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December 13, 2025

3 thoughts on “रविवारीय: उफ़ ये मोबाईल!

  1. really mob ne to bacchon ko kahin ka nhi chhoda hai hm bachhon k haath m mob de kar bahut proud feel karte hain logon k samne shaan se batate hain k wo sab janta hai lekin ye habit unke liye kafi nuksan dayak hota hai bahut saare bachche to bol bhi nhi paa rahe hain hme iss habit se unhe door rakhna padega

  2. शायद हम शनैः शनैः अपना सामाजिक दायरा संकुचित करते हुए मोबाइल के माध्यम से आभासी सामाजिक दायरे का विस्तार करते जा रहे हैं। विभिन्न अवसरों पर एकदूसरे के सुखःदुख में मिलना व प्रत्यक्ष रूप से भावनाओं की अभिव्यक्ति करने के स्थान पर मोबाइल के माध्यम से सुखःदुख प्रकट करना /शुभकामनाएं देना आदि तक ही हम स्वयं को संकुचित करते जा रहे हैं। यही संस्कृति व संस्कार हम अपने घर में परिवार में बच्चों के बीच भी पोषित कर रहे हैं। इस संस्कृति के दूरगामी दुष्प्रभावों का आकलन करके अभी से सचेत होने की आवश्यकता है।
    श्री वर्मा जी द्वारा मोबाइल की जीवन में बढ़ती घुसपैठ से भावी गम्भीर स्थितियों के प्रति हर घर की यथार्थ झांकी दिखाते हुए अत्यंत सहज तरीक़े से हम सबको सोचने पर मजबूर किया है। सभी पाठकगण पढ़िये, समझिये व सोचिये। धन्यवाद।

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