
रविवारीय: थोड़ा सा वक़्त अपने लिए
– मनीश वर्मा ‘मनु’
जब आप अपनी उम्र के पचासवें वर्ष के आसपास होते हैं, तब आप थोड़ा सा वक़्त निकाल पाते हैं अपने व्यस्ततम जिंदगी से अपने लिए। हालांकि व्यस्तता की प्रकृति थोड़ी बदलती है। आप मुक्त नहीं हो पाते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई या फिर कैरियर के सिलसिले में व्यस्त होते हैं। शहर लगभग छूट चुका होता है उनका। पत्नी बच्चों और आपके बीच अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करती है। एक सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती है वो।
तब आप अपने आप को देख पाते हैं या यूं कहें देखने की कोशिश करते हैं। आइना सामने होता है।पर, कितना देख पाते हैं अपने आप को, वह तो भगवान ही जानता है। सच्चाई से मुंह चुराने की एक कोशिश होती है।तब आप कोशिश करते हैं, अपनी जिंदगी के अब तक की फिल्म को, फ़िल्म की स्लाइड्स को रिवाइंड कर फिर से देखने की। जैसे जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती जाती है, आपकी जिंदगी रूपी किताब के पन्ने, उसकी परतें, परत दर परत खुलती जाती है।
आप सोचने लगते हैं। काश ! इस जगह पर ऐसा होता। काश ! उस जगह पर ऐसा होता। काश! मैं अपनी जिंदगी को पुनः एक शुरुआत दे पाता । आप बस सोचते ही चले जाते हैं। फिल्म धीरे-धीरे आगे बढ़ती जाती है। बहुत सारे क्षण, बहुत सारे पल, आपके सामने से गुजरते चले जाते हैं। सब कुछ अनायास हो रहा होता है। आप सब कुछ देख रहे हैं। समझ भी रहे हैं। पर, कुछ कर नहीं पा रहे हैं।कुछ क्षणों को आप नहीं देखना चाहते हैं। कुछ क्षणों को आप रोकने की कोशिश करते हैं। उन्हें आप बार-बार देखना चाहते हैं। ऐसा हमेशा होता है। रहे। आप चाहते हैं। पर, अब कुछ नहीं हो सकता। आपकी ख्वाहिशें कुछ और चाहती हैं पर हो कुछ और रहा है। जहां हमारा कोई वश नहीं।
कुछ पलों को आप सुधारने की कोशिश करना चाहते हैं। आप तमाम अच्छे बुरे पलों के साथ वहीं पहुंच गए हैं। आपका ब्लड प्रेशर अब आपके काबू में नहीं है। आप परेशान हैं। काश ! हम एक फिल्म की कहानी की तरह अपनी जिंदगी की कहानी को रिवाइंड करते हुए एक अच्छे एडिटर की तरह कुछ एडिट कर पाते । एक अच्छे निर्देशक की तरह उसे एक नया कलेवर दे पाते। काश! एक नई शुरुआत कर पाते। पर यह कैसे संभव है? यही तो आपका और हमारा प्रारब्ध है।। हम और आप अपने प्रारब्ध को कैसे बदल सकते हैं। अब आप कुछ नहीं कर सकते हैं। बस, अगर हम और आप कुछ कर सकते हैं, तो अपनी जिंदगी को पूरी पाजिटिविटी के साथ जी सकते हैं। जिंदगी बड़ी अनमोल होती है। बहुत कुछ सिखा जाती है।
काश! हम जिंदगी को दुबारा अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जी सकते। अपनी गलतियों को फ़िर से जिंदगी की शुरुआत करते हुए सुधार सकते। मालूम है मुझे। अब कुछ नहीं हो सकता है। पर, इंसान हूं ना। लालसा तो हमेशा बनी ही रहेगी।
हमेशा कुछ और पाने की लालसा।
अपनी ही कहानी लगी
सुंदर प्रस्तुति
“बस, अगर हम और आप कुछ कर सकते हैं, तो अपनी जिंदगी को पूरी पाजिटिविटी के साथ जी सकते हैं।”
जीवन के फलसफे का सार-वाक्य।