रविवारीय: आदिवासी संस्कृति की धरोहर है माता देवड़ी दिरी
– मनीश वर्मा’मनु’
राष्ट्रीय राजमार्ग 33 पर रांची से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर तमाड़ गांव में स्थित है देवड़ी मंदिर जिसे स्थानीय लोग माता देवड़ी दिरी भी कहते हैं, जो लगभग 700 साल पुराना है। इस देवड़ी मंदिर में करीब साढ़े तीन फुट ऊंची सोलह भुजाओं वाली मां काली की मूर्ति स्थापित है। सामान्यतः आठ भुजाओं वाली मां की मूर्ति ही होती हैं। यहां मां काली को सोलह भुजी भी कहते हैं। मां काली की यह भव्य मूर्ति “ओड़िशा मूर्ति कला” पर आधारित है।
इस भव्य मंदिर के बारे में किंवदंती है कि इस मंदिर को बनते हुए किसी ने भी नहीं देखा। स्थानीय लोगों ने भी बातचीत में इस बात की पुष्टि की।ऐसा माना जाता है कि पूर्व मध्यकाल में तक़रीबन 1300 ईस्वी में सिंहभूम के मुंडा राजा केरा जब युद्ध में हार गए थे तो लौटते वक्त उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की स्थापना करते ही राजा को उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया था।
एक दूसरी कहानी के अनुसार मंदिर का निर्माण ओड़िशा के चमरू पंडा से जुड़ा है, जिन्हें यहां के राजा ने उन्हें यहां (तमाड़) बसाया था। वहीं कुछ लोग इस मंदिर के निर्माण को सम्राट अशोक से भी जोड़ते हैं। पर इस बात का कोई स्पष्ट और सशक्त प्रमाण नहीं मिले हैं।
माता देवड़ी दिरी का निमार्ण किसी ने भी करवाया हो आज यह मंदिर स्थानीय लोगों की बात तो छोड़ दें पूरे देश के लोगों के बीच आस्था, श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। देशभर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यहां आते हैं ।
मां का यह भव्य मंदिर पुरी तरह से पत्थरों से बना है, जिसके दरवाजे भी पत्थर से बने हुए हैं। आज़ भले ही यह मंदिर काफ़ी बड़ा आकार ले चुका है पर उसी बड़े मंदिर के अंदर पुराना मंदिर अवस्थित है जो पत्थरों से बना है। यहां के लोगों का मानना है कि मंदिर के मूल ढांचे से छेड़छाड़ मां को पसंद नहीं है इसलिए मूल मंदिर के ढांचे से छेड़छाड़ किए बिना ही नए तरीके से मंदिर का निर्माण करवाया गया है।
मंदिर की पूजा अर्चना की परंपरा में पुरी तरह से स्थानीय आदिवासी संस्कृति की झलक मिलती है। यहां के स्थानीय आदिवासी ( मुंडा ) ही इस मंदिर में पूजा – पाठ का काम सँभालते हैं। सप्ताह के छः दिन मां की पूजा आदिवासी पंडित जिन्हें ‘पाहन’ कहा जाता है , करते हैं। जबकि सप्ताह में एक दिन पूजा करने की अधिकार ब्राह्मणों को दिया गया है।
वैसे तो यह मंदिर बहुत पुराने समय से ही स्थानीय लोगों के बीच आस्था, श्रद्धा और विश्वास का केंद्र रहा है पर जबसे विश्व क्रिकेट पटल पर धुमकेतु की तरह रांची में पले बढ़े हुए महेंद्र सिंह धोनी का आगमन हुआ है ,वैश्विक स्तर पर इस मंदिर की प्रतिष्ठा बढ़ी है। आम के साथ ही साथ ख़ास लोगों की भीड़ अक्सर यहां देखी जाती है। महेंद्र सिंह धोनी जब कभी रांची स्थित अपने घर पर होते हैं, वो जरूर समय निकाल यहां आते हैं और श्रद्धापूर्वक मां की अराधना करते हैं, उनकी चरणों में शीश नवाते हैं। उनका यहां मां की पूजा के लिए बराबर आना, इस मंदिर को श्रद्धा का केंद्र बनाने के साथ ही साथ विश्वव्यापी पहचान दिलाने में भी सहायक बना है। ।
खोजपरक एवम ज्ञानवर्धक जानकारी से परिपूर्ण एक सुंदर लघु आलेख