रविवारीय: यक्ष-युधिष्ठिर संवाद और अजगरा
– मनीश वर्मा ‘मनु’
किसी काम से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के एक गाँव में एक सामाजिक कार्यक्रम में जाने का कार्यक्रम था। पर मन में असमंजस था कि जाएँ या न जाएँ। तभी अचानक किसी ने बताया कि जहाँ आपको जाना है, वहां से कुछ ही दूरी पर “अजगरा” नाम की एक जगह है, जहाँ यक्ष-युधिष्ठिर संवाद हुआ था। मनु का मन तुरंत बदल गया और वह वहां जाने को उत्सुक हो उठा।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर रायबरेली और प्रतापगढ़ के बीच स्थित है “अजगरा”। लखनऊ-प्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग से रायबरेली के बाद ही बाईं ओर एक रास्ता उतरता है, जो ‘सलोन’ (स्थानीय भाषा में सलवन) होकर लीलापुर थाना से थोड़ा आगे बढ़ते हुए मुख्य रास्ते से हटकर लगभग तीन-चार किलोमीटर गाँवों के बीच से होता हुआ अजगरा की ओर जाता है। मुख्य रास्ते पर, लखनऊ से जाते समय, सड़क के दाहिनी ओर यक्ष-युधिष्ठिर संवाद और अजगरा को इंगित करता हुआ एक नाम पट्टिका लगी हुई है।
यहाँ पहुँचते ही आपको ऐसा महसूस नहीं होगा कि आप महाकाव्य महाभारत के एक प्रमुख प्रसंग को प्रत्यक्ष रूप से देखने जा रहे हैं।

प्राचीन मान्यता है कि अगस्त्य ऋषि के श्राप से इन्द्रासन प्राप्त राजा नहुष अजगर सर्प होकर इसी स्थल पर गिरे थे। द्वापर युग के अंतिम समय में वनवासी पांडवों में श्रेष्ठ युधिष्ठिर के दर्शन से उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ। उनके अजगर सर्प होने के कारण इस क्षेत्र का नाम अजगरा पड़ा। माना जाता है कि वनवास के अंतिम समय में प्यासे पांडवों ने जल खोजते हुए इसी सरोवर के पास यक्ष से जल पाने का अनुरोध किया, पर यक्ष ने बिना उत्तर दिए उन्हें रोक दिया। यही वह स्थान है जहाँ यक्ष-युधिष्ठिर संवाद हुआ था।
यक्ष-युधिष्ठिर संवाद महाभारत का एक प्रसिद्ध प्रसंग है। इस दौरान यक्ष ने पांडवों से कई प्रश्न पूछे, और युधिष्ठिर ने अपने ज्ञान और धर्मपरायणता से सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए। इसके परिणामस्वरूप यक्ष प्रसन्न हुआ और पांडवों के मृत भाइयों को जीवनदान दिया। इस संवाद में ज्ञान, नैतिकता और धर्म के गहन सिद्धांतों का चित्रण है। यक्ष ने अपने वास्तविक स्वरूप का प्रदर्शन किया और युधिष्ठिर को बताया कि वह धर्मदेव हैं और उन्होंने उनके ज्ञान का परीक्षण किया।
माना जाता है कि उसी प्राचीन सरोवर और वृक्ष के अवशेष आज भी यहाँ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद हैं। हालांकि यह प्राचीन पेड़ चक्रवाती तूफान में गिर गया। यक्ष-युधिष्ठिर संवाद से जुड़े प्राचीन वृक्ष के अंश अब पत्थर का रूप ले चुके हैं। ऊपरी भाग पर लकड़ी जैसी रेशों की निशानियाँ और भीतरी भाग पर सुराख़ (पोल) स्पष्ट हैं। ऊपरी भाग उत्तर दिशा में और नीचे का भाग दक्षिण दिशा में स्थित है। माना जाता है कि यह प्राचीन वृक्ष लगभग एक लाख वर्ष से अधिक पुराना है।
अजगरा निवासी लोकप्रिय कवि और पुरातत्व खोजी पं. राजेश कुमार पांडेय उर्फ़ निर्झर प्रतापगढ़ी ने इस क्षेत्र से कई ऐतिहासिक पुरावशेष खोजे और ग्रामीण क्षेत्र में भारत का पहला अशासकीय पुरातत्व एवं लोक कला संग्रहालय स्थापित किया। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की ऋषि पंचमी तिथि से तीन दिनों का विराट मेला लगता है, जो अब महोत्सव का रूप ले चुका है। द्वितीय से तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व के ब्राह्मी लिपि के प्राचीन लेखों में भी इस सरोवर के जल को पापमोचक और मोक्षदायक बताया गया है।
मेले को महोत्सव का रूप देने के लिए निर्झर प्रतापगढ़ी के प्रार्थना पत्र पर विचार कर प्रतापगढ़ के तत्कालीन जिलाधिकारी और क्षेत्रीय विधायक ने सहयोग किया। प्रख्यात इतिहासकार प्रो. एस. एन. राय (पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति, इलाहाबाद विश्वविद्यालय), प्रो. विमल चंद्र शुक्ल, डी.ओ. पी. लाल, डॉ. आर. एन. पाल, डॉ. बृजभान सिंह, प्रो. पीयुष कान्त शर्मा, डॉ. विमलेश कुमार पांडेय एवं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पुराविद् प्रो. एफ. आर. अल्चिन ने भी इन्हें प्रामाणिक माना।

पांडवों की इस घटना से जुड़े ये विश्व के पहले प्राचीन लेख हैं। यहाँ कई प्राचीन मंदिर और सिद्ध संतों की समाधियाँ भी स्थित हैं, जो अत्यंत चमत्कारी और मनवांछित फलदायी मानी जाती हैं।
प्रतापगढ़ कई कारणों से प्रसिद्ध है, लेकिन मुख्य रूप से यह शहर “आंवले की नगरी” के नाम से जाना जाता है। आज़ादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में तब के परिसीमन के अनुसार हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, जो तब के प्रतापगढ़ का हिस्सा थी। यहाँ की धरती इसलिए भी प्रसिद्ध है कि यह मशहूर कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली है।

श्री वर्मा जी ने अजगरा को यक्ष–युधिष्ठिर संवाद, राजा नहुष की कथा और प्राचीन पुरावशेषों से जोड़कर उसे आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तीनों आयामों में सार्थक रूप से प्रस्तुत किया है। विषयवस्तु यात्रा-वृत्तांत, इतिहास और पौराणिकता का संतुलित समन्वय है। भावनात्मक आरंभ और सूचनात्मक समापन इसे और अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।