रविवारीय: अतिविशिष्ट व्यक्ति बनने की चाह
– मनीश वर्मा ‘मनु’*
हम अतिविशिष्ट व्यक्ति क्यों नहीं हैं? क्या आपके ज़ेहन में यह प्रश्न नहीं आता? यदि नहीं तो माफ़ कीजियेगा, शायद आप अति विशिष्ट की श्रेणी में आते हों। दरअसल हम में से ज़्यादातर तो अतिविशिष्ट व्यक्ति बनने की चाह तो रखता ही है।
दरअसल वी. वी. आई. पी. सिंड्रोम से पीड़ित हैं हम सभी। अब देखिए ना, पैसा बराबर लग रहा है। पर, बस में पीछे की सीट पर बैठना खल जाता है। सीधे दिल पर चोट पहुँचती है। ट्रेन की सवारी कर रहे हैं और किसी कारणवश रिजर्वेशन ऊपर की सीट या फिर साइड अपर वाली सीट का मिल जाए, वैसे देखा जाए तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। पर, साहब ऐसा लगता है मानो हम देश के दोयम दर्जे के नागरिक हैं। हमारी तो कोई सुनने वाला ही नहीं है।
कभी तो लगता है कि बिल्कुल दीन हीन हैं भाई साहब हम! अब फिर देखिए ना, फ्लाइट में पीछे की पंक्ति में बैठा दिया गया। अब किस-किस को अपना दुखड़ा सुनाएँ। हमें तो कोई पूछता ही नहीं। कोई सुनने वाला ही नहीं है। इकोनॉमी क्लास के ही सही, भाई हमने भी बराबर के पैसे दिए हैं। अब अपने दिल को कैसे समझाऊँ। दिल है कि मानता नहीं! कैसे बताऊँ कि मुझे भी अति विशिष्ट व्यक्ति के रूप में सम्मान चाहिए।
कॉर्पोरेट वर्ल्ड आपकी इन समस्याओं को, यूं कहें आपके इन अरमानों को बखूबी समझता है। तभी तो कभी एकस्ट्रा लेग स्पेस के नाम पर, तो कभी प्रीमियम सीट के नाम पर आपको खुश रखते हुए अतिविशिष्ट व्यक्ति होने का अहसास दिलाते हुए आपकी जेब का कुछ बोझ हल्का कर जाता है।
आप एक भ्रम की दुनिया में जी रहे हैं। जिंदगी यह नहीं है जो आप जी रहे हैं या जीना चाह रहे हैं। जिंदगी इन सभी से परे हैं मेरे दोस्त। इसका मजा लें। इसे किसी दायरे में न बाँधें।
हाँ, पर एक बात है आम आदमी होना कभी-कभी बहुत खल जाता है। उस वक्त लगता है क्यों हम आम आदमी हैं। क्यों नहीं हमें भी अतिविशिष्ट व्यक्ति का दर्जा प्राप्त नहीं है। जब पीछे से पुलिस की हूटर बजाती हुई , किसी अतिविशिष्ट व्यक्ति की गाड़ी को स्कार्ट करती हुई महिन्द्रा थार या मारुति जिप्सी एवं उसके पीछे डंडा निकाल बैठा हुआ व्यक्ति जब डंडे के मुवमेंट को ही अपनी भाषा मान ले और आगे बैठा हुआ व्यक्ति जब माइक पर तू तड़ाक और तुम तड़ाम की भाषा का इस्तेमाल करते हुए, आपको किनारे होने का आदेश देते हुए जब निकलता है न भाई, तब वाकई महसूस होता है अपने अतिविशिष्ट व्यक्ति न होने का। ऐसा लगता है मानो किसी ने भरे चौराहे पर आपको थप्पड़ जड़ दिया हो और आप अब अपनी नजरें चुरा रहे हैं। यह आपको एक तड़प का अहसास दे जाता है।
पर, अतिविशिष्ट व्यक्ति होना, क्या यह संभव है? बिल्कुल है। नियमों को शिद्दत से फॉलो करें। संविधान में आस्था रखें। न्यायशील बनें। आप खुद में अतिविशिष्ट व्यक्ति हैं। अतिविशिष्ट व्यक्ति की परिभाषा क्या है? समान्य तौर पर यही न कि आप औरों से अलग दिखाई दें? आपकी पहचान अलग हो? आप औरों से अलग जाने-पहचाने जाएँ?
बहुत रास्ते हैं। ढेरों विकल्प हैं आपके सामने। आप कर्मों से ऑड मैन आउट हो जाएँ। दुनिया आपको नोटिस करने लगेगी। आप अतिविशिष्ट व्यक्ति हो जाएँगे। आपको चुनाव करना है। हाँ, पर एक तय बात है। ज्योंहि आप अतिविशिष्ट व्यक्ति की श्रेणी में शामिल हो गए, आपकी स्वतंत्रता तो गई समझो।
आपका अपना स्पेस खत्म हो जायेगा साहब। और तो और, आपका पारिवारिक जीवन, आपका सामाजिक जीवन, सब खत्म हो जाएँगे। आप अपने दोस्तों को शायद खो दें। अकेले हो जाएँगे आप। बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी आपको तय कर लें आप। अब तय आपको करना है। आप अतिविशिष्ट व्यक्ति हैं या नहीं।
मैंने शुरुआत में ही कहा कि यह एक सिंड्रोम है। अब गेंद आपके पाले में है अतिविशिष्टता को संविधान के दायरे में ही छोड़ दें। जहाँ इसकी जरूरत है। अपने आप को आम आदमी ही बने रहने दें। बेड़ियों में इसे न जकड़ें। जिंदगी का भरपूर मजा लें।
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