रविवारीय: मणिकर्णिका एक अलग ही दुनिया है
– मनीश वर्मा ‘मनु’
पहले भी कई बार बनारस आना जाना होता रहा है पर, पहली बार मणिकर्णिका से साक्षात्कार हुआ है। खरामा खरामा आगे बढ़ती हुई मोटर बोट के नाविक ने अब मोटर बोट की मशीन बंद कर दी है। अब हम आ पहुंचे हैं मणिकर्णिका घाट। मणिकर्णिका को नजदीक से देखने और जानने का मौका मिला। अलौकिक और अद्भुत अनुभूति।
मणिकर्णिका, जहां जिंदगी, जिंदगी नहीं, शायद दर्शन है। वहां पहुंचते ही और जिंदगी के बारे में आपका नजरिया बदलते बिल्कुल देर नहीं लगेगी। मणिकर्णिका का प्रभाव है शायद। मृत्यु एक नई पहचान है । एक नई जिंदगी है। वैसे भी सनातन धर्म और दर्शन में कहा ही जाता है आत्मा अजर अमर है। वह कभी नहीं मरती। बस, अपना चोला बदलती है। बस , यहां लगातार जलती हुई लाशों को देखें। गर्मी, सर्दी या फ़िर बरसात कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
मणिकर्णिका, एक अलग ही दुनिया है। एक अलग ही अनुभव है मणिकर्णिका।
आत्मा ने तो बस शरीर ही बदला है। ईश्वर ने आत्मा रूपी मशीन को किसी और जगह फिट कर दिया है। इस नश्वर संसार में अब आप, आप नहीं रहे। यहां आपकी भौतिकता खत्म हो जाती है। आपके भविष्य के विचारों और सपनों पर ना चाहते हुए भी जैसे जैमर लग गया हो। आप शून्य में विचरण करने लगते हैं। हमने ही तो सबसे पहले पूरे विश्व को शून्य की अवधारणा से परिचय कराया था ।
यहां आकर आप महसूस करेंगे। सब कुछ जैसे अचानक से ठहर गया है। आप निर्वात में भ्रमण कर रहे हैं। प्रारब्ध है। सब कुछ प्रारब्ध है। फिर आप और हम इतने परेशान क्यों ? क्यों नहीं एक छोटी सी बात को समझ पाते हैं। इतने नादान भी तो नहीं हैं हम कि एक छोटी सी बात नहीं समझ सकते। भौतिकवाद ने हमें जकड़ जो रखा है। सब कुछ समझते हुए भी हम न समझने का ढोंग करते हैं। बस अपने आप को दिलासा देते हैं।
जलते हुए अंगारों के बीच। बुझे हुए राख के ढेर के नीचे। मिट्टी था शरीर अपना, मिट्टी में मिल गया।
अब हम धीरे-धीरे गंगा की धारा के साथ एक के बाद एक घाट को पार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। गंगा की धारा भी अपने अंदाज में धीरे-धीरे बहती हुई, मानो वह भी कुछ कह रही हो। मोटर बोट के मशीन की घर्र घर्र की आवाज अब शांति में थोड़ी खलल डालती हुई। एक के बाद एक घाटों का सिलसिला साथ ही साथ बढ़ता हुआ। हर घाट की अपनी एक अलग पहचान। अपनी एक अलग कहानी। कोई इतिहास को अपने में समेटे हुए तो कोई धार्मिकता को। वैसे सभी का अपना अपना अतीत है।
घाटों का शहर बनारस। बनारस बाबा विश्वनाथ की नगरी। बाबा के त्रिशूल पर टिकी हुई।बाबा के नाम के इर्द-गिर्द घूमती हुई । बाबा नहीं, तो शायद बनारस नहीं। ऐसा ही लगता है। और सही भी है। बनारस गलियों का शहर। बनारस की गलियां मशहूर हैं।अंदर ही अंदर आप गलियों के सहारे एक छोर से दूसरे छोर पर जा सकते हैं।
शाम का समय। सूरज अपने गंतव्य की ओर धीरे धीरे बढ़ता हुआ। पर क्या इसे हम गंतव्य कह सकते हैं ? शायद नहीं। वो तो अनवरत सफ़र में ही है।
धीरे-धीरे मोटर बोट बढ़ रही है फिर से एक नए पड़ाव की ओर । वैसे भी जिंदगी एक पड़ाव ही तो है।
Beautiful description of Manikarnika ghat.
अद्भुत।जीवन का सत्य।