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December 6, 2025

2 thoughts on “रविवारीय: आस्था, अध्यात्म का अद्भुत संगम

  1. उम्मीद के साथ शुरु हुआ प्रत्येक आयोजन, अनुभव के साथ ही ख़त्म होता है। आपने निम्नलिखित पंक्तियों के द्वारा इस अलौकिक घटना को स्पष्ट रूप से वर्णित कर दिया ।
    “महाकुंभ हर तरह की वर्जनाओं और सीमाओं से परे है। यह श्रद्धा, आस्था और विश्वास का उत्सव है, जहां किसी भी तर्क-वितर्क की गुंजाइश नहीं होती।”
    महाकुंभ के स्वर्णिम एवं अदभुत अनुभव को साझा करने हेतु आपको साधुवाद ।
    रवि

  2. श्री वर्मा जी ने महाकुंभ के व्यापक, आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं को खूबसूरती से उजागर किया है। उन्होंने महाकुंभ को केवल एक स्नान पर्व के रूप में नहीं, अपितु आस्था, विश्वास और आध्यात्मिकता के अद्वितीय संगम के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा अखाड़ों और नागा साधुओं की भूमिका को भी प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है।
    श्री वर्मा जी ने प्रशासन की अभूतपूर्व व्यवस्था, स्थानीय नागरिकों और स्वयंसेवी संगठनों के योगदान की सराहना करने के साथ ही वीआईपी संस्कृति और भगदड़ जैसी त्रासदियों की ओर भी ध्यानाकर्षण कराया है।
    श्री वर्मा जी का यह ब्लॉग महाकुंभ पर उनके गहन सिंहावलोकन की झांकी है, जो महाकुंभ की भव्यता और विभिन्न पहलुओं को समाहित करते हुए महाकुंभ की महत्ता को ऐतिहासिक और आधुनिक संदर्भों में रखता है, साथ ही इसकी व्यावसायिकता और बाज़ारवाद पर संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
    कुल मिलाकर महाकुम्भ के संदर्भ में यह ब्लॉग एक संपूर्ण और सुलझी हुई वैचारिकी की प्रस्तुति है।

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