रविवारीय: हमारी हवा, हमारी ज़िम्मेदारी
– मनीश वर्मा ‘मनु’
आज सुबह जैसे ही आँखें खुली, खिड़की खोलते ही हवा में एक तीखी चूभती हुई महक ने स्वागत किया, वो भी बिना पूछे। यह खुशी भरी ताजगी नहीं थी, बल्कि प्रदूषण की चुभन थी।
हम अक्सर कहते हैं कि “हवा साफ़ नहीं है,” पर , क्या हम सच में जानते हैं कि यह प्रदूषित हवा हमारी ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बन गई है?
प्रदूषण अब सिर्फ़ अख़बारों की सुर्ख़ियाँ नहीं रही बल्कि यह तो हमारी साँसों में मिल गया है, हमारी ज़िंदगी में जबरन घुस गया है और हमारी रोज़मर्रा में एक नासूर के तरह पैठ गया है । शहरों के गलियों में धुएँ की परतें और गाड़ियों की बेतहाशा कतारें। हम रोज इनके साथ उठते बैठते और सोते हैं।
क्या हमने कभी पूछा कि हमारी ज़िम्मेदारी कितनी है?
हवा भी बोल सकती है अगर कोई सुनने वाला हो।अब तो हवा भी कहने लगी है – मैं थक गई हूँ। पूछ रही है हमसे कि उसे स्वच्छ रखने में हमारी ज़िम्मेदारी कितनी है?
आज तो हालत यह है कि हम अपने शरीर के ही दुश्मन बन ना उसे साफ़ पानी और ना ही स्वच्छ हवा दे सकते हैं और एक लालची की तरह प्रकृति का अनियंत्रित दोहन कर कहते हैं कि हम अमीर बन गए!
धूल, धुआँ, और गंदगी भरे छोटे-छोटे कण जिन्हें हम नंगी आँखों से देख भी नहीं सकते हैं आज हमारी ज़िंदगी को तबाह कर रही हैं और हम त्रस्त हो रहे हैं सर्दी-खाँसी…और पता नहीं कितनी सारी महामारियों से।
हमारी हवा, हमारी ज़िम्मेदारी है – हम सभी की और ना कि सिर्फ़ और सिर्फ सरकार की है । क्या हमारी कोई जबाबदेही नहीं बनती है? हर बार आप जिम्मेदारी सरकार से जोड़ते हो ? पर जहाँ धुएँ की मोटी परत घर की छत तक आती है, वहाँ हम सबकी रोज़मर्रा की आदतें इसका मूल कारण तो ये हैं:
- धड़ल्ले से हम गाड़ियों को यूज़ करते हैं – तो प्रदूषण बढ़ता है
- अधिक मिट्टी के तेल/कोल का इस्तेमाल – धुआँ बनता है
- कचरा खुले में जलाते हैं – ज़हरीली गैसें फैलती हैं
क्या यह सच नहीं है ?
सभी अमीर बनना चाहते हैं और बन भी रहे हैं पर किस तरह? प्रकृति से दुश्मनी कर के? उसका दोहन करके और और वातावरण को प्रदूषित कर के ?आज स्वच्छ हवा एक कल्पना ही लगती हैं। अभी भी समय है कि हम हम वास्तविकता को बदलने का प्रयास करें।
जरा सोचिए, साफ़ हवा और खुला नीला आसमान किसे नहीं चाहिए । किसे नहीं चाहिए साफ सुथरी खिड़कियां और ऐसा शुद्ध वातावरण जिसे हमारी अगली पीढ़ी भी साँस ले सके।
हम में से हर कोई थोड़ा-थोड़ा बदल कर बड़ा परिवर्तन ला सकता है। पैदल चलना, साइकिल चलाना, कचरा जलाने से बचना, हर घर के पास कम से कम एक पेड़ लगाना, प्लास्टिक, धुआँ और अनावश्यक संसाधन उपयोग कम करना। ये छोटे-छोटे कदम आज की ज़रूरत हैं, भविष्य की चाहत नहीं।
प्रदूषण सिर्फ़ “एक विषय” नहीं है, यह हमारी साँसों के साथ खिलवाड़ है, हमारी ज़िंदगी में फैला जहर है।हमारी स्वार्थी ज़िन्दगी, गैर ज़िम्मेदाराना रवैया और हमारी सीमित समझ का प्रतिबिंब है यह।हम संवेदनहीन मुर्दे हो गए हैं पर हम यूँ ही मुर्दे की तरह नहीं पड़े रह सकते। पर हमें खुद ही जागना होगा और औरों को जगाना होगा इस ज़हरीली हवा को पुन: जीवनदायिनी बनाने के लिए। हवा जीवन देती है पर हमारी लालच ने उसे काल का स्वरुप दे दिया है। सिर्फ सरकार और व्यवस्था को दोष नहीं दे सकते, हमें हवा को साफ़ करना होगा, न कि सिर्फ़ दोषारोपण करना।
और याद रखें- बदलाव तभी संभव है, जब हम खुद बदलें।
