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December 6, 2025

3 thoughts on “रविवारीय: निठल्ले की डायरी की प्रासंगिकता

  1. श्री वर्मा जी ने हरिशंकर परसाई की व्यंग्यात्मक रचना “निठल्ले की डायरी” के माध्यम से समाज के एक कटु सत्य, जिसमें ईमानदारी और विनम्रता को कमजोरी समझा जाता है, को उजागर किया है। यह कहानी दरोगा के चरित्र के माध्यम से सत्ता और सामाजिक स्वीकृति के द्वंद्व को बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। इस व्यंग्य में परसाई जी ने नौकरशाही, भ्रष्टाचार और समाज की मानसिकता पर तीखा प्रहार किया है। दरोगा का प्रारंभिक स्वरूप आदर्शवादी है, लेकिन समाज उसे स्वीकार नहीं करता। उसे अपने आदर्शों को त्यागकर उसी कठोर और भ्रष्ट वातावरण में खुद को ढालना पड़ता है, जिसमें बाकी अधिकारी काम करते हैं। यह परिवर्तन केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की विफलता को दर्शाता है। कहानी का अंत पाठक को असमंजस और चिंतन की स्थिति में छोड़ देता है।
    श्री वर्मा जी का यह ब्लॉग हास्य या मनोरंजन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सामाजिक मूल्यबोध पर एक गहरी चोट भी करता है। सत्ता और पद की स्वीकृति के लिए व्यक्ति को अपनी मूलभूत मानवीयता को त्यागना पड़ता है—यही सबसे बड़ी विडंबना है।

  2. बहुत ही अच्छा टॉपिक, जिस पर कितनी ही चिंतन की जाए अंततः अनुतरित ही रहेगा एवं यह हमारे समाज में व्याप्त अजूबे व्यावहारिकता को दर्शाता है।

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