रविवारीय
– मनीश वर्मा ‘मनु’
एंजियोप्लास्टी
कल सुबह दफ़्तर के लिए थोड़ी देर हो गई थी। क्या करें घर से निकलते ही स्कूल बस के काफिले में गाड़ी फंस गई। ट्रैफिक जाम में गाड़ी फंसते ही ब्लड प्रेशर थोड़ा असामान्य हो जाता है। सामने बॉस का चेहरा अचानक से घुम जाता है। उनकी प्रतिक्रिया कैसी होगी और हमारा जवाब क्या होगा।बस, दिमाग वहीं अटक जाता है।
आजकल पड़ रही तेज़ गर्मी की वज़ह से स्कूलों की छुट्टियां जल्दी हो रही हैं। काफिले की वजह से हुई ट्रैफिक जाम से किसी तरह निकल तेजी से दफ्तर को जा रहा था। रास्ते में लगभग तीन साढ़े तीन किलोमीटर का एक फ्लाईओवर आता है। जैसे ही मैं फ्लाईओवर के बीच में पहुंचता हूं तो क्या देखता हूं? देखा एक महिला जो हेलमेट पहने हुई है, उसकी स्कूटी फ्लाईओवर के लेफ्ट साइड की ओर लगी हुई है और वो महिला वहीं फ्लाईओवर के रेलिंग से सट कर किसी तरह बैठी हुई है ।
दस सवा दस का वक्त रहा होगा। तेज़ गर्मी और धूप बिल्कुल तीखी होकर सर पर पड़ रही थी। हालांकि गाड़ी में एसी चलने की वज़ह से हालात थोड़े सामान्य थे। पर, किसी न किसी रूप में गर्मी की प्रचंडता का आभास तो हो ही जाता है। लोग-बाग बस समय पर दफ्तर पहुंच सकें इस बात को लेकर भागे जा रहे थे। दो पहियों और चार पहियों पर सवार लोगों का हुजूम चला जा रहा था। गाड़ियां निकलती जा रही थी।
क्यों बैठी है इस तरह से? अचानक से मेरे ज़ेहन में कई सवाल कौंध गए। मेरे मन में एक स्वाभाविक उत्सुकता हुई। आखिर यह महिला इस तरह से क्यों बैठी हुई है। जब मेरी गाड़ी थोड़ी नजदीक पहुंची तो मैंने देखा उसकी स्कूटी का अगला चक्का पंक्चर हो गया था। शायद वह किसी अपने को फोन पर इस बात की सूचना दें इंतजार कर रही होगी । कोई आए और उसे इस मुसीबत से निकाल ले।
वाकई गाड़ी चाहे चार चक्के की हो या फिर दो चक्के वाली, पंक्चर तो अपने आप में मुसीबत है। खासकर, महिलाओं के लिए। भरी दुपहरिया हो, रात का वक्त हो या फिर सामान्य सी बात। कहां कोई डिक्की में रखे हुए औजारों से खेलता रहे? औजारों से खेलना जिन्हें पसंद हो उन्हें यह मुबारक।
महिलाओं की बात छोड़ दीजिये। हमें भी कोफ्त होती है। हालांकि ट्यूबलेस टायर ने थोड़ी समस्या जरूर कम कर दी है। पर, मुसीबत का क्या? कभी भी टपक सकती है। अनचाहे अतिथि की तरह ।
उस महिला को इस तरह से मुसीबत में देखकर मुझे एक बात याद आई। पता नहीं इस बात में सच्चाई कहां तक है। पर, बहुतों के मुख से सुना है। शायद कहीं पढ़ा भी है। वाक्या शायद सच ही हो। सच ही होगी ऐसा मैं मानता हूं। टाटा ने आम आदमी के लिए एक सस्ती कार नैनो बनाई थी। उसके बारे में यह कहा जाता है कि जब पति पत्नी अपने दो छोटे बच्चों के साथ बरसात में भीगते हुए मोटरसाइकिल पर चले जा रहे थे तब इस घटना पर हमारे टाटा परिवार के मुखिया की किसी तरह नज़र पड़ गई। इस घटना ने उन्हें थोड़ा झकझोरा। परिणाम बहुत जल्द ही आपके सामने था। उन्होंने आम आदमी के लिए एक छोटी सस्ती सी कार नैनों की परिकल्पना की। नैनो आई भी पर शायद उतनी सफल नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी । भाई हमारे पास तो मुकाबला करने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही गड्डी है। मारूति 800 । बस नैनो वहीं गड़बड़ा गई। लोगों ने उसे मारूति के मुकाबले खड़ा कर दिया।
खैर! मैं भी परिकल्पना करने लगा। सोचने लगा, काश! इस भद्र महिला को इस तरह से परेशान बैठे हुए कोई टाटा, कोई महिंद्रा, कोई बजाज, कोई अंबानी, और अदानी देख ले और वह उनकी परिकल्पना में आ जाए कि रास्ते में अगर दो पहिए की गाड़ी का टायर अगर पंक्चर हो जाए और आसपास कुछ ना हो तो एक महिला किस तरह से मुसीबत झेलती है। तब शायद, कायापलट हो सकता है।
मुझे तो एक वक्त के लिए ऐसा लगा की कहीं मेरे ही अंदर इन सारे आदरणीय महानुभावों का समावेश हो जाए। मेरी सोच, मेरी क्षमता इतनी विकसित हो जाए। ताकि मैं इन पर, इन बातों पर, इस तरह की घटनाओं को देखते हुए एक ‘आर एंड डी’ कर सकूं । बचपन में हमारे साइकिल मे भी ट्यूबलेस टायर लगा था।पर वो साइकिल बहुत छोटी उम्र के बच्चों के लिए हुआ करती थी। कुछ उसी तरह की व्यवस्था हो सकती है। खैर!
साथ ही साथ एक बात और मेरे ज़ेहन में आई क्यों नहीं हमारा स्थानीय प्रशासन जिसके जिम्मे यातायात व्यवस्था से संबंधित विभाग है इस तरह के लंबे फ्लाईओवर या स्ट्रेच पर कुछ समय के अंतराल पेट्रोलिंग करे ताकि इस तरह की समस्याओं को देखकर चाहे वह महिला हो या पुरुष उन्हें माकूल सुविधा उपलब्ध करा सके। टायर का पंक्चर होना तो आम बात है। कभी कभी तो गाड़ियां भी खराब हो सकती हैं। अक्सर देखने को मिलता है। बीच सड़क पर ब्रेकडाउन। अगर समय पर उन्हें ना हटाया जाए तो ट्रैफिक जाम की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अक्सर होती है।
मैंने अक्सर देखा है इस तरह के लंबे स्ट्रेच पर गाड़ियां अगर खराब होती हैं या फ़िर बीच में अटक जाती हैं तो ट्रैफिक जाम हो जाता है।
दो-तीन दिन पहले की ही बात है । उसी फ्लाईओवर पर एक गाड़ी में शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लग गई। परिवार तो सुरक्षित बाहर निकल आया पर गाड़ी जलकर ख़ाक हो गई। दो-तीन दिन से मैं देख रहा हूं ख़ाक हुईं गाड़ी उसी जगह पड़ी है। पड़ी है तो पड़ी हुई है। कोई ख़ोज ख़बर लेने वाला नहीं।
एक एंजियोप्लास्टी की जरूरत है। कहीं न कहीं ब्लाॅकेज तो है। कोई तो इस बारे में सुधि ले।