रविवारीय: बीबी का मकबरा
आइए आज के इस रविवारीय में हम आपको लेकर चलते हैं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में जहां मुग़ल स्थापत्य कला की एक अद्वितीय कृति—बीबी का मकबरा- जिसे मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने अपनी प्रिय पत्नी दिलरास बानो बेग़म, जिन्हें श्रद्धापूर्वक राबिया-उद-दौरानी कहा जाता है, की स्मृति में सन् 1651 से 1661 के बीच बनवाया था। कहीं कहीं पर इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि इस मकबरे का निर्माण शाहजादा आज़म शाह द्वारा अपनी मां राबिया बेगम की याद में करवाया गया था।
इस मकबरे के शाहकार अतउल्लाह थे। उन्होंने ही इसका डिज़ाइन किया था। अतउल्लाह के पिताजी उस्ताद अहमद लाहौरी को विश्व प्रसिद्ध “ताजमहल” के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाता है, जबकि इस मकबरे का मुख्य वास्तुकार हंसपत राय था।
यह मकबरा औरंगाबाद (महाराष्ट्र), जिसका नाम हाल ही में बदल कर छत्रपती संभाजीनगर रख दिया गया है, में स्थित है और इसे “दक्कन का ताजमहल” भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी स्थापत्य शैली आगरा स्थित ताजमहल से मिलती-जुलती है मकबरे का मुख्य द्वार जिसे नक्कारखाना भी कहते हैं, इसकी वास्तु योजना षट्कोण के आकार की है।दो मंजिले इस इमारत में एक बड़ा मेहराब है जिसके दोनों ओर कई कक्ष बने हुए हैं। इस इमारत के कोनों के ऊपरी हिस्से पर छः छोटे छोटे मीनार बनी हुई है। मकबरे के प्रवेश द्वार पर लगभग साढ़े चार मीटर की ऊंचाई का सागवान की लकड़ी का दरवाजा बना हुआ है। मकबरा एक ऊँचे, चौकोर चबूतरे पर स्थित है, जो लाल बैसाल्ट पत्थर से निर्मित है। इस चबूतरे के चारों ओर जालीदार रेलिंग लगाई गई है, जो इसे एक विशिष्ट स्थापत्य सौंदर्य प्रदान करती है।
पूर्व, उत्तर, दक्षिण और पश्चिम—चारों दिशाओं से चबूतरे पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई थीं, लेकिन पश्चिमी दिशा का मार्ग अब बंद हो चुका है क्योंकि वहां हैदराबाद के निज़ाम द्वारा एक मस्जिद का निर्माण कराया गया था। मकबरे के चारों कोनों पर अष्टकोणीय मीनारें हैं, जो स्वतंत्र रूप से खड़ी हैं। इन मीनारों के शिखरों पर छोटे गुंबदाकार मंडप बने हैं। मीनारें विशेष रूप से इस ढंग से बनाई गई हैं कि वे थोड़ी-सी बाहर की ओर झुकी हुई प्रतीत होती हैं, मानो किसी सलामी मुद्रा में हों।
चबूतरे के ठीक नीचे, चारों दिशाओं में गुंबदाकार छतों वाले मेहराबदार कमरे बने हुए हैं, जिनके भीतरी भागों में हीरक-पत्तियों के विन्यास और ज्यामितीय व वानस्पतिक अलंकरण देखे जा सकते हैं। मकबरे की मुख्य इमारत चौकोर आकार की है। इसकी प्रत्येक भुजा पर ऊंची मेहराबें बनी हैं। दीवारों के निचले हिस्से और मुख्य गुंबद को सफेद संगमरमर से निर्मित किया गया है, जबकि मध्य भाग लाल बैसाल्ट पत्थर से बना है, जिसे चूने के प्लास्टर से ढककर संगमरमर जैसा रूप देने की कोशिश की गई है। इन दीवारों पर गचकारी के माध्यम से अलंकृत डिज़ाइन बनाए गए हैं, जिनमें मुग़ल शैली की बारीक नक्काशी, वनस्पतिक रूपांकन, और इस्लामिक ज्यामितीय आकृतियाँ प्रमुख हैं।
मकबरे का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में स्थित है, जो एक अष्टकोणीय कक्ष में खुलता है। इसी कक्ष से संगमरमर की बालकनी द्वारा नीचे भूतल पर स्थित मुख्य समाधि को देखा जा सकता है। भीतर का भाग अत्यंत कलात्मक रूप से सजाया गया है—दीवारों, मेहराबों और गुंबदों पर महीन नक्काशी की गई है। अन्य तीन दिशाओं (पूर्व, उत्तर और पश्चिम) की दीवारों में संगमरमर की जालीदार खिड़कियाँ लगाई गई हैं, जिनसे प्रकाश छनकर भीतर आता है और एक दिव्य आभा उत्पन्न करता है।
मकबरे के शीर्ष पर एक विशाल संगमरमर का गुंबद है, जिसके चारों कोनों पर चार छोटी मीनारें हैं। इन प्रत्येक मीनारों से लगी एक-एक छत्रियाँ (मंडप) भी बनाई गई हैं, जो इसे अत्यंत भव्य स्वरूप प्रदान करती हैं।
मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने से एक सीढ़ीदार मार्ग नीचे जाता है, जहाँ मुख्य कब्र स्थित है। यह कब्र संगमरमर की जाली से बने अष्टकोणीय घेरे के भीतर रखी गई है। चबूतरे के दक्षिणी भाग से लगी हुई एक और कब्र है, जिसे राबिया-उद-दौरानी की दाई की कब्र माना जाता है।
राबिया-उद-दौरानी मकबरा न केवल एक प्रेम और श्रद्धांजलि की निशानी है, बल्कि यह मुग़ल कालीन स्थापत्य कला, सौंदर्यबोध और धार्मिक समर्पण का अद्वितीय उदाहरण भी है। इसकी संरचना, अलंकरण, वास्तुशिल्प और ऐतिहासिक महत्व एक धरोहर है ।



एक khoobsoorat इमारत का पुर्ण विवरण, जिसमें उसके बहुआयामी विशेषणों का विस्तृत वर्णन शब्द शिल्प से किया है।
श्री वर्मा जी ने ‘बीबी का मकबरा’ को अपनी लेखनी से स्थापत्यकला, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इतना जीवंत बना दिया है कि शब्दों के साथ चलचित्र की अनुभूति हो रही है। यद्यपि कि इस ऐतिहासिक इमारत के बारे में मुझे अत्यल्प जानकारी है, परन्तु इस ब्लॉग के पढ़ने के उपरांत मैं कह सकता हूँ कि ‘बीबी का मकबरा’
न केवल एक स्थापत्य कृति है, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी है, जो मुगल शासन की धार्मिक, पारिवारिक और कलात्मक संवेदनाओं का जीवंत प्रतीक है।
राबिया-उद-दौरानी की स्मृति में निर्मित ‘बीबी का मकबरा’ को ताजमहल जितनी प्रसिद्धि नहीं मिली, फिर भी यह एक ऐसी विरासत है जो मुगलकलीन प्रेम और सांस्कृतिक गौरव को स्थापत्यकला के माध्यम से जीवंत करती है। यह स्मारक हमें याद दिलाता है कि प्रेम केवल काव्य या साहित्य में नहीं, पत्थरों में भी जीवंत हो सकता है।