रविवार विशेष: पानी की महत्ता प्यासे गले से पूछिए
– प्रशांत सिन्हा
पानी की महत्ता उस प्यासे गले से पूछिए जिसे एक एक बूंद अमृत सरीखी लगती है। कोई भी तरल जल का विकल्प नही बन सका है। गर्मियां शुरु हो चुकी है। पेयजल की किल्लत भी इसके साथ शुरु हो जायेगी। हालांकि पेयजल की किल्लत तो सालों भर रहती है और जल को हर कीमत पर सहेजने की जरूरत है। तो फिर कैसे सहेजें पानी?
भारत में जल प्रबंधन की करीब एक सदी से कोई टिकाऊ पॉलिसी नहीं रही है। 1970 तक यहां की जनसंख्या 5.5 करोड़ थी, तब इसका प्रबंधन किया जा सकता था। उस वक्त शहरीकरण एवं औद्योगिकरण कम हुआ था। 2022 में भारत की आबादी एक अरब 40 करोड़ के लगभग पहुंच गईं। बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण ने जल स्रोतों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। इसका सीधा असर भूजल स्तर पर पड़ रहा है क्योंकि भूजल स्तर को बढ़ाने में प्राकृतिक जल स्रोत ही सबसे बेहतर माध्यम है। लेकिन शहरीकरण होने से तालाबों को खत्म कर दिया गया है।
हमें यह समझना होगा कि बेहतर कल के लिए जल संग्रहण बहुत ज़रूरी है। सभी भवनों में सख्ती से वर्षा जल संग्रहण प्रणाली की व्यवस्था और वर्तमान समय में मौजूद जलाशयों का जीर्णोधार किया जाए तो काफी शहरों में धरा जल से भर उठेगी। नए जलाशयों को विकसित करके एवं मौजूद जलाशयों को पुनर्जीवित कर दिया जाए तो कुछ हद तक पानी की समस्या समाप्त की जा सकती है।। भवनों में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली लगाने का प्रावधान करना और नियम को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। सिर्फ फाइलों में नही रहे इसका ध्यान रखना होगा। तमाम छोटे बड़े शहरों में सीवरेज के पानी को देशी ढंग से ट्रीट कर खेती के उपयोग में लाकर बहुत बड़े स्तर पर पानी की बचत किया जा सकता है। सीवरेज के ट्रीट किए पानी को खेतों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने से फसलों में अतिरिक्त खाद डालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही धरती के नीचे में ट्यूबवेल के जरिए पानी निकालने के लिए खर्च किए जाने वाली बिजली व डीजल की भी बचत होगी। ट्रीट किए पानी खेती के लिए अमृत की तरह है और कुदरती खेती होने से इंसान बीमारियों से भी बचेगा। पानी को दोबारा उपयोग किए जाने से साफ पानी का खज़ाना हमारे पास सुरक्षित रह सकेगा। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य में सबसे महंगी बिकने वाली लेकिन अधिक पानी सोखने वाली फसलों जैसे धान, गेहूं, कपास, गन्ना आदि की खेती करने वाले किसानों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। जिन राज्यों में इनकी खेती हो रही है वहां भूजल का स्तर इतना नीचे चला गया है कि नलकूपों से पानी निकालना मुश्किल हो गया है। मगर यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विकल्प में किसान जिन कम पानी लेने वाली फसल उगाएं उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के हक में हो ताकि उन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहन मिल सकें। शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों के भूजल दोहन से भी जल संकट गहराने की खबर है जिसे अविलंब रोकना होगा।
सरकारी मदद से नदियों को साफ करना मुश्किल काम नहीं है। देश भर में कार सेवा द्वारा अभियान चलाए जा सकते हैं। नदियों के अलावा तालाबों, छोटी झीलों का भी संरक्षण होना चाहिए। इससे मिट्टी की गाद निकलेगी। इससे उनमें वर्षा जल इकट्ठा होने लगेगा तो भूजल रिचार्ज होने लगेगा। बरसात का पानी की बर्बादी रुकेगी और बाढ़ नहीं आएगी। इस पानी को जमा कर फिर से उपयोग में लाया जा सकेगा। इजरायल और सिंगापुर जैसे देश से हम इस बाबत बहुत कुछ सीख सकते हैं। इजरायल और सिंगापुर के लोगों ने वर्षा जल संचय के साथ पानी का बेहतर इस्तेमाल कर जल संकट से छुटकारा पा लिया है।
हर नागरिक को जागरूक करना होगा कि हमें पानी को हर कीमत पर सहेजना है। जल एक ऐसा तत्व है जिसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल से प्रारंभ होकर जल में लीन हो जाने वाले हमारे इस शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल है। इसी पानी के कारण हमारी धरती दूसरे ग्रहों से भिन्न है। धरती पर इंसानियत तभी पनपी क्योंकि वहां अमृत सरीखा पानी प्रचुर मात्रा में था। तो सारा पानी गया कहाँ?
हम इंसानों की नासमझी के कारण जल दिनोंदिन न सिर्फ कम होता जा रहा है, बल्कि प्रदुषित होता जा रहा है। इस संपदा पर आज संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जल पर जीवन निर्भर है इसलिए यह कह सकते हैं कि इसके साथ हमारा जीवन भी संकटग्रस्त होता जा रहा है। यह खतरा दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है। एशियाई विकास बैंक के अनुसार भारत में 2030 तक 50 प्रतिशत पानी की कमी होगी। एक आंकड़े के अनुसार दुनिया में 2.2 अरब लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है।आज ज़रुरत है फिर से इस जीवनदायिनी अमृत की महत्ता को पहचानने की।