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December 6, 2025

1 thought on “रविवारीय: कोटा का दर्द पढ़ाई से परे

  1. कोटा : एक प्रवेश द्वार या दबाव का गलियारा? — ब्लॉग के माध्यम से श्री वर्मा जी ने हम सभी को आइना दिखाने का प्रयास किया है। कोटा एक साधारण शहर के स्थान पर आज सपनों की एक ऐसी मंडी बन गया है जहाँ हर मोड़ पर सफलता की कीमत तय होती है और हर दीवार पर उम्मीदों का बोझ लटकता है। यहां सफलता डॉक्टर या इंजीनियर रूपी एक विशेष ढांचे में ढाली जाती है। परन्तु दूसरा पहलू यह भी है कि इस सांचे में फिट न बैठ पाने वाले लाखों बच्चों की अनकही कहानियाँ हैं, जो चुपचाप दम तोड़ देती हैं। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते थे, उस उम्र में अब वे स्कोर और रैंक के बोझ तले कुचले जा रहे हैं। अभिभावकों की आकांक्षाएं जब बच्चों की इच्छाओं को निगलने लगती हैं, तब शिक्षा एक सहज विकास नहीं, बल्कि बोझिल अनिवार्यता बन जाती है। मा0 सुप्रीम कोर्ट का कोटा पर सवाल उठाना केवल एक न्यायिक टिप्पणी नहीं, अपितु एक सामाजिक चेतावनी है। यह प्रश्न केवल राजस्थान सरकार का नहीं, हर उस माता-पिता, शिक्षक और संस्थान का है जो “सपनों की फैक्टरी” चलाने में लगे हैं।
    समय आ गया है कि हम कोटा को केवल एक कोचिंग हब नहीं, बल्कि भावनात्मक और रचनात्मक विकास का केंद्र बनाने की पहल करें। शिक्षा का अर्थ सफलता की एक ही परिभाषा तक सीमित नहीं हो सकता। कोटा का हर छात्र केवल एक रैंक नहीं, एक जीवन है, उसकी मुस्कान, संघर्ष और आकांक्षाएं हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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