रविवारीय: सप्ताहांत में सफारी
अचानक से कार्यालय में बैठे बैठे हमने प्लान किया कि सप्ताहांत में कहीं निकला जाए। मौसम भी अब थोड़ा मेहरबान हो चला था। अब देर किस बात की? निकल पड़े हम दोस्तों के साथ घूमने के लिए दुधवा नेशनल पार्क।
बाघों के लिए जाना जाता है दुधवा नेशनल पार्क। अन्य जानवर भी है यहां, पर मुख्यत: यह नेशनल पार्क बाघों के लिए मशहूर है। शाम , कार्यालय में हम लोगों ने प्लान किया और सहमति बनी कि क्यों नहीं रात में ही निकल चला जाए। बस, हम सभी निकल पड़े दुधवा नेशनल पार्क की ओर।
लखनऊ से करीब – करीब सवा दो सौ किलोमीटर के आसपास की दूरी पर स्थित है दूधवा नेशनल पार्क। लखनऊ से निकल सबसे पहले हम सीतापुर पहुंचते हैं। सीतापुर पहुंचते -पहुंचते रात के ग्यारह बज चुके थे। हम लोगों ने वहां खाना खाया और तय किया कि रात्रि विश्राम हम लखीमपुर खीरी में करेंगे। लखीमपुर खीरी पहुंचते हुए हमें लगभग एक बज चुके थे। रात्रि विश्राम के बाद सुबह – सुबह नाश्ते के उपरांत हमारी सवारी अब दुधवा नेशनल पार्क की और निकलने को तैयार थी। यहां से दूधवा की दूरी लगभग अस्सी किलोमीटर है। बिल्कुल नेपाल की सीमा से लगता हुआ क्षेत्र। तराई का इलाका। नेशनल पार्क से नेपाल की सीमा ‘ गौरी फंटा ‘ करीब पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर है।
दुधवा नेशनल पार्क में जीप सफारी की बुकिंग ऑनलाइन होती है और जब हम लोगों ने ऑनलाइन देखना शुरु किया तो समझ ही नहीं आया कि इतने वेवसाईट में से ऑफिशियल वेबसाइट कौन सी है। खैर, ऑफिशियल वेबसाइट का पता चला और जब हम वहां पहुंचे तो मालूम पड़ा कि जीप सफारी के लिए उस दिन कोई जगह ख़ाली नहीं है।
जैसा कि हमने पहले ही बताया कि बस हमें कहीं चलना था सप्ताहांत में तो चल पड़े। पहले से कुछ प्लान किया ही नहीं। सोचा रास्ते में चीजें आती जाएंगी और हम उसे अपने हिसाब से निपटाते चलेंगे।
चलिए अब हम लोगों ने जुगाड़ तकनीक का सहारा लिया। अब हम ऑफिशियल वेबसाइट से हट कर गूगल पर मौजूद अन्य वेबसाइट पर संभावनाएं तलाश करने लगे। बड़ा ही सुखद आश्चर्य हमें तब हुआ जब हमें जीप सफारी की बुकिंग और वह भी ऑनलाइन मिल गई।ऑफिशियल वेबसाइट पर बुकिंग ना रहने के बावजूद भी तथाकथित प्राइवेट ऑपरेटर्स सफारी की व्यवस्था कर देते हैं और वह भी आधिकारिक।
हमारी अब जीप सफारी की बुकिंग हो गई। हम सभी अब बड़े उत्साहित थे। तीन घंटे की सफारी, जंगल के बीच में तीन घंटे प्रकृति और मित्रों के साथ बिताना। हम सभी सोचकर ही रोमांचित हो रहे थे। शुरुआत में कुछ छोटे – मोटे जानवर मिलते चले गए, पर हमारा तो ध्यान लगा हुआ था कब जंगल के महाराज के दर्शन हों। हमें ऐसा लग रहा था कि अभी अचानक से महाराज सामने आएंगे और पोज़ देते हुए कहेंगे भाई जितना फोटो निकालना है निकाल लो , मैं आ गया हूँ। पर, ऐसा कहीं होता है भला? यह एक महज़ संयोग होता है कि महाराज से आपका आमना सामना हो, उनके दर्शन हों जाएं। घूमते हुए कभी आपके सामने आ जाएं। भाई उनकी भी अपनी जिंदगी है। अपने मिज़ाज हैं। क्यों आपकी मर्ज़ी के अनुसार चलें वो।
हमें सफारी के दौरान प्रवासी पक्षियों से मुलाकात हुई। तस्वीरें लिए हमने उनकी। पानी में तैरते और अठखेलियां करते हुए उदबिलावों को भी हमने अपने अपने कैमरे में कैद किया, पर आंखें तो हमारी महाराज को ही ढूंढ रही थी। हमारे लिए तो क्या, वहां आए सभी लोग बड़ी आतुरता से और शिद्दत से महाराज का इंतजार कर रहे थे। तीन घंटे की सफारी अब खत्म होने को थी। अब भी हम आशान्वित थे, पर हमें निराशा ही हाथ लगी। साहब ने मन बना लिया था। सप्ताहांत के आराम में कोई खलल नहीं। महाराज के दर्शन तो हमें नहीं हुए झुंड में घूमते हुए जंगली सुअरों से हमारा वास्ता पड़ा। कुछ वन मुर्गी और मुर्गे दिखाई दिए। जितने भी लोगों ने जीप सफारी की बुकिंग की थी सभी निराश थे। बाघ महाराज के दर्शन किसी को भी नहीं हुए। हम सभी सप्ताहांत में वहां गए थे। महाराज ने भी अपना सप्ताहांत मनाया। घर से निकले ही नहीं।
हां एक बात ज़रूर हुई। प्रकृति के बीच, जहां किसी भी तरह के प्रदूषण का नामों निशान नहीं होता है, हमने तीन घंटे गुणवत्ता पूर्ण जीवन बिताए। जब आप ऐसी जगह पर होते हैं तो दिल चाहता है वक्त थोड़ा ठहर जाए। पर, ऐसा कहां होता है भला वक्त का पहिया तो अनवरत चलता ही रहता है । बस ग़ालिब दिल को बहलाने के लिए यह ख़्याल अच्छा है बाकि तो सब प्रारब्ध है। सृष्टि अपने तरीके से गतिमान है।
सुंदर व्याख्या। साप्ताहिक अंत में अनायास ही बनाया गया कार्यक्रम का रोचक वर्णन। छवियां भी बहुत अच्छी हैं।।
मै काफी छोटा था साल लगभग 1966 से 1969 के दरम्यान तो कई बार हजारीबाग नेशनल पार्क गया।फिर DTRTI बनने के बाद भी एक बार गया पर छोटे जानवर तो मिले परन्तु बाघ नहीं दिखा।एक उम्रदराज Forest Guard से बात करने पर पता लगा की उन्हे भी दिन मे 6 -7 महीने मे ही बाघ का दर्शन होता है।रात मे भी बमुश्किल ही दिखाई देते है।
Wonderful
बेहतरीन यायावरी,