जब मिसाइल गिरे, तब भी वो ख़बरों की ज़ुबान बनी रही...
विशेष रिपोर्ट: मिसाइलों की गूंज में सहर की आवाज़
तेहरान:
“सरहदों पर जो न मिटते हैं, वो कलम से लड़ते हैं,
हम पत्रकार हैं हुज़ूर, जंग में भी ख़बर लिखते हैं।”
तेहरान की उस रात, जब आकाश मिसाइलों की गर्जना से थर्रा रहा था, और ज़मीन ख़ून से लाल हो रही थी, एक आवाज़ थी जो न डरी, न थमी। यह थी सहर एमामी की आवाज़ — ईरान के सरकारी चैनल इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ब्रॉडकास्टिंग की वह एंकर, जिन्होंने बमों की बारिश में भी पत्रकारिता का सूरज बुझने नहीं दिया।
धमाके के बीच गूंजी सहर की आवाज़
सहर एमामी लाइव बुलेटिन पढ़ रही थीं। उनकी आवाज़ में वही शांति थी, वही आत्मविश्वास, जो हर रात लाखों ईरानियों को ख़बरों से जोड़ता है। उन्होंने कहा:
“आदाब-ओ-तहियात… मैं हूँ सहर एमामी… और इस वक़्त आप देख रहे हैं इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ब्रॉडकास्टिंग का ख़ास ब्रॉडकास्ट… आज फिर इस्राइली हमलों ने हमारे वतन को लहू-लुहान किया है… कई मासूम ज़ख़्मी हैं… और अफ़सोसनाक तौर पर, मौत की ख़बरें भी तस्दीक़ हो रही हैं…”
तभी, एक ज़ोरदार धमाका! स्टूडियो की दीवारें कांप उठीं, कैमरा डगमगाया, और स्क्रीन पर सन्नाटा छा गया। यह एक इस्राइली मिसाइल हमला था, जो ठीक उसी वक्त हुआ जब सहर दुनिया को जंग की हकीकत बता रही थीं।
एक पल के लिए सब थम गया। सांसें रुकीं, दिल धड़के, और दुनिया ने देखा कि क्या अब वह आवाज़ ख़ामोश हो जाएगी।
हिम्मत की मिसाल: सहर की वापसी
लेकिन सहर एमामी कोई साधारण पत्रकार नहीं थीं। कुछ ही मिनटों बाद, वही कैमरा फिर चला, और वही आवाज़ फिर गूंजी। शायद उनके हाथ कांप रहे हों, शायद उनकी आंखों में धुंधलका हो, लेकिन उनकी आवाज़ में वही दृढ़ता थी, वही जज़्बा।
“ख़ामोशी भी चीख़ उठती है जब एक औरत हथियारों के बीच सच बोलती है।” — एक दर्शक की टिप्पणी
सहर ने न सिर्फ़ प्रसारण जारी रखा, बल्कि दुनिया को यह पैग़ाम दिया कि पत्रकारिता बमों से नहीं डरती। उनकी आंखों में डर नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी का उजाला था।
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सहर — सुबह की किरण
सहर का नाम, जो फ़ारसी में “सुबह” या “प्रभात” का प्रतीक है, उस रात सही मायनों में चरितार्थ हुआ। जब मिसाइलें अंधेरा बिखेर रही थीं, सहर ने सच की रौशनी को बुझने नहीं दिया।
“गर जवाब न दे सको, तो आवाज़ तो दो…”
सहर की आवाज़ वही जवाब थी, जो बमों की गर्जना को चुनौती दे रही थी।
तेहरान की गलियों से सोशल मीडिया तक
तेहरान की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर ज़ुबान पर एक ही नाम था — सहर एमामी। लोग उन्हें पुकार रहे थे:
- “ईरान की बेटी”
- “हौसले की सदा”
- “जब स्टूडियो बना रणभूमि, तब ऐंकर बनी आवाज़-ए-हक़” — फैज़ान रिज़वी, वरिष्ठ पत्रकार
सोशल मीडिया पर #सहरएमामी ट्रेंड कर रहा था। लाखों लोग उनकी बहादुरी को सलाम कर रहे थे। एक यूज़र ने लिखा:
“वो जो कह दे सच्चाई बमों की गरज में, उसकी आवाज़ खुदा की ज़ुबान होती है…”
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ब्रॉडकास्टिंग का बयान और सरकारी कदम
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान ब्रॉडकास्टिंग ने आधिकारिक बयान जारी कर सभी स्टाफ की सुरक्षा की पुष्टि की। सूत्रों के अनुसार, हमले के तुरंत बाद आपातकालीन प्रसारण योजना लागू की गई, जिसके कारण प्रसारण को जल्दी बहाल किया जा सका। ईरानी सरकार ने इस हमले की कड़ी निंदा की और इसे “पत्रकारिता पर हमला” करार दिया।
दुनिया ने किया सलाम
सहर की बहादुरी की गूंज सिर्फ़ ईरान तक सीमित नहीं रही। दुनियाभर के मीडिया ने इसे पत्रकारिता के इतिहास का एक स्वर्णिम पल बताया:
- ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन: “ब्रॉडकास्टिंग इतिहास का असाधारण क्षण”
- द गार्डियन: “ईरान की सहर ने बमों को प्रसारण से चुनौती दी”
- अल जज़ीरा: “आज रात साहस का नाम है — सहर एमामी”
पत्रकारिता की मशाल
सहर एमामी की वापसी सिर्फ़ एक एंकर की कहानी नहीं थी। यह उस पत्रकारिता की मिसाल थी, जो बमों, बारूद और ख़ौफ़ के बीच भी सच को ज़िंदा रखती है।
“शोर-ए-ग़ुल से न दब जाए कोई सदा-ए-हक़,
हम वो सदा हैं जो तिलिस्म-ए-ख़ौफ़ तोड़ते हैं।”
इतिहास में पहली बार
जंग के मैदान से लाइव रिपोर्टिंग कोई नई बात नहीं, लेकिन एक लाइव टेलीविज़न स्टूडियो पर मिसाइल हमला और फिर उसी एंकर का तुरंत प्रसारण पर लौटना — यह दृश्य शायद विश्व इतिहास में पहली बार देखा गया।
पिछले कुछ उदाहरण:
- २००३: रॉयटर्स के मैज़ेन दाना की बग़दाद में मौत
- २०१४: गाज़ा में सिनोमी कैंमीली और अली अबू अफ़ाफ़ की शहादत
लेकिन २०२५ की यह रात अलग थी। इस रात, कलम और कैमरा बमों से भी न डरे।
मध्य पूर्व में पत्रकारिता का संकट
मध्य पूर्व में पत्रकारिता हमेशा से ख़तरों से भरी रही है। कुछ आंकड़े:
- कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स रिपोर्ट (२०२४): १२४ पत्रकार मारे गए, जिनमें ७०% इस्राइल-गाज़ा युद्ध क्षेत्र से
- इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स रिपोर्ट (२०२४): मध्य पूर्व में ७७ पत्रकारों की जान गई
- गाज़ा: अकेले १७८ पत्रकार शहीद — २१वीं सदी का पत्रकारिता में सबसे बड़ा ख़ूनख़राबा
“ग़म-ए-हयात का क्या शिकवा करें,
जब कलम चलती है तो बम भी थम जाते हैं।”
ईरानी महिला पत्रकारों की गौरवशाली परंपरा
ईरान में महिला पत्रकारों ने हमेशा सत्ता, समाज और सेंसरशिप का डटकर मुक़ाबला किया है। हिज़ाब के पीछे से भी आवाज़ें उठती रहीं, जो न्याय और हक़ की मांग करती थीं।
“हमारी आवाज़ें बंदूक़ों से बुलंद हैं।”
सहर एमामी इस गौरवशाली परंपरा की नई कड़ी हैं।
सहर: एक नाम नहीं, प्रतीक
उनकी वापसी एक पैग़ाम थी — कि पत्रकारिता सिर्फ़ पेशा नहीं, ज़िम्मेदारी है। और यह ज़िम्मेदारी तब सबसे बड़ी हो जाती है, जब हर लफ़्ज़ मौत की नज़र में हो।
“जला डालेंगे ज़ुल्म को अपने लफ़्ज़ों से,
हम वो सहर हैं जो बग़ावत की पहली किरण होती हैं।”
उपसंहार: सहर — सच्चाई की मशाल
सहर एमामी आज एक रिपोर्टर नहीं, एक मशाल बन चुकी हैं — जो झुलसती ज़मीन पर भी सच का उजाला लेकर खड़ी हैं।
“जब मिसाइल गिरे, तब भी वो ख़बरों की ज़ुबान बनी रही…”। यह पंक्ति सिर्फ़ सहर एमामी को ही नहीं, हर उस पत्रकार को सलाम है, जो बमों की गूंज में भी सच्चाई की गूंज बनाए रखता है।
*ओंकारेश्वर पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, रणनीतिकार और अनेक पुस्तकों के लेखक हैं। वे विभिन्न अख़बारों, टेलीविज़न चैनलों और डिजिटल मीडिया के पूर्व संपादक रहे हैं। साथ ही, वे यूनेस्को से संबद्ध थिंक टैंक – गोल्डेन सिग्नेचर्स के संस्थापक हैं।

