रविवारीय: बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय – लखनऊ के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने भैरवी ठुमरी की यह पंक्तियां तब लिखीं थीं जब अंग्रेजों ने उन्हें अपने प्रिय शहर लखनऊ से निर्वासित कर कोलकाता, तब का कलकत्ता भेज दिया था। वाजिद अली शाह का अंतिम समय कलकत्ता में ही बीता। लखनऊ उन्हें अपनी जान से ज्यादा प्यारी थी। वाजिद अली शाह की इन पंक्तियों में उनकी वेदना बिल्कुल साफ तौर पर झलकती है, पर नवाब साहब बस अब कहने को नवाब थे। अंग्रेजों के पेंशन पर आश्रित!
अमूमन बोलचाल की भाषा में ” बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय” का बिल्कुल सीधा सा मतलब है शादी के बाद बेटी विदा हो रही है। अपने पिता से कह रही है, मेरा मायका अब छूट रहा है।
शादी हालांकि किसी की भी जिंदगी का एक खुशनुमा अहसास होता है। विदाई के वक्त एक बेटी के नजरिए से जब हम देखते हैं तो एक मिक्सड फिलिंग आती है। एक तरफ अपनों से, अपने परिवार से, अपने मां बाप से,अपने शहर से, अपने आसपास से अलग होने का अहसास होता है तो दूसरी ओर अपने भावी जीवन साथी के साथ जिंदगी बिताने को लेकर आंखों में बहुत सारे सपनों को संजोना। कहीं से बिछड़ने का दुख है तो कहीं किसी से जुड़ने का एक सुखद अहसास। एक बड़ा ही खुशनुमा अहसास। बहुत सारी चीजें एक साथ हो रही हैं। आंखों के सामने से चीजें बस भागती हुई चली जा रही है। हम चाह कर भी उसे नहीं पकड़ पा रहे हैं।
मां-बाप, अपने आसपास का वातावरण, दोस्त – शहर आपको बार बार याद आ रहे हैं , पर छूटना तो तय है। आकांक्षाओं, आशाओं और आशंकाओं के साथ अब आप अपनों से दूर अपने जीवन साथी के साथ एक नई दुनिया बसाने को निकल पड़े हैं। सृष्टि के कुछ नियम ऐसे बने हुए हैं जहां हम आप चाहे जितना कोशिश कर लें, सब बेकार है। पिता ने तो अभी अभी कन्या दान किया है। उसने तो अपने ज़िगर के टुकड़े को सौंप दिया है किसी और के हाथों में। अपने दुःख को किसके साथ साझा करे। आंखों में उमड़ आए सैलाब को रोकने की एक नाकामयाब कोशिश !
तबादला – नौकरी का एक अहम हिस्सा। बिल्कुल रज्जू नाल की तरह नौकरी से जुड़ा हुआ। सभी जानते हैं, पर फिर वही बात ” बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाय ” और जब तबादला आपके गृह शहर से बाहर हो। ऐसा लगता है वाकई किसी ने आपको निर्वासन का दंड दे दिया हो। पर सभी भाव हैं। अब आप भी आशाओं, आकांक्षाओं और आशंकाओं के साथ एक नए जगह पर,नए लोगों के बीच अपने लिए एक मुकम्मल जगह तलाशने जा रहे हैं।जिंदगी तो बस चलते रहने का नाम है।
आइए कुछ आध्यात्मिक बातें करते हैं। जीवन दर्शन की बातें करते हैं। श्मशान भूमि पर चलते हैं। भाव अलग हो सकते हैं,पर यह जिंदगी का आखिरी पन्ना है, बस अब पुस्तक बंद हो गई है। किताब का आखिरी पन्ना पढ़ लिया गया है। किसी ने दो सौ पन्ने की किताब पढ़ी है तो किसी ने महज सौ पन्ने की, पर एक बात ध्यान रखें हर पुस्तक में एक आखिरी पन्ना जरूर होता है उसके बाद कहानी ख़त्म! कोई ढोल और बाजे गाजे के साथ आ रहा है तो बीमारियों से लंबे समय तक लड़ने के बाद थक कर आ रहा तो कोई बीच राह में ही जिंदगी का सफर छोड़ जाता है, पर यहां हम अपनी अपनी पुस्तक के आखिरी पन्ने को पढ़कर कहानी ख़त्म कर ही आ रहे हैं। यहां तक साथ देने वालों के चेहरे हालांकि बहुत कुछ बयान कर जाते हैं, पर यही अंतिम सत्य है और साथ आने वाले बस आपकी हद अब खत्म होती है। आप आगे नहीं जा सकते हैं। यहां पर भी अब आप, आप नहीं रहे…” बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय, चार कहार मिल मोरी डोलियां उठायें “।
Jeevan k aakhri Satya ko bahut achhe se tumne likha hai manu iske saath hi kisi ladki ka Bilkul hi naye /Anjaan jagah Jaa kar jeevan k naye Safar ka bhi qya khoob varnan kiya hai
धन्यवाद सर
Bahut acche tarah se jeewan ke kush palaon ko kaha gaya yaha … jaise ki nawab saheb ka ki wayetha … ladki ki shaadi and uski tapasya and then Kya le kaar aaye the and Kya le kaar jaoge … nicely written