रविवारीय: सुबह की सैर
सुबह की सैर की बात ही निराली है। क्या गांव, क्या कस्बा, क्या शहर की गलियां कुछ भी अछूता नहीं है। अहले सुबह आपको इनकी गलियों में, सड़कों पर, चौक चौराहों पर, मैदानों में या फिर पार्कों में आपको टहलते घूमते दौड़ते और हल्के फुल्के व्यायाम करते हुए लोगों की भीड़ दिखाई देती है। यहां उम्र की कोई बंदिश नहीं है। सभी उम्र वय के लोगों से हमारा आपका सामना होता है यहां। कुछ लोग अपने राजरोग यथा शुगर और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखने की कोशिश में लगे होते हैं तो कुछ लोगों के लिए सुबह की सैर एक शगल की तरह है जहां मिलने जुलने और संबंध बनाने के मौके मिलते हैं। ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिज्ञों के करीब आने का मौका भी यहां मिलने की संभावना होती है। कुछ लोग हालांकि वाकई आपको शिद्दत से सैर करते हुए मिलेंगे। ऐसे लोगों की दिनचर्या पौ फटने से पहले ही शुरू हो जाती है और पौ फटने के साथ ही अपने अपने घरों को लौट जाते हैं। भीड़ में खो जाते हैं ये लोग इसलिए हमें पता नहीं चलता है।
वर्तमान समय में हम कह सकते हैं स्वास्थ्य के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। जागरूकता बढ़ाने में सोशल मीडिया के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
मड़ुआ का आटा कब रागी बन गया पता ही नहीं चला। कब गरीबों के घर से निकल ज्वार बाजरा और मक्के ने अमीरों के घर चुपके से अपनी जगह बना ली पता ही नहीं चला। बचपन से ही सहजन की सब्जी खाते चले आए हैं। मां कहती थीं कि सीज़न में सहजन की सब्जी खानी चाहिए, पर सहजन कब हौले से मोरिंगा बन गया पता ही नहीं चला।
सुबह सुबह सड़कों पर आपके स्वास्थ्य से संबंधित खाने पीने की वस्तुएं भी दिखने लगी है। कहीं आपके शुगर का स्तर जांचा जा रहा है तो कहीं उच्च रक्तचाप। सैर तो साहब सही है,पर कहीं ना हम बाजारवाद के शिकार बन रहे हैं। आपको ऐसा नहीं लगता है?
खैर! सुबह सुबह की सैर पर ऐसा ही कुछ नजारा दिखता है संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना के गेट नंबर दो के आसपास दिल्ली के लुटियंस जोन जैसा ही इलाका है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बड़े हुक्मरानों का आवास। एक छोर पर विधानसभा तो दूसरी ओर राजभवन।
सुबह सुबह सैर करने वालों की भीड़। ऐसा लगता है उस छोटे से क्षेत्र में पूरा पटना आ गया हो। हर तरह के लोग। बच्चे, बुढ़े, नौजवान और महिलाएं सभी अपने अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग। कोई गाड़ी से आ रहा है तो कोई पैदल चला आ रहा है। किसी ने वहीं सड़क के किनारे जुगाड़ू तकनीक से बैडमिंटन खेलने के लिए जाल लगा रखा है। सब को कहां मयस्सर है अदद क्लब!
सुबह सुबह अपने मालिक के साथ ही साथ ड्राइवरों की सैर भी हो जा रही है।
मजबूरी है साहब ! नौकरी निभानी है। नौकरी करने से ज्यादा महत्वपूर्ण नौकरी निभाना है। लुटियंस जोन का इलाका है इसलिए पुलिस वाले भी मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी बजाते हुए दिखाई देते हैं।
जिसने जैविक उद्यान में घूमने के लिए पास बनवा रखा है, वो एक अलग ही वर्ग है। थोड़ा अलग सा दिखने वाला वर्ग। कइयों के लिए सुबह की सैर से ज्यादा महत्वपूर्ण है सामाजिक बनना और सामाजिकता निभाना। शिद्दत से सैर करने वाले आपको सामान्य रास्ते से अलग दिख जाएंगे। कहीं कहीं पर समूह में सैर करते हुए लोग। जैविक उद्यान के बाहर लुटियंस जोन की सड़कों पर भी सैर करने वालों की अच्छी तादाद दिखती है।
सैर के दौरान कई तरह के रिश्ते पनपते हैं यहां पर। शादियां कराने से लेकर दफ्तरों में साहबों से काम कराने वाले सभी तरह के लोग यहां मिल जाते हैं। व्यवसाय संबंधी छोटी मोटी बैठक तो बस यहीं पर चाय की चुस्कियों के बीच हो जाती है। अगर आप किसी एक जगह पर लगातार सैर पर जा रहे हैं तो आपके चाहने और ना चाहने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। आते जाते हुए एक संबंध तो स्थापित हो ही जाता है जिस प्रकार मुंबई के लोकल ट्रेन में अगर आप कुछ दिन तय समय और तय डिब्बे में यात्रा करते हैं तो औपचारिक रिश्ते तो पनप ही जाते हैं।
सैर के बाद समूह में बैठे हुए लोग चाय की चुस्कियों के बीच वैश्विक राजनीति पर चर्चा करते हुए। बाजार भी यहां पर सजा हुआ है। कोई हर्बल चाय बेच रहा है तो कोई ओट्स बेच रहा है। कहीं पर किसी ने इडली तो कहीं किसी ने पोहा ( चूड़ा से बना खाद्य पदार्थ ) की दूकान लगा रखी है। कोई ऑर्गेनिक जूस का दुकान सजाए बैठा है तो कहीं पर गाड़ी में अपने खुद के बनाए हुए घरेलू उत्पाद बेचते हुए कोई अम्मा है। सब्जी और फल बेचने वाले भी अपनी अपनी दूकान सजा बैठे हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को लेकर सभी के अपने अपने दावे, पर इनमें से कोई भी सैर पर नहीं है और ना ही अपने अपने उत्पादों को अपने पर इस्तेमाल कर रहा है। अजीबोगरीब है यह दुनिया और इसके खेल।
आखिर जैसे – जैसे हमारी जीवन शैली में परिवर्तन आता गया हमने कैप्सूल कोर्स की तरह जिंदगी को एक अलग ही अंदाज में जीना शुरू कर दिया। उसे एक रास्ते पर ला छोड़ दिया आगे बढ़ने के लिए। अब जिंदगी तो अपने रास्ते पर चल पड़ी है और हम हैं कि ना तो उसका पीछा कर पा रहे हैं, और ना ही कदमताल। करें तो करें क्या। यही तो सुबह सुबह की सैर को और भी निराला बनाती है।
निसंदेह फिटनेस के प्रति जागरूकता, Liasoning, और उपभोक्तावाद का मिला – जुला रूप है,ये Morning Walk
Manish Bhai, the contents r very good. U have covered almost everything. One or two more things I have noticed in Patna that these days many students are doing the preparation for competitive examinations in open field during the morning walk of others. Also, sales teams of various companies r using the hour of morning walk to decide the strategy for the day. Further, yoga has become a part of morning walk.
The above r my personal observations.