रविवारीय: बतकही
– मनीश वर्मा ‘मनु’
चलिए आज कुछ बतकही यानि इधर उधर की बातें करते हैं । मैं हर जगह, हर बार कहता हूँ- मैं अनुभव साझा करता हूँ। आज भी करूँगा। आने वाली पीढ़ियाँ जाने तो कि हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं। हमारी पीढ़ी ने इतने बदलाव देखे हैं कि शायद ही कोई इतने बदलाव देख पाए । ढिबरी और लालटेन से लेकर आज के तमाम उन्नत तकनीक के लाइट्स के बीच दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच गई। दुनिया करवटें बदलती रही और हम बस उसे करवटें बदलते हुए देखते रहे।
हम कहते हैं पश्चिम के विकसित देशों ने अब हमारी निजता में दख़ल देना शुरू कर दिया है। पहले भी होता था तब इन्हें हम जासूसी कहा करते थे। आज इन्होंने उन्नत क़िस्म के उपकरणों के साथ हमारी निजता में दिलचस्पी के साथ ही साथ दख़ल भी देना शुरू कर दिया है। ताक -झाँक करते हुए अब नौबत यहाँ तक आ पहुँची है। इसे दूसरे शब्दों में हम ये ना कहें पारदर्शिता आ गई है।
खैर। भगवान भला करें सबका।
जब रेल इंजन का अविष्कार किया तो लोग उस वक्त कहा करते थे- अरे भागो यह इतना विशाल काला राक्षस मुँह में जिसके आग भरी हुई है, ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें निकालता हुआ, धुआँ छोड़ता हुआ चला आ रहा है। धीरे-धीरे लोगों को उसकी उपयोगिता समझ में आई । आज देखिए हमने बुलेट ट्रेन तक का सफ़र तय कर लिया है।
उसी तरह जब वाशिंग मशीन का आगमन हमारे बीच हुआ तो फिर से एक असहज स्थिति पैदा हुई। हमारी पिछली पीढ़ी इसे अपनाने को तैयार ही नही थी। बड़ी मुश्किल आई। उनका कहना था- कैसे भला यह कपड़े साफ़ कर पाएगा। और तो और यह हमें आलसी और नाकारा बना देगा।तब तक तो लोगों को आदत थी ख़ुद से कपड़े धोने की। दनादन साबुन की बट्टी कपड़े पर रगड़ी जा रही है। गर्म पानी में बड़े कपड़े मतलब चादर आदि को सोडा ( सोडियम कारबोनेट ) मिलाकर खदका (उबाल) लिया करते थे और उसके बाद ज़मीन पर पटक पटक कर साफ़ किया करते थे। दो चार धुलाई में कपड़े का जो हाल होता था, बस पूछिए मत। आज तो चादरें फटने का नाम ही नहीं लेती हैं । उसके बाद धीरे से पदार्पण हुआ डिटर्जेंट पाउडर का। सर्फ़ तो आज भी पर्याय है। जहाँ डिटर्जेंट का नाम आता है ज़ुबान से सर्फ़ ही निकलता है और लिक्विड डिटर्जेंट मतलब एरियल।
कुछ चीज़ें आपके इस तरह अपना घर बना लेती हैं कि आप उनके बिना रह ही नहीं सकते हैं।
खैर! अब फिर से आते हैं वाशिंग मशीन की तरफ़। शुरुआत में लोग इसके इस्तेमाल करने को लेकर थोड़ा असमंजस में थे। आख़िर यह घूम घूमकर कर कैसे कपड़ों पर से जमे हुए मैल को निकाल बाहर करेगा? कैसे शर्ट के कौलरों पर से ज़िद्दी दाग़ को बाहर करेगा जिन्हें हम बड़ी मुश्किल से या तो साबुन की बट्टी से रगड़ते हुए या फिर देर तक सर्फ़ में डूबोकर कर निकालते थे।
और आज आलम यह है कि इसने क्या छोटा क्या बड़ा हर घर में इसकी मौजूदगी है। बिना इसके शायद आपकी दुनिया अधूरी है । और तो और आपने तो अब कपड़े सुखाने तक की मशीन को अपने घरों में जगह दे दी है भले आपके लिए जगह कम पड़ जाए।
भाई यही तो दुनिया है। नित्य नए नये खोज हो रहे हैं। नयी नई चीज़ें आ रही हैं। हमें तो इसी बदलाव के साथ आगे बढ़ना है । कहाँ आपको पता था कि दुनिया पुरी की पुरी तरह से आपकी जेब में आ जाएगी? आपकी मुट्ठियों में समा जाएगी? पर ऐसा हुआ और आगे भी होता रहेगा। हमारी बतकही भी बदस्तूर जारी रहेगी । मैं अपना अनुभव आपसे इसी तरह साझा करता रहूँगा, आपको न चाहते हुए भी आपको फ़्लैशबैक में ले जाऊंगा।
