रविवारीय: ओ ज़िंदगी!
20 वर्ष की आयु और साथ में 30 वर्ष का अनुभव यही तो उम्र है, जहां से ज़िंदगी की असल शुरुआत होती है । अब तक तो आपने वो ज़िंदगी जी है, जिसे हर कोई जीता है। हर किसी की ज़िंदगी में यह वक्त आता है। थोड़ा ऊंच – नीच के साथ हम सभी इसे निभाते हैं। आपने भी अपने पारिवारिक दायित्वों के साथ ही साथ सामाजिक दायित्वों को भी निभाया है। कोई नया काम नहीं किया है।
सुबह होते ही मां का बच्चों को उठा कर उनके लिए उनका लंच बॉक्स पैक करने के साथ ही साथ उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना। बच्चों के बाद पति के लिए फिर से वही काम। बच्चों से तो थोड़ा इधर उधर करके निपटा जा सकता है, पर पतिदेव की उम्मीदें और फरमाइशें कहां पीछा छोड़ती हैं। अगर दोनों ही लोग नौकरी करने वाले हुए तब तो बस भगवान ही मालिक। पिता का बच्चों को स्कूल छोड़ना या फ़िर बस स्टॉप पर खड़े होकर स्कूल बस का इंतजार करना। पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग के लिए अपने कार्यालय को एवं अपने बॉस को किसी भी तरह से मैनेज करते हुए बच्चों के रिपोर्ट कार्ड पर टीचर के सामने एक उम्मीदवार की तरह साक्षात्कार के लिए बैठना गोया हम बच्चे की रिपोर्ट कार्ड नहीं खुद कितने सक्षम अभिवावक हैं, उन्हें यह बताने के लिए आए हैं।
टीचर की सिर्फ़ और सिर्फ़ सुनना बिल्कुल वन वे ट्रैफिक की तरह। कुछ कहने की गुंजाइश नहीं पता नहीं कब यह फरमान जारी कर दिया जाए कि अगर आप स्कूल की पढ़ाई से संतुष्ट नहीं हैं तो आप अपने बच्चे को विथड्रॉ कर सकते हैं।आप कितने भी तीसमारखां क्यूं ना हों यहां आपकी घिग्घी बंधी हुई रहती है। कुछ भी इधर उधर हुआ नहीं कि सारा ठीकरा आपके ऊपर ही फोड़ा जाएगा।
अब एक जिम्मेदारी से निपट आगे बढ़ते नहीं हैं कि दूसरा मुंह बाए खड़ा हो जाता है। सब की, परिवार की एवं समाज की, कुछ ना कुछ अपेक्षाएं आपसे होती हैं । इन सबसे उबरते हुए कब आप अपने बीस वर्ष की उम्र और तीस वर्षों का अनुभव प्राप्त कर पचास की दहलीज पर आ खड़े होते हैं, पता ही नहीं चलता है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि आपकी जिम्मेदारियां अब खत्म हो गई हैं, पर जो सुबह से शाम तक भागम भाग की जिंदगी थी उससे कहीं ना कहीं आपने निजात पा लिया है। अब गदहे को देख कर (मुझे माफ़ करें ) एक सुकून सा महसूस होता है, हां तरस तो उस बेचारे की ज़िंदगी पर पहले भी आता था और अब भी आता है। बस भावनाओं में थोड़ा फ़र्क आ गया है। पहले हमराही थे , अब राहें थोड़ी जुदा हो गई हैं।
चलिए हम फ़िर से अपने जिंदगी की शुरुआत करने जा रहे हैं। ऐसा नहीं कि मुझे नई ज़िंदगी मिली है, पर पचास के बाद की ज़िंदगी का खुशनुमा अहसास, और चेहरे की रंगत सब कुछ बयां कर जाती है। अब आप नियंत्रित, नियोजित और संयमित जीवन जो जीने लगे हैं। घर का मुखिया और समाज में एक विशिष्ट दर्ज़ा आपको एक अलग ही अनुभव दे रहा है। अचानक से आप अब आम से खास हो गए हैं।
सुबह की शुरुआत अब पहले की तरह नहीं होती है। अब सुबह की शुरुआत पार्क में दोस्तों के साथ टहलते हुए होती है। यह सारे दोस्त हमारे नए नए बने होते हैं। पार्क से आने के बाद ‘अजी सुनती हो’ की हांक लगाते हुए चाय की फरमाइश फिर अपनी अपनी ‘अजी’ के साथ चाय पर चर्चा फिर आगे की देखी जाएगी । अब तो वक्त भी है और खर्चने को कुछ पैसे भी, तो घर की साफ-सफाई के लिए अलग महरी, और खाना बनाने के लिए अलग।
यह उम्र आपके शौक को जीने की होती है। कुछ नयी शुरुआत करने की होती है। अब आप रिस्क ले सकते हैं। कुछेक अपवादों को छोड़कर बच्चों ने अपना रास्ता पकड़ लिया है। वो आपकी मेहनत से उनके लिए तैयार किए गए रास्ते पर चल पड़े हैं अपना मुकाम पाने को। अब आप कुछ हद तक अपनी मनमानी कर सकते हैं। जितना चाहें अपने आप को वक्त दे सकते हैं । अपने आप को अब आप ढूंढ सकते हैं जो पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों के बीच कहीं गुम सा गया था।
ज़िंदगी जीने का मज़ा तो अब आ रहा है। अचानक से ज़िंदगी बेफिक्री वाली हो गई है । हां जिम्मेदारियां तो अब भी हैं, पर उनकी प्रकृति थोड़ा बदल गई है और हम उन जिम्मेदारियों को उठाने के लिए पहले से कुछ ज्यादा सक्षम और जिम्मेदार हो गए हैं। पर जरा ठहरिए। इतने बेफिक्र भी मत होइए। यही तो उम्र है जब आप थोड़े से बेफिक्र क्या हुए बीमारियों ने आपसे अपनी अदावत निकालनी शुरू कर दी। तो, श्रीमान ज़िंदगी के मजे लें। बेफिक्री के साथ लें, पर थोड़ा सतर्क रहते हुए।
Bilkul sahi PT meet ka100%sahi kathan saath hi kaise Umar guzar Jaa Rahi hai pata hi nhi chal pata hai zimmedari badh jati hai aur hm khas insaan bhi ban jate hain
Very apt
Good analysis about life style in different phases of our life span. The period between 50’s and 60’s may be called silver part of our life but golden period comes betw 60’s and 70’s when we re-attire ourselves after our retirement from job. Of course the food habits, physical fitness and social balance should be main foci in this Golden period of our life.