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December 7, 2025

3 thoughts on “रविवारीय: संडे को स्कूल

  1. श्री वर्मा जी ने प्रतियोगी परीक्षाओं के पारंपरिक और वर्तमान स्वरूप पर यथार्थ को सटीकता से बयान किया है। हम सबके अनुभव भी सौ फीसदी यही तो रहे हैं। यह सच है कि परीक्षाओं का वर्तमान प्रारूप शैक्षणिक व्यवस्था में तकनीकी क्रांति का प्रतीक है। इसने पारंपरिक परीक्षा प्रणाली को न केवल आधुनिक बनाया है, बल्कि छात्रों और शिक्षकों के सामने नई चुनौतियां भी प्रस्तुत की हैं। अब विषय ज्ञान के साथ-साथ तकनीकी दक्षता अनिवार्य हो गई है। इससे परीक्षा प्रक्रिया अधिक लचीली और सुविधाजनक होने के साथ -साथ तकनीकी असुविधाओं के कारण जोखिमपूर्ण भी हो गई है।
    समग्र रूप से, यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को अनुकूलित करना हर पीढ़ी की अनिवार्यता है। यह शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल युग के प्रभाव को परिलक्षित करता है, जहां तकनीकी ज्ञान सफलता की कुंजी बन गया है।
    श्री वर्मा जी ने इस बार भी फ्लैशबैक में जाने को विवश किया है। पारंपरिक दौर के हम जैसे पाठक को अपने अनुभवों को पुनः जीवंतता के साथ अनुभूत कराने वाली “मनु” लेखनी को साधुवाद।

  2. विद्यार्थियों की दो पीढ़ियों के मध्य का सूक्ष्म विश्लेषण, साथ ही परीक्षाओं के आयोजन में तकनीकी नवाचार का सुंदर विवरण ।

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