहयोग से परमार्थ ने इन पारंपरिक जल स्रोतों के पुनर्जीवित करने का कार्य शुरू किया है। संस्थान ने अब तक बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में 100 से अधिक चंदेल कालीन तालाबों का पुनरुद्धार किया है, जिससे जल संकट में कमी आई है और क्षेत्र में पानी की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो