रविवारीय: एक्सप्रेसवे का सफर
आप एक्सप्रेसवे पर बस चले जा रहे हैं। अपने ज़िगर और गाड़ी की क्षमता के अनुसार स्पीड थोड़ी घटती बढ़ती है। वैसे भी एक्सप्रेसवे पर आपको यह भी देखना होता है कि गाड़ी आपकी न्यूनतम गति से उपर ही रहे। कार रैली की तरह होती है आपके गाड़ी की गति।
एक्सप्रेसवे का सफर कहां आपको कुछ ज्यादा सोचने का मौका देता है। आप तो बस चले जा रहे होते हैं एक्सप्रेस वे की खुबसूरती की बातें करते हुए। आपके चारों ओर खुला आसमान होता है। माहौल बिल्कुल ही शांत। कभी कभी गाड़ियों की आवाज ही आपकी तंद्रा भंग करती है। हां, एक बात और यहां आपको गाड़ियों के हाॅरन की आवाज लगभग नहीं के बराबर सुनाई देती है।
खैर! एक्सप्रेसवे की जिंदगी भी कोई जिंदगी है? सड़कों पर ना ही कोई स्पीड ब्रेकर और ना ही कहीं कोई ट्राफिक जाम की समस्या। जब तक जिंदगी में समस्या ना हो, बाधाएं ना आए फिर जिंदगी जीने का मजा ही क्या है?
पर जब जिंदगी अपने सामान्य ढर्रे पर चल रही होती है तो फिर किसी भी प्रकार की कोई चिंता नहीं कोई फ़िक्र नहीं। आपके पास कुछ भी अलग से सोचने का वक्त भी नहीं होता है।
सड़कों का सफ़र तो जिंदगी जीने का एक फलसफे की तरह ही है। कहीं ट्रैफिक जाम, कहीं स्पीड ब्रेकर। सड़कों पर ट्रैफिक जाम में फंसे तो ही हमें भगवान याद आते हैं।
हम सबने देखा है जब तक आपकी जिंदगी सामान्य ढर्रे पर चल रही है भगवान को हम कहां याद करते हैं। तर्कों के माध्यम से हम उन्हें अपने से दूर रखने की कोशिश करते हैं, पर जैसे ही किसी भी प्रकार की कोई समस्या आती है हम भगवान नाम की माला जपना शुरू कर देते हैं।
छोटी सी छोटी समस्याएं भी हमें भगवान के काफी करीब ले आती हैं।आध्यात्मिक हो जाते हैं हम। गहरा नाता जुड़ जाता है आध्यात्म से हमारा।
जब हमें कोई चीज आसानी से मिल जाती है तो हमें उसकी कीमत कहां पता चलती है? हमें ऐसा लगता है कि जो कुछ हमें मिला हम उसके हकदार थे। कुछ भी अलग से हमें नहीं मिला। हमें तो वो चीज़ मिलनी ही थी, पर अगर जो चीज़ आपको मिलनी है और उसमें देरी हो रही है तो आप मंदिर में जाकर समस्त भगवान जो वहां विराजमान हैं सबके सामने मत्था टेकते हैं, पता नहीं किनके आशीर्वाद से आपका काम हो जाए और कौन भगवान आपसे रूष्ट हो जाएं इसलिए सबके सामने मत्था टेकना तो मजबूरी है।
आप अपने दफ्तर में देखें जब ट्रांसफर – पोस्टिंग का मौसम आता है तब सारे भगवान याद आते हैं आप सबके समक्ष मत्था टेकते हैं। वहां कोई छोटा बड़ा नहीं होता है। पता नहीं किससे अपना काम निकल जाए और कहां फंस जाए कहना बड़ा ही मुश्किल है। बाॅस के मूड तक का ख्याल रखने के लिए भी हम बड़े ही शिद्दत से भगवान को याद करने लगते हैं।
भगवान के अस्तित्व को बड़े से बड़े वैज्ञानिक और दार्शनिकों ने भी एकदम से नकारा नहीं है । जिंदगी रूपी पथ पर हम थोड़ी दूर आगे बढ़ते हैं और अपना मंतव्य दे देते हैं। कुछ लोग हमसे भी आगे चलते हैं भगवान की तलाश में। उनकी तलाश अनवरत जारी रहती है। एक समय के बाद उन्हें लगता है कुछ तो है तभी तो सृष्टि चलायमान है।
आप चाहे जितने ही रूपों में भगवान् को जानें यह आपकी आस्था ही है जो आपको मुसीबत में, परेशानी की घड़ी में कहीं न कहीं मत्था टेकने पर मजबूर करता है। जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया जब आप मंदिर जाते हैं।
चलिए एक उदाहरण लेते हैं। आप भोले बाबा के मंदिर जाते हैं। ऐसा नहीं होता है कि आप सिर्फ और सिर्फ भोले बाबा के ही दर्शन करें और वापस हो लें। आप उस प्रांगण में स्थापित सभी भगवान के समक्ष मत्था टेकते हैं। आपके अंदर यह विद्यमान है तभी तो आप सभी के समक्ष सभी को सर्वोच्च संस्था मान मत्था टेकते हैं। उस वक्त आपके ज़ेहन में यह बात कहां रहती है कि भगवान तो सर्वव्यापी हैं। आप तो जब तक भगवान को छू कर उनसे लिपट कर अपनी बातें नहीं कहते हैं आपको चैन कहां मिलता है।
सारी बातें मिथ्या हैं। आप इतना तो मान ही लें कि कोई तो है। बस उसी तरह आम जीवन में भी हमारे कुछ भगवान होते हैं जिनकी वक्र दृष्टि हम पर भारी पड़ सकती है। तो हे पार्थ सुख शांति और समृद्धि के लिए भगवान के समक्ष मत्था जरूर टेकें। शायद जिंदगी एक्सप्रेसवे के समान बाहें पसारे मिल जाए।
Sahi kaha sir, sukh me tark aur dukh me bhagwan yad ate hai