सैरनी से परिवर्तन-4: अब समृद्ध-खुशहाल है कोरीपुरा गांव
– डॉ राजेंद्र सिंह*
सैरनी नदी की एक बड़ी मुख्यधारा कोरीपुरा गांव से आरंभ होती है। कोरीपुरा घने जंगल में बसा हुआ है। पत्थर की खदानें और उन पत्थर की खदानों में पत्थर होते गांव के लोग रहते थे। इन लोगों का जीवन बहुत कष्ट में था। कष्ट के जीवन को प्रकृति के प्यार से पानी नें बदलना शुरू किया।
जब मैं 2016 में सबसे पहले कोरीपुरा गांव गया था। तब यह गांव वीरान था, यहाँ ऊपर एक छोटा सा तालाब था, जो पूरा टूटा हुआ था। जिसके कारण सारा पानी जमीनों को काटता-बेघर बनाता हुआ बह जाता था। इन्होंने बे-घर बनाने वाले पानी को नियंत्रण करना शुरू किया। सबसे पहले एक छोटे से ताल को बड़ा तालाब बनाने का काम शुरू किया। इस काम की शुरुआत तरुण भारत संघ के कार्य्रकर्ता चमन सिंह ने करवाई थी, लेकिन गांव के नरेश, भैरो सिंह, रघुवीर चतराना, दम्मू, लखने, राम खिलाड़ी, पलमाल, सुरेश, जगदीश सिंह और बटुआ सभी खास लोग थे। जब इनके साथ बैठकर बातचीत की तो इन्हें समझ आ गया कि यदि अपने गांव के हम सब लोग बदलेंगे नहीं, तो हमारा गांव कभी मालामाल, पानीदार नहीं होगा। जिस तरीके से हम जी रहे हैं, यह तरीका ठीक नहीं है।
कोरीपुरा से आरंभ होने वाली सैरनी नदी आंगई बांध में पार्वती से मिल जाती है। इन दोनों नदियों के ऊपर का जलागम क्षेत्र पहले सूखा रहता था। सारा पानी एक साथ इकट्ठा करके नीचे बाढ़ ला देता था। आंगई बांध भरने के बाद, उसकी अपरा बारिश के दिन सारा पानी नीचे जाकर बाढ़ ले आती थी। तो एक तरफ लोग सूखे से जूझते थे, दूसरी तरफ बाढ़ से। सरकार का एक ही बड़ा बांध था, जहाँ पार्वती और सैरनी दोनों नदी मिलती हैं।
गांव के ऊपर रहने वाले लागों को पानी न होने के कारण बाहर जाना पड़ता था। यह लोग बेघर होकर इधर-उधर घूमते थे। जब इन्होंने पानी का पानी का काम शुरू किया, तो गांव वालों का आनंद लौट आया, लोग खुश हो गए। बच्चे बहुत खुश हो गए, सब बच्चे खेलने लगे क्योंकि घर में दूध हो गया, घर में पानी-खाना हो गया।
जो गांव हिंसक, लाचार, बेकार और बीमार थे, वह अब सदाबहार हो गए है। यहाँ के नरेश कहते है कि, एक जमाना था, जब हमें खाने के भी लाले पड़ रहे थे। लेकिन अब हम जब भी कुछ घर में उत्सव होता है, तो हजारों लोगों को खाना खिला देते हैं। अब पूरे गांव में बस आनंद ही आनंद है।
रघुवीर चतराना बोले कि, भैया पुराने दिन दुखों के थे। अब यह नए दिन सुख के आए हैं। अब नए सुख के दिनों में पुरानी यादें जरा रुलाती है और नई यादें हंसाती हैं। अब हम सब गांव के लोग एक साथ बैठ सकते हैं। एक जमाना था, जब साथ-साथ भी नहीं बैठ पाते थे। अभी तो हम आनंद से एक साथ बैठे हैं ना आपके साथ।
श्रीभान बोले कि, भाई जी बस वह दिन तो बड़े खराब थे, जब पानी नहीं था। ना खाने को खाना था, ना भैंस-गाय को चारा और वीरबानियों के ऊपर कष्ट बहुत था। वीरबानी पानी लेकर आती थी और हम इधर-उधर घूमते रहते। अब हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं है। हम सभी अपने बच्चों के साथ अमन चैन में रहते है। भगवान से प्रार्थना करते हैं, ऐसे अच्छे दिन भगवान सबको दे। बत्तू ने कहा कि, भाई जी अब तो हम सब एक हैं। ना हम में लूट है और न ही हम में फूट है। अब हम फूट-लूट, लाचारी, बेकारी, बीमारी से मुक्त आनंद से अपने गांव में रहते हैं। दम्मू ने कहा कि, आजकल हम अपने खेत, घर और गाँव में साझा होकर रहते है। साझापन सूझने लगा है। अब हमारे बच्चे अच्छे पढ़ते हैं, घर अच्छा खेलते है। लखने ने कहा कि, अब हमारी गाय-भैंस के लिए खूब चारा है। घर चलाने के लिए ईधन और अनाज से घर भरा रहता है। बटुआ ने कहा कि, मेरा नाम तो बटुआ है, लेकिन मेरे पास बटुए में रखने के लिए कुछ नहीं होता था। अब मैं अपने बटुए में कुछ ना कुछ रख सकता हूँ। कोरीपुरा की कमला ने कहा कि, भाई जी! जब से पानी आया तो घर में दूध और घी आ गया। घी और दूध का पैसा तो हमारा पैसा है। यह वीरबानियों के बटुए का पैसा है। बीबलिया ने कहा कि, जब से बांध में पानी रुका, तो हमारी सैरनी नदी पूरे साल बहने लगी है। अभी भी देखो ना मई के महीने में भी पानी बह रहा है। सत्तो ने कहा कि, अब हमारा गांव, नदी, बच्चे सभी पानीदार हो गए है। हम अपने पानी से आनंदित रहते हैं। उमेश ने कहा कि, जब से गांव में पानी आया तब से गांव में शांति आ गई। गांव में हमारे लड़ाई-झगड़े कम हो गए। पानी तो आपस में प्यार बढ़ाता है। प्यार से रहने-जीने का सुख चैन से आगे बढ़ने का अवसर देता है। कमलेश ने कहा कि, पानी से हमारे गांव की खुशहाली और हमारे गांव की समृद्धि बदल गई। पहले तो हमें अपने पुरुषों से मिलने का ही संकट रहता, अब तो हमारे पुरुष,बच्चे,बड़े सब एक साथ घर में प्यार से रहते हैं। रेशम ने कहा कि, अब हमारा जीवन पानीदार बन गया। इससे हम मालदार भी बन गए और सुखचैन हमारे जीवन में आ गया है। भूरा देवी ने कहा कि, जब से पानी आया, तब से घर में सब कुछ सुख शांति समृद्धि आ गई, नहीं तो सारा दिन पानी में लगा रहती थी और हम फिर भी बेपानी बने रहते थे। अब हमारी आंखों में भी पानी है और दिमाग में पानी है। जब पानी आता है तो जीवन में प्रेम-आनंद सबकुछ आ जाता है।
कोरीपुरा के 24 साल के डालू ने कहा कि, अब हमें नौकरी ढूंढने की जरूरत नहीं है। हमारे गांव के लोग फसल काटने, बुवाई और अनाज निकालने के लिए तीन से चार लाख की रोजाना की मजदूरी बांटते हैं। एक दिन था जब हमें मजदूरी के लिए दूसरी जगह ढूंढनी पड़ती थी। अब वह दिन है कि, हम दूसरों को मजदूरी देने वाले बन गए है। 30 वर्षीय नाहर सिंह ने कहा कि, जो अभी कोरीपुरा बांध बनने से सुख चैन देखा है,,वह कभी नहीं देखा था। हमें जिंदगी का भी पता चल गया और हमारी जिंदगी को चलाने वाले साधनों का भी हमें रास्ता मिल गया। अब हम इज्जत से अपने गांव में जीते हैं। 28 वर्षीय पप्पू सिंह बोला कि, भैया अब हमें नौकरी ढूंढने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। अब हमें काम मिल गया है। 30 वर्षीय दुर्गा सिंह बोले कि, हमारे पास अब कहीं जाने, भागने की जरूरत नहीं है, हमारी खेती, गाय, भैंस सब कुछ उपलब्ध कराने में सक्षम है। 30 वर्षीय महेंदर ने कहा कि, गांव के चारों तरफ हरियाली हैं, खनन बंद हो गया। खनन की जगह पानी आ गया। जो पहले खाने थी, उनमें भी हमारा पानी भरा रहता है। वह पानी हमारी नदी को शुद्ध बनाने में मदद करता रहता है। जहां कोरीपुरा बांध बना है, पहले वहां केवल खदाने ही खदाने चलती थी। अब वो सभी खदाने बंद है और अब हमें पत्थर नहीं तोडने पड़ते। अब हम पानी का काम करके, पानीदार बन गए है। 20 वर्षीय हेम सिंह ने कहा कि, अब हम अपने गांव को तो अच्छा बना ही लिए है लेकिन हम आसपास के गांवों को भी अच्छा बनाने के लिए अब तरुण भारत संघ से जुडकर, रात-दिन काम करेंगे। क्योंकि अब हमें पता चल गया कि, पानी के काम से प्यार बढ़ता है। इसलिए हेमसिंह बहुत उत्साह में कहे कि, मैं अब तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर, यह अच्छा काम करने और अपने रिश्तेदारों के गांव में सब जगह जाएंगे और यह काम करेंगे।
आज यह सभी संकल्प लेते हैं कि, आज कोरीपुरा में जो आनंद है, वैसा आनंद सब जगह हो और हम सबको आनंद दिलाने का काम करेंगे। इसलिए हमने जैसा कोरीपुरा को खुशहाल-पानीदार बनाया है, वैसा ही हम सारे लोग गांव की सारी वीरबानियों और युवा मिलकर दूसरों गांव को भी ऐसा बनाएंगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।
डॉ. राजेंद्र सिंह जी !
आपको सादर प्रणाम! वरुण देव (जल देव) आपको आपके इन् पवित्र प्रयासों में सैदव सफलता प्रदान करें!
Dr. Rajendra Singh ji!
Regards to you!
May Varun Dev (Water God) always bless you with success in your pious endeavors!